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मंदिर, दरगाह और बिरयानी... चुनाव से बहुत पहले तपने लगी है तमिलनाडु की राजनीति!

तमिलनाडु स्थित थिरुपरनकुंद्रम की सुंदर पहाड़ियां अगले चुनाव में राज्य की राजनीति में हलचल ला सकती हैं. इस पहाड़ी पर मौजूद भगवान मुरुगन का मंदिर और दरगाह राज्य की राजनीति में ध्रुवीकरण की वजह बन सकता है. एक विवाद से इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. BJP और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग इस विवाद को अपने अपने नजरिये से पेश कर रही है.

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थिरुपरनकुंद्रम मंदिर पर मौजूद दरगाह और मंदिर
थिरुपरनकुंद्रम मंदिर पर मौजूद दरगाह और मंदिर

मनोरम पहाड़ियों और सुंदर नजारे पेश करती थिरुपरनकुंद्रम की पहाड़ियां इन दिनों तमिलनाडु की राजनीति में हॉट केक बन गईं हैं. वजह है मंदिर परिसर में परोसा गया नॉन वेज डिनर. थिरुपरनकुंद्रम की पहाड़ियां मदुरै के बाहरी इलाकों में स्थित है. इन मोनोलिथिक पहाड़ियों को भगवान मुरुगन के थिरुपरनकुंद्रम मंदिर के लिए जाना जाता है. 

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ये मनोहर पहाड़ी तब विवादों के केंद्र में आ गई जब इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सांसद नवास कणी ने एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जहां वे अपने समर्थकों के साथ इस पहाड़ी में नॉन वेज खाते दिख रहे हैं. गौरतलब है कि इस पहाड़ी के अंदर ही भगवान मुरुगन का मंदिर स्थित है. 

यहां इस विवाद का एक और एंगल है. बता दें कि इसी परिसर में एक दरगाह भी है जिसे मुस्लिम पवित्र मानते हैं और यहां कुर्बानी देते हैं. 

IUML सांसद द्वारा नॉनवेज खाने की तस्वीरें पोस्ट करने के बाद राज्य का सियासी तापमान अचानक गरम हो गया. तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए कड़ी आलोचना की. 

अन्नामलाई ने कहा, "तमिलनाडु की आध्यात्मिक भूमि में सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों पर पूजा के अपने नियम हैं. उनकी पवित्रता को बनाए रखा जाना चाहिए. लेकिन थिरुपरनकुंद्रम सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर (मुरुगन मंदिर) में हो रही घटनाएं अप्रिय हैं."

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IUML सांसद नवास कणी ने पहले तो इन आरोपों को माना ही नहीं. कनी ने इंडिया टुडे टीवी से कहा, "उन्होंने (अन्नामलाई) झूठे आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि मैं थिरुपरनकुंड्रम मंदिर गया था और बिरयानी खाई थी. मैं कभी पहाड़ी पर नहीं गया और न ही मांसाहारी भोजन खाया."

सांसद नवास कणी ने कहा कि अगर अन्नामलाई ये साबित कर देंगे कि उन्होंने पवित्र पहाड़ी पर नॉनवेज खाया है तो वे इस्तीफा दे देंगे.

राज्य की इन घटनाओं को समझने से पहले ये भी जानना जरूरी है कि तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव है. 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में डीएमके ने 10 साल बाद जोरदार बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की थी. सत्ता के इस उलटफेर में AIADMK राजनीतिक परिदृश्य से बाहर हो गई. इस बीच बीजेपी तेजतर्रार और IPS की नौकरी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए युवा नेता अन्नामलाई के दम पर राज्य में खूब दम लगा रही है. 

लेकिन बीजेपी को लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में खास कामयाबी नहीं मिली. पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. अन्नामलाई भी चुनाव हार गए. अब विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में एक बार फिर से चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई है.  

चुनाव हारने के बाद भी अन्नामलाई राज्य की राजनीति में लगातार सक्रिय बने हुए हैं. 

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अन्नामलाई ने एक वीडियो शेयर किया. जिसमें सांसद कणी के दावे से इतर तस्वीरें थी. इस फुटेज से ये साबित हुआ कि पुलिस ने पहाड़ी पर बिरयानी सहित पका हुआ मांसाहारी भोजन लाने की अनुमति है दी है. इस खुलासे के बाद, कणी ने स्वीकार किया कि उनके समर्थकों ने पहाड़ी पर मांसाहारी भोजन खाया था. 

