देश भर की जेलो में बंद कैदियों की बदहाल स्थिति को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने विचाराधीन कैदियों और रिहाई की नीति पर विभिन्न राज्यों के हलफनामों पर चर्चा की. जस्टिस हृषीकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच के समक्ष मामले की सुनवाई के दौरान एमाइकस क्योरे ने कोर्ट को बताया, "झारखंड में भी ऐसे बहुत सारे मामले लंबित हैं, उनमें रिहाई के हकदार कैदियों की कुल संख्या 23 है. अदालत में 17 मामले भेजे गए हैं, जबकि 6 कैदियों को सजा की अवधि पूरी होने से पहले उसने समय पूर्व रिहा किया गया है."
गोवा के वकील ने कोर्ट को बताया कि मैंने पिछली बार डेटा के साथ हलफनामा दायर किया था.आज भी इस मामले मे मुझे व्हाट्सएप पर जानकारी मिली है, दो-तीन दिन में हलफनामा दाखिल किया जाएगा. इस पर कोर्ट ने कहा, "आपका यह तरीका सही नहीं है, हमने मुख्य सचिवों से जानकारी मांगी थी,यह व्यक्तिगत आजादी का मामला है. इस मामले को आज सुनवाई के लिए इसीलिए सूचीबद्ध किया गया था, फिर भी वही स्थिति है."
'तथ्यात्मक विश्वसनीयता जरूरी'
कोर्ट ने पूछा कि मणिपुर की ओर से कौन पेश हो रहा है? मणिपुर के वकील ने कहा कि उन्होंने एक स्पष्ट बयान दिया है कि एक भी व्यक्ति रिहाई के योग्य नहीं पाया गया. कोर्ट ने कहा कि आपके दिए गए बयान में कुछ आंकड़े और तथ्यात्मक विश्वसनीयता होनी चाहिए. आपको पूरी जानकारी देनी होगी.
वहीं, यूपी सरकार के वकील ने कहा कि डेटा हिंदी में आया है, हमें हलफनामा अनुवाद करने और दाखिल करने के लिए दो दिन का वक्त चाहिए. गाजियाबाद में नोडल अधिकारियों से इसकी जानकारी मिली है. इस पर कोर्ट ने कहा कि आपको जानकारी कब मिली? हमने मुख्य सचिवों को पहले ही निर्देश भेजे थे, अब आप समझ गए होंगे कि हमें आपको यहां क्यों बुलाना पड़ा. जब राज्य और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा जानकारी दी जानी है, तो सरकार जवाब नहीं दे रही है.
यूपी सरकार से कोर्ट ने किया सवाल
कोर्ट ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश में 75 जेलों को देख रहे हैं, यह जेल की बहुत बड़ी संख्या है. जबकि अन्य राज्यों में दो या तीन जेल हैं, इसलिए जब यह कानून होता है तो यह आपकी भीड़-भाड़ वाली जेलों को खाली करने में आपकी मदद कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के वकील से पूछा कि क्या आपने हमारा आदेश व्यक्तिगत रूप से आदेश देखा है? क्योंकि हम आपको जानते हैं, अगर आपने पहले आदेश देखा होता तो आप हमें बताते.
यूपी सरकार के वकील ने कहा कि लिस्ट मे यूपी राज्य का नाम नहीं था, ऐसा इसलिए हुआ. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा जिन मामलों में एमिकस होते है, वहां राज्य के वकील सोचते हैं कि सब कुछ करना केवल एमिकस का काम है? यूपी सरकार के वकील ने कहा, "सिर्फ 41 अपराधी ऐसे हैं, जिन्होंने विचाराधीन के रूप में आधी सजा तक काटी है. वहीं, केवल 29 ऐसे अपराधी हैं, जो पहली बार जेल मे हैं."
'जेल में बंद एक भी...'
कोर्ट ने कहा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तादाद कम है. अगर जेल में बंद एक भी व्यक्ति है, तो उसके लिए है यह प्रावधान है उसकी आजादी को सीमित नहीं किया जा सकता. कोर्ट मे पूछा कि क्या इस बात का डेटा है कि जेल में कितनी महिला कैदी हैं? हमें जेलों का दौरा करने का मौका मिला और पाया कि जेल में छोटे बच्चों वाली महिलाएं हैं.
एमिकस ने सुझाव कि उन अंडर ट्रायल महिलाओं की एक अलग सूची बना सकते हैं, जिन्हें आजीवन या मृत्युदंड की सजा नहीं दी गई है. हम एक लिस्ट बना सकते हैं और देख सकते हैं कि इस प्रावधान के बाहर भी क्या किया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा आप कह सकते हैं कि संख्या केवल 29 या 30 ही हो सकते हैं लेकिन आपके पास डेटा होना चाहिए. जब आपको पता है कि अदालत इस पर विचार कर रही है. हम दीवार के बगल में खड़े उस आखिरी व्यक्ति की तलाश कर रहे हैं, जिसकी आवाज हम नहीं सुन पाए हैं. हम उसी व्यक्ति को संबोधित कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा राज्यों को यह समझना चाहिए कि यह तत्काल की समस्या नहीं, इसके लिए एक सतत प्रणाली बनानी होगी.
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कोर्ट ने कहा, "यहां हम जितनी संख्या में जमानत आवेदन देख रहे हैं. ऐसे मे उसके लिए राज्य के अधिकारी विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ बैठकर जानकारी इकट्ठा करें, कॉपी-पेस्ट न करें."
वहीं, कोर्ट ने यूपी सरकार को याद दिलाया कि आप अपना हलफनामा देखें. आपकी कट ऑफ तिथि 30 जून है और उसके बाद से कई महीने और बीत चुके हैं. इस दौरान और भी कैदी रिहा होने के पात्र हो गए होंगे उनका क्या?