मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग के पीड़ितों के लिए एक समान मुआवजे पर आदेश देने से इनकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये राज्य और न्यायपालिका का अधिकार है कि वो मुआवजा तय करे. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि कानून को लागू करने के सवाल पर उन राज्यों के हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करनी चाहिए, जिन राज्यों ने इस कानून को लागू नहीं किया है.
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि BNS के तहत भी इसे अपराध घोषित किया गया है. कानून को अपना काम करने देना चाहिए. लोग अलग अलग मामले लेकर सुप्रीम कोर्ट आ जाते है.
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि जब घटनाएं होती हैं, तब राज्य का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि ऐसा न हो और फिर मुकदमा चलाए. क्या इस कोर्ट में व्यक्तिगत मामलों पर गौर किया जा सकता है?
'जब राज्य सरकारें FIR...'
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जब राज्य सरकारें FIR दर्ज नहीं करती है, तो क्या किया जा सकता है. राज्यों में ये एक पैटर्न उभर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में पीड़ित को पहले उचित अथॉरिटी के पास जाना चाहिए. वैसे भी हर राज्य में स्थिति अलग होती है. अगर तहसीन पूनावाला फैसले का पालन नहीं किया जाता है, तो पीड़ित के पास कानूनी उपाय भी मौजूद हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यहां बैठकर हम देश भर की निगरानी नहीं कर सकते और हमारे विचार में इस अदालत द्वारा इस तरह की मॉनीटरिंग संभव नहीं होगी. अगर कोई व्यक्ति पीड़ित है, तो कानून के मुताबिक न्यायालय से संपर्क किया जा सकता है.
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'कोई समान निर्देश नहीं...'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मॉब लिंचिंग के मामलों में उचित मुआवजा क्या होना चाहिए, यह हर मामले में अलग-अलग होगा और कोई एक समान निर्देश जारी नहीं किया जा सकता. ऐसा करने का मतलब होगा कि अधिकारियों या अदालतों के पास उपलब्ध विवेकाधिकार को खत्म करना. जैसे अगर किसी व्यक्ति को साधारण चोट लगती है और दूसरे को गंभीर चोट लगती है, तो एक समान मुआवजे का निर्देश अन्यायपूर्ण होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली में बैठ कर देश भर में मॉब लिचिंग के मामलों की मॉनिटरिंग नहीं कर सकते हैं.