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'अजन्मे के भी हैं अधिकार...', गर्भपात याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक- हम गर्भ में बच्चे को नहीं मार सकते

सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात मामले पर सुनवाई की. सीजेआई ने कहा कि हमें महिला के अपने ऊपर अधिकार और अजन्मे बच्चे के अधिकारों को संतुलित करना होगा. बेशक मां की स्वायत्तता बड़ी है, लेकिन यहां अजन्मे बच्चे के लिए कोई भी पैरवी नहीं कर रहा है, जो उसके अधिकारों की बात कर सके. हम बच्चे के अधिकारों को कैसे संतुलित कर सकते हैं?

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सुप्रीम कोर्ट में हुई गर्भपात मामले में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में हुई गर्भपात मामले में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहित महिला की 26 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म दिया जा सकता है. गर्भावस्था समाप्त करने की स्थिति में बच्चे के हार्ट को बंद (मारना) होगा. सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदी वाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता महिला अपने पति के साथ ऑनलाइन मौजूद रही. पीठ ने कहा कि अभी बच्चा भले ही गर्भ में है, लेकिन उसके भी अधिकार हैं. कानून के मुताबिक 24 हफ्ते गर्भ में रहने के बाद अजन्मे बच्चे के भी अधिकार बहाल हो जाते हैं.

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आखिर क्यों कुछ और हफ्ते बच्चे को गर्भ में नहीं रख सकती महिला, कोर्ट ने पूछा सवाल
CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि गर्भवती महिला कहती है कि वह बच्चा नहीं चाहती है. सरकार बच्चे का पालन पोषण करे या उसे किसी समुचित दंपती को गोद दे दे. जब वो इसके लिए तैयार है तो फिर वह बच्चे को कुछ और हफ्तों तक अपनी कोख में क्यों नहीं रख सकती? फिर सी सेक्शन यानी सर्जरी से प्रसव करा सकती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चा एक वाइबल बच्चा है. एम्स के सामने एक गंभीर नैतिक दुविधा थी. अगर भ्रूण में बच्चे के हृदय का संचालन बंद नहीं किया जाता तो वह जीवित पैदा होगा. CJI ने कहा कि ये नाबालिग पर हिंसा या यौन हिंसा का मामला नहीं है.

'अभी डिलीवरी हो तो बच्चे में हो सकती हैं समस्याएं'
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि, ये एक शादीशुदा महिला है जिसके पहले ही दो बच्चे हैं. आपने 26 हफ्ते तक किस बात का इंतजार किया? अपने डिप्रेशन की समस्या तय करने में आपको इतना समय लग गया? अब आप चाहते हैं कि हम आपके अंदर पल रहे शिशु के दिल की धड़कन रोकने के लिए एम्स को निर्देशित करें? अगर अभी डिलीवरी होती है तो बच्चे में असामान्यताएं हो सकती हैं. क्योंकि गर्भ अभी सात महीने का है. यह गड़बड़ी आनुवंशिक समस्याओं के कारण नहीं, बल्कि समय से पहले डिलीवरी के कारण हो सकती हैं.

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अजन्मे बच्चे के भी है अधिकारः कोर्ट
सीजेआई ने कहा कि हमें महिला के अपने ऊपर अधिकार और अजन्मे बच्चे के अधिकारों को संतुलित करना होगा. बेशक मां की स्वायत्तता बड़ी है, लेकिन यहां अजन्मे बच्चे के लिए कोई भी पैरवी नहीं कर रहा है, जो उसके अधिकारों की बात कर सके. हम बच्चे के अधिकारों को कैसे संतुलित कर सकते हैं? तथ्य यह है कि यह सिर्फ एक भ्रूण नहीं है. यह एक जीवित वाइबल भ्रूण है और यदि इसे जन्म दिया जाए तो यह बाहर भी जीवित रह सकता है.

इसके पहले दो जजों का फैसला आया था अलग
यदि अभी प्रसव कराया गया तो इसमें गंभीर चिकित्सीय समस्याएं होंगी तो फिर 2 सप्ताह और इंतजार क्यों न किया जाए? आपके मुताबिक बच्चे को मौत की सजा देना ही एकमात्र विकल्प है, लेकिन न्यायिक आदेश के तहत बच्चे को मौत की सजा कैसे दी जा सकती है? इससे पहले इसी मामले में दो जजों जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ का फैसला बंटा हुआ आया था. इसके बाद मामले को सीजेआई के पास भेज दिया गया था.

जस्टिस हिमा कोहली ने नहीं दी थी अबॉर्शन की अनुमति
जस्टिस हिमा कोहली का कहना था कि उनकी न्यायिक अंतरात्मा गर्भावस्था में महिला को अबॉर्शन करने की अनुमति नहीं दे रही है. वहीं, जस्टिस बी वी नागरत्ना ने इस पर असहमति जताई और कहा कि हमें गर्भवती महिला के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट को एम्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों के पैनल को महिला का गर्भपात कराने का आदेश दिया था, लेकिन अगले चार दिन बाद ही डॉक्टर्स ने रिपोर्ट बिल्कुल अलग दी. उसमे कहा गया कि भ्रूण सांसें ले रहा है. वो जन्म लेने को तैयार है. लिहाजा अब गर्भपात मेडिकल और नैतिक रूप से भी कतई अनुचित है.

