सुप्रीम कोर्ट ने एक शादीशुदा महिला को कड़ी फटकार लगाई, जिसने अपने से छोटे एक पुरुष को फर्जी बलात्कार के मामले में फंसाने की कोशिश की. कोर्ट ने साथ ही कहा कि महिला इतनी मैच्योर थी कि वह समझ सकती थी कि उसके आरोपों का क्या असर होगा. दो जजों की बेंच ने अपने फैसले में शख्स को बरी कर दिया.
जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राकेश बिंदल की बेंच ने कहा, "यह ऐसा मामला नहीं है जहां शिकायतकर्ता मैच्योर नहीं थी जो यह नहीं समझ सकती थी कि उसके आरोपों का पुरुष पर क्या असर पड़ेगा. महिला आरोपी पुरुष की तुलना में दस साल बड़ी थी और वह अपने आरोपों का आकलन कर ही सकती थी.
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कोर्ट ने कहा- यह 'पति को धोखा देने का मामला'
दो जजों की बेंच ने कहा, “महिला अपने आप में इतनी परिपक्व और बुद्धिमान थी कि उन नैतिक और अनैतिक एक्ट्स के परिणामों को समझ सकती थी जिसके लिए उसने अपनी पिछली शादी के दौरान सहमति दी होगी. वास्तव में, यह उसके पति को धोखा देने का मामला था.'' अदालत ने यह भी कहा कि एफआईआर और धारा 164 के तहत दर्ज शिकायतकर्ता के बयान में अंतर थे.
2018 में महिला का हो गया था तलाक
आरोपी की ओर से पेश वकील अश्विनी कुमार दुबे ने बेंच को बताया कि एफआईआर कुछ और नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है क्योंकि दोनों के बीच शारीरिक संबंध सहमति से बने थे. एफआईआर के मुताबिक, महिला ने कहा कि वह अपनी दुकान संभाल रही थी और कुछ विवादों के बाद अपने पति के साथ नहीं रह रही थी और 2018 में उसका तलाक हो गया था.
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जब पुरुष ने शादी से किया इनकार...
इस बीच, गुप्ता ने महिला से उसके घर की पहली मंजिल किराए पर लेने के लिए संपर्क किया और दोनों के बीच धीरे-धीरे शारीरिक संबंध बन गए और उसने तलाक लेने पर उससे शादी करने का प्रस्ताव रखा. एफआईआर के मुताबिक, जब महिला ने तलाक के बाद शादी करने पर जोर दिया, तो गुप्ता ने महिला से कहा कि उसका परिवार सहमत नहीं है और उससे शादी करने से इनकार कर दिया.