कणी के इस कबूलनामे पर प्रतिक्रिया देते हुए अन्नामलाई ने उनके इस्तीफे की मांग की. उन्होंने कहा, "चूंकि उन्होंने (कणी) खुद ही सच्चाई स्वीकार कर ली है, इसलिए मैं उनसे तुरंत इस्तीफा देने और हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने और भगवान मुरुगा के मंदिर को अपवित्र करने के लिए जनता से माफी मांगने का आग्रह करता हूं." 

अन्नामलाई ने कणी पर जानबूझकर धार्मिक तनाव भड़काने और "तुष्टिकरण की राजनीति" करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "हिंदू एक शांतिप्रिय समुदाय है. यह सांसद पहाड़ी पर चढ़ गया और मांसाहारी भोजन खाया. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है."

इस विवाद के बाद 18 जनवरी को इस पहाड़ी तब और माहौल गरमा गया जब पुलिस ने कुर्बानी के लिए दरगाह ले जाए जा रहे जानवरों को रोक दिया. इसके बाद यहां जमकर हंगामा हुआ. 

आईयूएमएल सांसद कणी जो कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड के सदस्य भी हैं ने कहा कि दरगाह पर कुर्बानी देने की प्रथा काफी पुरानी है. उन्होंने कहा कि इस पहाड़ी की 50 फीसदी जमीन और दरगाह वक्फ बोर्ड की है. ये सरकार के गजट से साबित होता है.

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मदुरै जिला प्रशासन ने फिलहाल इस दरगाह में सिर्फ इबादत करने की इजाजत दी है. 

DMK इस मामले पर अभी खुलकर मैदान में नहीं आई है लेकिन IUML को सत्ताधारी डीएमके का सहयोग हासिल है.

तमिलनाडु में नहीं चलती है हिन्दुत्व की राजनीति

बीजेपी अपने विजय रथ को देश के हर हिस्से में हांकती नजर आती है. कभी बीजेपी के लिए अभेद्य माने जाने वाले देश के दक्षिण हिस्से भी बीजेपी के लिए खुल गए हैं, कर्नाटक में बीजेपी ने सरकार बना ली है. लेकिन तमिलनाडु के द्वार पर पहुंचकर बीजेपी का रथ एकदम धीमा हो जाता है. 

आखिर देश के दूसरे स्थानों अथवा कर्नाटक की तरह तमिलनाडु में बीजेपी क्यों नहीं सफल हो पाती है? इसका जवाब तमिलनाडु के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में छिपा हुआ है. बीजेपी की राजनीतिक विचारधारा हिंदुत्व है, लेकिन तमिलनाडु में हिंदुत्व नहीं बल्कि द्रविड राजनीति चलती है.

पेरियार ईवी रामास्वामी ने 1925 में दलित अस्मिता और ब्राह्मण वर्चस्व के खिलाफ आंदोलन शुरू किया और तमिलनाडु की राजनीति में उथल-पुथल मचाकर रख दिया. 

इस आंदोलन को द्रविड़ आंदोलन के तौर पर पहचान मिली. पेरियार ने अछूत, असमानता, धार्मिक विश्वास, ब्राह्मणवादी सोच और हिंदू कुरीति पर चोट के लिए इस आंदोलन को शुरू किया गया था, जिसका पहला चरण गैर-ब्राह्मणों का आंदोलन था 

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तमिलनाडु के गैर सवर्णों में इस आंदोलन को दमदार सफलता मिली और द्रविड अभिमान से पैदा हुई राजनीति वहां के जनमानस में बैठ गई. 

बीजेपी की हिन्दुत्व की राजनीति में संस्कृत का बोलबाला है लेकिन द्रविड़ राजनीति में तमिल संस्कृति का वर्चस्व है. द्रविड तमिल भाषा और संस्कृति को श्रेष्ठ मानते हैं. हालांकि पीएम मोदी ने इस खाई को पाटने की कोशिश की है और वे कई मंचों पर तमिल नमस्कार और तमिल कविताएं बोलते दिखते हैं. 

तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति हिन्दी भाषा को संस्कृत से निकला माना जाता है. इसलिए भी तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध होता है और वहां की प्रमुख राजनीतिक पार्टी डीएमके बीजेपी को तमिलों पर हिन्दी थोपने का आरोप लगाती रहती है.  इन मूलभूत अंतरों की वजह से बीजेपी को द्रविड़ राजनीति से कड़ी टक्कर मिलती है.

फिलहाल थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर सांप्रदायिक तनाव तमिलनाडु के आगामी चुनावों में राजनीतिक गठबंधनों, मतदाताओं की प्राथमिकताओं और चुनावी मुहिम को नया रूप देने की क्षमता रखता है, ये मुद्दा आसपास के निर्वाचन क्षेत्रों के परिणामों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है. 
 

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