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महिला की गर्भपात प्रक्रिया पर लगी रोक
हालांकि, बाद में ASG ऐश्वर्या भाटी की दलीलों के बाद कोर्ट ने महिला के गर्भपात की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि डॉक्टरों के पैनल ने भ्रूण के जन्म लेने की पूरी संभावना जताई है. बता दें कि दिल्ली निवासी महिला ने यह दावा करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उसे अपनी तीसरी गर्भावस्था के बारे में पता नहीं था, क्योंकि वह लैक्टेशनल एमेनोरिया से गुजर रही थी. यानी अपने दुधमुंहे बेटे को स्तनपान करा रही थी. उस वक्त चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक भी गर्भाधान की संभावना नहीं रहती. लेकिन उसी दौरान वो गर्भवती हो गई. इसका पता कई महीने बाद चला.  

उन्होंने कहा कि उनकी दो डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज चल रहा था. उनका सबसे बड़ा बच्चा चार साल का है और सबसे छोटा बच्चा मुश्किल से एक साल का है. उन्होंने कहा था कि वह आर्थिक कारणों से भी गर्भपात करवाना चाहते हैं. asg ऐश्वर्या भाटी ने एम्स की छह अक्टूबर और दस अक्टूबर की रिपोर्ट दिखाते हुए कहा कि मौजूदा स्थिति बहुत ही संवेदनशील और नाजुक है. बच्चा जन्म लेने को तैयार है, लेकिन संभावित मां की सेहत का रिकॉर्ड सही नहीं है. शारीरिक और मानसिक दिक्कतों को वजह से दुविधा है.

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काउंसलिंग के दौरान जन्म देने के लिए तैयार हो गई थी महिला
महिला रोग विभाग की प्रमुख ने भी जांच की है और कहा कि गर्भ को खत्म करना उचित नहीं. यहां कानून को चुनौती नहीं दी जा रही है, लेकिन नियम को लेकर दुविधा है. क्योंकि ये विवाहित महिला है. कानून 24 हफ्ते के भीतर गर्भपात की इजाजत देता है लेकिन रेप पीड़ित या अविवाहित स्थिति में. asg भाटी ने कहा कि मेरी राय में भी गर्भपात उचित नहीं है, क्योंकि काउंसलिंग के दौरान याचिकाकर्ता महिला बच्चे को जन्म देने को तैयार हो गई थी. बच्चा किसी जरूरतमंद दंपति को नियमानुसार गोद दिया जा सकता है.

asg ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस नागरत्ना के आदेश के बारे में बताया.सीजेआई ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आखिर एक बार प्रसव के लिए तैयार होने के बाद वो मुकर क्यों रही है? बच्चा सर्जरी के जरिए जन्म लेने को तैयार है. महिला चाहे तो पूर्ण गर्भावस्था के बाद भी बच्चे को जन्म दे सकती है. वकील ने कहा कि वो मानसिक तनाव में है! उसने खुदकुशी को कोशिश भी की. सीजेआई ने कहा कि ये कोई नाबालिग का मामला नहीं है. आपको 25 हफ्ते तक गर्भाधान और गर्भावस्था का पता क्यों और कैसे नहीं चल पाया? आपको गर्भ के नतीजे का पता तो होगा ही. महिला को सभी तरह के अधिकार हैं. लेकिन आप अजन्मे बच्चे के अधिकार का हनन कर रहे हैं. सीजेआई ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण स्वस्थ है. गर्भपात की इजाजत जेनेटिक बीमारी या प्राकृतिक शारीरिक अपंगता की वजह से भी दी जाती है. लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं है!

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पोस्ट पार्टम डिप्रेशन का 26 हफ्तों तक क्यों नहीं चला पता?
सीजेआई ने कहा कि पोस्ट पार्टम डिप्रेशन को लेकर 26 हफ्ते तक आपको कुछ पता नहीं चल पाया. आप ने फैसला लेने में 26 हफ्ते लगा दिए? याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि महिला पिछड़ी पृष्ठ भूमि से है. परिवार नियोजन वगैरह नहीं जानती. सीजेआई ने कहा कि वो इस मामले में शुक्रवार को सुनवाई करना चाहेंगे. इस बीच महिला और उसके पति से बातचीत की जाएगी. सीजेआई ने कहा कि भ्रूण के हृदय की धड़कन रोकने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. वकील ने कहा कि अगर स्वस्थ शिशु को जन्म दिया जाए तो सरकार उसका पालन पोषण करे. जस्टिस पारदी वाला ने कहा कि भ्रूण को जन्म दिलाया जाए और एक महीने नवजात विभाग में रखा जाए. बच्चे के स्वस्थ विकास पर सरकार उसका पालन पोषण करे. सीजेआई ने कहा कि दो ही उपाय है. भ्रूण की हृदय की धड़कन रोक दी जाए या फिर जन्म दिलाया जाए. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि दो-दो जिंदगियां बर्बाद हो जाएंगी.

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