सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार को चेतावनी दी है कि वो दशकों से लंबित भूमि मुआवजे का जल्द से जल्द निपटारा करे, नहीं तो लाड़ली बहन योजना सहित फ्री बीज वाली कई योजनाओं पर रोक लगा दी जाएगी. कोर्ट ने 28 अगस्त तक महाराष्ट्र सरकार से मुआवजा भुगतान की समुचित योजना लेकर हाजिर होने को कहा है. ऐसा नहीं करने पर सरकारी योजनाओं पर सख्त कदम उठाए जा सकते हैं.
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को कहा कि चीफ सेक्रेटरी किसी मीटिंग में व्यस्त हैं और आज यानी बुधवार को कहा कि चीफ सेक्रेटरी अभी स्वतंत्रता दिवस की छुट्टियों पर हैं. लिहाजा मोहलत दे दी जाए. इसके बाद कोर्ट ने पखवाड़े भर की मोहलत दे दी है.
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस भूषण एस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने करीब 6 दशक पहले भूमि अधिग्रहण का मुआवजा अब तक लंबित रखने पर सरकार की खिंचाई की. भूमि अधिग्रहण मुआवजे पर महाराष्ट्र सरकार जब कोई संतोषजनक योजना लेकर कोर्ट में हाजिर नहीं हुई तो अदालत ने सीधे शब्दों में सरकार को दोबारा चेतावनी दी.
जस्टिस गवई ने सरकार के सामने सवाल खड़ा किया कि आपने 37 करोड़ रुपए के ऑफर के बाद अब तक सिर्फ 16 लाख रुपए ही क्यों अदा किए हैं? और इस अधिग्रहित जमीन के बदले फॉरेस्ट लैंड यानी जंगलात की जमीन क्यों आवंटित की?
यह भी पढ़ें: 'महाराष्ट्र सरकार ने मेधा पाटकर की याचिका पर जिस तरह आपत्ति जताई, वह तुच्छ...', बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी
राज्य सरकार के वकील ने क्या कहा?
राज्य सरकार के वकील ने हलफनामा पढ़ते हुए कोर्ट को ये बताने की कोशिश कि राज्य और वन विभाग उनकी अर्जी पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर रहे हैं. कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि तो हम आदेश दे सकते हैं कि अधिग्रहित भूमि पर किया गया निर्माण अवैध है, लिहाजा उसे ढहा दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1961 में संविधान का अनुच्छेद 31A लागू था. कोर्ट ने कहा कि आज अगर हम मुआवजा भुगतान का आदेश दें, तो आपने सोचा है कि कितनी रकम होगी? जंगल और भूमि संरक्षण मामलों की सुनवाई के दौरान कोर्ट में पुणे जिले के एक किसान ने याचिका दायर की.
यह भी पढ़ें: 'महाराष्ट्र सरकार ने मेधा पाटकर की याचिका पर जिस तरह आपत्ति जताई, वह तुच्छ...', बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी
याचिकाकर्ता के पुरखों ने 1950 में 24 एकड़ जमीन खरीदी थी. सरकार ने 1963 में इसे अधिग्रहित कर लिया था. बाद में मुआवजे को लेकर मुकदमेबाजी हुई और निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया. 37 करोड़ रुपए मुआवजा और भूमि के बदले कुछ जमीन देना तय हो गया. मुआवजे को तय रकम में से 16 लाख रुपए का भुगतान ही किया गया था. अधिग्रहित भूमि के बदले दी गई जमीन वन विभाग की संरक्षित भूमि है.
बाद में राज्य सरकार ने ये जमीन रक्षा मंत्रालय को दे दी. मंत्रालय ने ये कहते हुए मुआवजा देने से इंकार कर दिया कि वो इस मामले में पक्षकार ही नहीं रहा है, तो मुआवजा क्यों दे?