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'अच्छे बर्ताव पर किडनैपर को मिलनी चाहिए सजा में नरमी', सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि अपहरण के दौरान यदि अपहर्ता ने अगवा हुए शख्स के साथ मार-पीट करने या जान से मारने की धमकी देने जैसा कोई अपराध नहीं किया है तो उसे अधिकतम सजा में छूट दी जा सकती है.

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सुप्रीम कोर्ट (पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हाई कोर्ट ने सुनाई थी अहमद को आजीवन कारावास की सजा
  • 'दोषी को सात साल जेल व 5000 रुपये का जुर्माना होना चाहिए'
  • बुरा बर्ताव या मारने की धमकी नहीं दी तो सजा में मिले छूटः SC

देश की सबसे बड़ी अदालत ने फैसला सुनाया है कि अगर अपहरण करने वाला व्यक्ति दिल का अच्छा हो और जिसे उसने अगवा किया है अगर उसके साथ अच्छा बर्ताव करे तो उसे भारतीय दंड विधान की धारा 364 ए के तहत इस अपराध की अधिकतम सजा में छूट मिल सकती है. यानी आजीवन कारावास या फिर सजा-ए-मौत की अधिकतम सजा में थोड़ी नरमी बरती जा सकती है.

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मामला तेलंगाना का है. घटना 2011 में हुई, जिसमें एक ऑटो चालक शेख अहमद ने किसी रंजिश के तहत 13 साल के स्कूली छात्र को घर छोड़ने के बहाने अगवा कर लिया. पीड़ित बच्चा सेंट मेरी स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ता था.

बच्चे के पिता से उसने दो लाख रुपये फिरौती मांगी. जब तक फिरौती की रकम देने उसका पिता आया तब तक उसने छात्र को अपने कब्जे में किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया. उसने उसके खान-पान और अन्य सुविधाओं का भी ध्यान रखा.

बच्चे ने भी माना कोई तकलीफ नहीं हुई

लेकिन जब बच्चे का पिता फिरौती की रकम लेकर अहमद के बताए ठिकाने पर पहुंचा तब पुलिस ने जाल बिछाकर उसे पकड़ लिया. पकड़े जाने के बाद अहमद ने बताया कि उसने बच्चे का काफी ध्यान रखा है. उसे किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होने दी. बच्चे ने भी इस बात की तस्दीक की.

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मामला निचली अदालत से हाई कोर्ट तक पहुंचा. हाई कोर्ट ने अहमद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. अहमद ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अहमद को सात साल कारावास और पांच हजार रुपये नकद जुर्माना होना चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी लिखा है कि अपहरण के दौरान यदि अपहर्ता ने अगवा हुए शख्स के साथ मार-पीट करने या जान से मारने की धमकी देने जैसा अपराध नहीं किया है तो उसे अधिकतम सजा में छूट दी जा सकती है.

तीन मापदंडों पर परखना जरुरी

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अपहरण और फिरौती के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 364 ए के तहत तीन मानदंडों पर कसना होता है. पहला ये कि किसी व्यक्ति का अपहरण किया गया. उसे अपहरण की अवधि में शारीरिक नुकसान यानी मारपीट या धमकी दी गई. और अंतिम मानदंड यानी पैरामीटर ये कि किसी व्यक्ति, संस्थान, देश या सरकार पर दवाब बनाने के लिए अपहृत व्यक्ति की हत्या की जा सकती है या उसे शारीरिक या मानसिक चोट पहुंचाई जा सकती है.

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भारतीय दंड विधान की धारा 364 ए के तहत इन तीनों पैरामीटर पर घटनाक्रम को कसने के बाद ही अधिकतम सजा दी जा सकती है. यानी इसके तहत आजीवन कारावास या मृत्युदंड देने से पहले अभियोजन पक्ष का अपनी दलीलों के साथ सबूतों की रोशनी में भी ये तीनों पैरामीटर साबित करने होंगे.

अगर साबित नहीं कर पाए और अदालत को अपने विवेक से ये समझ आ जाए कि अपहरण मारने से मकसद से नहीं बल्कि सिर्फ फिरौती के लिए किया गया था और अपहरण के दौरान अगवा हुए व्यक्ति को किसी भी तरह से कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया तो उसे रियायत दी जा सकती है.


 

 

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