सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दहेज उत्पीड़न के मामलों में सावधानी बरतने की जरूरतों पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक भागीदार बनाना आम हो गया है. जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने कहा कि अगर बिना विशेष आरोप के अगर केस में पारिवारिक सदस्यों का नाम जोड़ा जाता है तो इसपर तत्काल रोक लगाया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि यह आम बात हो गई है कि शादी में विवादों के चलते पति के पूरे परिवार को मामले में शामिल कर दिया जाता है. बिना किसी ठोस सबूत और और विशेष आरोपों को मामले में कार्रवाई का आधार नहीं माना जा सकता है.
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तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को खारिज किया
एससी ने यह टिप्पणी तेलंगाना हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए की, जिसमें हाईकोर्ट ने शादी से जुड़े मामले में एक परिवार के पुरुष, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया था.
एससी बेंच ने की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि बेबुनियाद और आम आरोपों से कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. अदालत ने यह भी बताया कि कई बार पति और उसके परिवार के खिलाफ इस धारा (धारा 498ए) का सहारा लिया जाता है ताकि पत्नी के अव्यवहारिक मांगों को पूरा कराया जा सके.
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अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी महिला को, जो धारा 498ए के अंतर्गत क्रूरता झेल रही है, उसे शिकायत करने से नहीं रोका जाना चाहिए, लेकिन, इस धारा का इस्तेमाल सिर्फ उस स्थिति में हो जब स्पष्ट और मामला पुख्ता हो. एफआईआर को रद्द करते हुए, अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा शिकायत व्यक्तिगत दुश्मनी और परिवार के खिलाफ गणना करने के उद्देश्य से दायर की गई थी.