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SC का फैसला: CGHS पैनल के बाहर के अस्पतालों में भी इलाज पर मेडिक्लेम के हकदार हैं केंद्रीय कर्मचारी

जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस अशोक भूषण ने अपने फैसले में यह बात कहीं. कोर्ट की तरफ से कहा गया कि सिर्फ सरकार की तरफ से उल्लेखित अस्पताल में ही इलाज कराने पर मेडिक्लेम मिलने की बात गलत है.

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केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राहत भरा फैसला सुनाया है.(फाइल फोटो)
केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राहत भरा फैसला सुनाया है.(फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ का फैसला
  • केंद्रीय कर्मचारियों के लिए राहत भरा फैसला
  • किसी भी अस्पताल में इलाज करा सकते हैं केंद्रीय कर्मचारी

केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक राहत भरा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी भी केंद्रीय कर्मचारी को सर्विस के दौरान या रिटायरमेंट के बाद इस बिनाह पर मेडिक्लेम देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसने CGHS पैनल में उल्लेखित अस्पताल के इतर किसी निजी अस्पताल में इलाज कराया है. कोर्ट का कहना है कि केंद्रीय कर्मचारी को मेडिक्लेम के अधिकार से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि उसने सरकारी आदेश वाली सूची में जिस अस्पताल का नाम शामिल नहीं है वहां इलाज कराया है.

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जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस अशोक भूषण ने अपने फैसले में यह बात कहीं. कोर्ट की तरफ से कहा गया कि सिर्फ सरकार की तरफ से उल्लेखित अस्पताल में ही इलाज कराने पर मेडिक्लेम मिलने की बात गलत है. जांच का असल मुद्दा ये होना चाहिए कि जिस इलाज के आधार पर मेडिक्लेम की मांग की जा रही है वो सही है या नहीं. किसी भी मेडिक्लेम के मामले में प्राधिकरण यह जांचने के लिए बाध्य है कि क्या संबंधित व्यक्ति ने सही में अपना इलाज कराया है या नहीं. एक बार यह स्पष्ट होने के बाद टेक्निकल ग्राउंड पर मेडिक्लेम के लिए इनकार नहीं किया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा कि यह कानूनी तौर पर वाजिब है कि किसी भी कर्मचारी को सर्विस के दौरान या रिटायरमेंट के बाद मेडिक्लेम मिलना चाहिए. इसे लेकर कोई अनावश्यक रोक नहीं लगाई जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि मरीज स्पेशल अस्पताल में इलाज के लिए तभी जाता है जब उसे गंभीर समस्या हो. ऐसे में उसे सही और बेहतर इलाज का पूरा हक है. 

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कोर्ट ने पेंशनधारकों के मामले में सीजीएचएस की तरफ से एमआरसी के मामले के धीमे निस्तारण पर भी संज्ञान लिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों के त्वरित निपटान के लिए हर महीने संबंधित मंत्रालय में एक सचिव-स्तरीय उच्चाधिकार समिति की तरफ से बैठक की जाए. कोर्ट ने कहा, हमारा मत है कि संबंधित मामलों में दस्तावेज जमा होने के बाद पेंशनधारकों की यह समस्या एक महीने के भीतर निपटाई जाए.

कोर्ट का यह फैसला एक रिटायर्ड कर्मचारी की याचिका पर आया है. याचिकाकर्ता ने दो निजी अस्पतालों में अपना इलाज कराया था और बिल के भुगतान (रिइंबर्स) करने की मांग की थी. सरकार की तरफ से यह कहकर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि CRT-D डिवाइस के इंप्लांट करने की जरूरत नहीं थी. कोर्ट ने इस मामले पर कहा कि यह सामान्य समझ की बात है कि इलाज के लिए क्या किया जाना है यह डॉक्टर का फैसला होता है. डॉक्टर उचित इलाज के लिए टेस्ट और अन्य चीजें कराता है. कोर्ट ने कहा कि सीजीएचएस का रवैया इस मामले में अमानवीय लगता है. सीजीएचएस  स्कीम की शुरुआत ही इसलिए की गई है, जिससे रिटायरमेंट के बाद केंद्रीय कर्मचारियों को इलाज के लिए भटकना ना पड़े.

 

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