सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को पेगासस जांच मामले में सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ सुनवाई करेगी. पेगासस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित टेक्निकल कमेटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट इसी साल 21 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर न्यायाधीश आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में इस मामले की विस्तृत और अंतिम रिपोर्ट तैयार करने के लिए कमेटी ने कोर्ट से कुछ समय भी मांगा था.
ये 13 रख चुके हैं अपना पक्ष
समिति के सामने अब तक वरिष्ठ पत्रकार एन राम, सिद्धार्थ वरदराजन और प्रांजॉय गुहा ठाकुरता समेत 13 लोगों ने अपना पक्ष रखा था. पेगासस सॉफ्टवेयर जासूसी से प्रभावित होने का दावा करने वालों में से दो लोगों ने अपने मोबाइल फोन फॉरेंसिक जांच के लिए कमेटी को सौंपे हैं.
1400 लोगों की जासूसी का दावा
सुप्रीम कोर्ट में भी दायर याचिका के मुताबिक इसके जरिए 2019 में ही भारत में कम से कम 1400 लोगों के पर्सनल मोबाइल या सिस्टम की जासूसी हुई है. दावा किया गया है कि 40 मशहूर पत्रकार, विपक्ष के तीन बड़े नेता, संवैधानिक पद पर आसीन एक महानुभाव, केंद्र सरकार के दो मंत्री, सुरक्षा एजेंसियों के कई आला अफसर, दिग्गज उद्योगपति भी शामिल हैं.
ये था दावा
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में भी मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से ये जिक्र है कि भारत सरकार ने 2017 में जब इजराइल से दो अरब डॉलर का सौदा कर मिसाइलें खरीदी थीं तो उसी के साथ पेगासस स्पाई वेयर भी खरीदा था. हालांकि केंद्र सरकार ने इस दावे और सवाल को संसद और सुप्रीम कोर्ट में सिरे से खारिज कर दिया था.
क्या है पेगासस
पेगासस एक जासूसी सॉफ्टवेयर का नाम है. इस वजह से इसे स्पाईवेयर भी कहा जाता है. इसे इजरायली सॉफ्टवेयर कंपनी NSO Group ने बनाया है. NSO Group का बनाया पेगासस एक जासूसी सॉफ्टवेयर है जो टारगेट के फोन में जाकर डेटा लेकर इसे सेंटर तक पहुंचाता है. इस सॉफ्टवेयर के फोन में इंस्टॉल होते ही फोन सर्विलांस डिवाइस के तौर पर काम करने लगता है. इससे एंड्रॉयड और आईओएस दोनों को टारगेट किया जा सकता है.
इजरायली कंपनी के अनुसार इसे क्रिमिनल और टेररिस्ट को ट्रैक करने के लिए बनाया गया है. इसके सिंगल लाइसेंस के लिए 70 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं. इसे सिर्फ सरकार को ही कंपनी बेचती है.