सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान यतीम और बेघर हुए बच्चों की संख्या में सरकारी आंकड़े और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आंकड़ों में दस गुना अंतर को लेकर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास आए दस्तावेजों में दर्ज आंकड़ों के हवाले से पूछा कि सरकार 645 बच्चों को लेकर विभिन्न योजनाओं के तहत दस लाख रुपए खर्च कर रही है. कोर्ट ने कहा कि एनसीपीसीआर यानी बाल अधिकार संरक्षण आयोग मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक ऐसे यतीम हुए बच्चों की संख्या 6855 बता रहा है.
कोर्ट ने कहा कि हम लगातार जोर दे रहे हैं कि योजनाओं पर फौरन अमल किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि इन आंकड़ों से तो लगता है कि सरकार की कथनी और करनी में काफी अंतर है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार परियोजनाओं का ऐलान तो कर देती है लेकिन अमल करने में फिसड्डी रह जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिलों में बाल सुधार केंद्र, बाल संरक्षण केंद्र, उनके अधिकारियों की पूरी फौज है लेकिन आंकड़े और हकीकत कुछ और ही हैं. सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से असिस्टेंट सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने पक्ष रखा.
एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि आंकड़ों में इस अंतर की बाबत वो सरकार और आयोग से बात कर समुचित निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करेंगी.