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कोविड टीकाकरण अनिवार्य या ऐच्छिक, सुप्रीम कोर्ट सुनेगा ये पेचीदा मुकदमा

सुप्रीम कोर्ट अब कोविड टीकाकरण को लेकर, एक पेचीदा मसले पर सुनवाई करेगा. इस मामले में केंद्र सरकार ने टीकाकरण को अनिवार्य नहीं ऐच्छिक बताया है, जबकि कुछ राज्यों ने इसे अनिवार्य बना रखा है. यानी इस मसले पर केंद्र सरकार के सामने कुछ राज्य सीना ताने खड़े हैं.

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सुप्रीम कोर्ट अब कोविड टीकाकरण को लेकर एक पेचीदा मसले पर सुनवाई करेगा
सुप्रीम कोर्ट अब कोविड टीकाकरण को लेकर एक पेचीदा मसले पर सुनवाई करेगा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोई SOP नहीं जो किसी भी उद्देश्य के लिए वैक्सीनेशन प्रमाण पत्र को अनिवार्य बनाती हो
  • टीकाकरण ऐच्छिक है, लेकिन दिल्ली, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में अनिवार्य

वैक्सीनेशन (Vaccination) पर नियमों में असमानता को लेकर दाखिल याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि देश भर में COVID-19 वैक्सीनेशन अनिवार्य नहीं है, न किसी पर वैक्सीन लगवाने का कोई दबाव है. सरकार ने हलफनामे में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध वैक्सीनेशन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. क्योंकि वैक्सीनेशन कोई जनादेश नहीं है. सरकार ने अब तक कोई भी SOP जारी नहीं की है, जो किसी भी योजना का लाभ लेने के मतलब या मकसद से वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट को अनिवार्य बनाती हो.

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केंद्र की गाइडलाइन के मुताबिक संबंधित व्यक्ति की सहमति प्राप्त किए बिना, किसी को भी जबरन वैक्सीन देने की परिकल्पना लोकतांत्रिक शासन में नहीं की जा सकती. सरकार ने देश भर में दिव्यांगों के लिए डोर टू डोर वैक्सीनेशन कराए जाने की याचिका पर जवाबी हलफनामा दाखिल करते हुए, केंद्र सरकार ने कहा है कि कोविड-19 वैक्सीनेशन व्यापक जनहित में है. मीडिया के विभिन्न साधनों मसलन प्रिंट, विजुअल, ऑडियो और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से विधिवत सलाह, विज्ञापन और संचार किया गया है. सरकार की सलाह है कि सभी नागरिकों को वैक्सीनेशन करवाना चाहिए. लेकिन किसी भी नागरिक को उसकी इच्छा के विरुद्ध वैक्सीनेशन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. 

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि भारत सरकार ने कोई भी SOP जारी नहीं की है, जो किसी भी उद्देश्य के लिए वैक्सीनेशन प्रमाण पत्र को अनिवार्य बनाती हो. केंद्र सरकार की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता जैकब पुलियल ने कहा है कि केंद्र सरकार भले ही यह कह रही है कि टीकाकरण ऐच्छिक है, लेकिन दिल्ली, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो उसे अनिवार्य ही बना दिया गया है.

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याचिकाकर्ता जैकब पुलियल नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्यूनाइजेशन के पूर्व सदस्य हैं. जैकब की याचिका में मांग की गई है कि सरकार कोविड-19 के टीकों के क्लिनिकल ट्रायल की रिपोर्ट और उनकी क्षमता के आंकड़े सार्वजनिक करे, ताकि आम जनता को सब कुछ पता चल सके. जैकब की इस याचिका में पैरवी करते हुए उनके वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि जब केंद्र सरकार कई मौकों पर, बयानों और आरटीआई के जवाब में कह चुकी है कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं ऐच्छिक है, तो कई राज्यों में दुकान खोलने, दुकान या प्रतिष्ठान में दाखिल होने, वहां काम करने वाले कर्मचारियों और लोगों के प्रवेश, सड़कों पर चलने, किसी शैक्षिक संस्थान में दाखिल होने जैसे अवसरों पर टीकाकरण प्रमाणपत्र क्यों मांगे जाते हैं?

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में, दिल्ली में पिछले साल 8 अक्तूबर, मध्य प्रदेश में 8 नवंबर, महाराष्ट्र में 27 नवंबर और तमिलनाडु में 18 नवंबर को जारी किए गए सर्कुलरमें साफ-साफ लिखे दिशा-निर्देश का भी हवाला दिया है, जिसमें टीकाकरण की अनिवार्यता वाली पाबंदियां लगाई गई हैं.

 

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