उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीन चरण की वोटिंग हो चुकी है. बीजेपी और सपा दोनों ही अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही हैं. दोनों ही दलों के बीच शह-मात का खेल जारी है. भवनात्मक मुद्दे को आगे जनता के मुद्दे फीके पढ़ गए हैं. चुनाव का आगाज जिन्ना जिन से शुरू हुआ और चुनावी तपिश जैसे-जैसे बढ़ी 'मुजफ्फरनगर दंगे', 'पलायन' '80 बनाम 20', 'गर्मी' जैसे मुद्दों को हवा देकर ध्रुवीकरण का पूरा प्रयास किए. तीसरे चरण के साथ नरेटिव बदल गया और अब बीजेपी का नया हथियार आतंकवाद बन गया है.
बीजेपी आंतकवाद के मुद्दे पर सपा को निशाने पर ले रही है. पीएम मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक, हर बड़ा नेता अब अपनी रैलियों में आतंकवाद मुद्दे पर बात कर रहा है. ऐसा बताने का प्रयास कर रही है कि सपा आतंकवादियों को संरक्षण देती है, अगर सपा की सरकार बन गई तो सभी आतंकियों के मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे. अब ये नरेटिव बीजेपी ने स्पेशल कोर्ट के आए एक फैसले के बाद से शुरू किया है.
यूपी चुनाव में आतंकवाद की एंट्री कैसे हुई?
दरअसल 18 फरवरी को गुजरात के स्पेशल कोर्ट ने 2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट केस में बड़ा फैसला सुनाया था. कुल 49 आरोपियों में से कोर्ट ने 38 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा हुई. अब जिन 38 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई, उस लिस्ट में एक नाम सैफ का भी था. बीजेपी का आरोप है कि समाजवादी पार्टी के आरोपी सैफ के पिता संग करीबी रिश्ते हैं. सोशल मीडिया पर एक तस्वीर भी लगातार शेयर की जा रही है जिसमें अखिलेश यादव, सैफ के पिता संग नजर आ रहे हैं. बीजेपी इसे तुष्टीकरण वाली राजनीति बताते हुए अखिलेश यादव को राष्ट्रविरोधी करार दे रही है.
मोदी के बयान से बदली फिजा
पीएम मोदी ने हरदोई की रैली में आतंकवाद मुद्दे को लेकर समाजवादी पार्टी को घेरा है और शायद अब तक का सबसे बड़ा हमला भी किया. मोदी ने सीधे सपा के चुनाव चिन्ह साइकिल पर निशाना साधते हुए आतंकवाद से जोड़ दिया. पीएम ने कहा कि इनका जो चुनाव चिन्ह साइकिल है उस पर अहमदाबाद में बम रखे गए थे, तब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था. मैं हैरान हूं कि ये आतंकी धमाकों में साइकिल का इस्तेमाल क्यों करते थे.
पीएम मोदी के अलावा सीएम योगी ने भी सपा पर निशाना साधा. योगी ने कहा कि नाम समाजवादी, काम आतंकवादी और सोच परिवारवादी है. योगी ने दावा कर दिया कि सपा ने एक आतंकी के पिता को अपना स्टार प्रचारक बना दिया है, लेकिन वे अपने चाचा शिवपाल को बैठने के लिए एक कुर्सी भी नहीं दे पाते. सीएम ने आरोप लगाया कि सपा आतंकियों को इसलिए ढोते फिरती है जिससे जनका की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा सके. इस तरह मोदी और योगी आतंकवाद के इर्द-गिर्द चुनावी एजेंडा सेट करने में जुट गए हैं.
बीजेपी की मजबूरी या रणनीति
बीजेपी ने तीसरे चरण के बाद अचानक से आतंकवाद का मुद्दा क्यों उठाया है? मुजफ्फनगर दंगे, 80 बनाम 20 और गर्मी निकाल दूंगा जैसे मुद्दों के जरिए ध्रुवीकरण में जुटी बीजेपी अब आतंकवाद की एंट्री क्यों करवाई गई? अब बीजेपी की इस बदली रणनीति का एक कारण पार्टी इस चुनाव को योगी बनाम अखिलेश के बजाय मोदी बनाम अखिलेश करने का दांव चल रही. मोदी के नाम को आगे कर बीजेपी पूरे चुनाव को क्षेत्रीय मुद्दों की जगह राष्ट्रीय मुद्दों पर सियासी एजेंडा सेट कर रही है ताकि योगी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को मात दिया जा सके.
बीजेपी के लिए चुनावी मौसम में राष्ट्रवाद की पिच हमेशा से ही फायदेमंद रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव ने तो ये स्पष्ट रूप से साबित कर दिया था. अगर 2017 में सर्जिकल स्ट्राइक के इर्द-गिर्द चुनाव प्रचार को रखा गया और शमशान और कब्रिस्तान के जरिए सपा को घेरा था तो 2019 के चुनाव में बालाकोट एयर स्ट्राइक ने कई समीकरणों को जमीन पर बदल दिया. वहीं, स्पेशल कोर्ट का अहमदाबाद ब्लास्ट में ये अहम फैसला आया है, बीजेपी इसे फिर राष्ट्रवाद की पिच से जोड़ रही है और आतंकवाद के मुद्दे पर सपा को घेरने की कोशिश कर रही है.
वैसे कुछ ऐसा ही एक प्रयास बीजेपी ने पंजाब चुनाव में भी किया जब कुमार विश्वास ने आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा दिया था कि वे अलगाववादियों के समर्थक रहे हैं. अब क्योंकि पंजाब चुनाव के दौरान ये मुद्दा वोटिंग से चंद दिन पहले सामने आया, लिहाजा कोई भी पार्टी इसे ज्यादा प्रभावी अंदाज में नहीं भुना पाई. वहीं, बीजेपी अब यूपी के चुनाव में पूरी तरह से इस दांव को खेल रही है. सूबे में अभी चार चरण की 231 सीटों पर चुनाव बाकी हैं. ऐसे में बीजेपी आतंकवाद के मुद्दे पर लगातार समाजवादी पार्टी को घेर कर अपने पुराने नतीजे को दोहराना चाहती है.
अखिलेश की काउंटर रणनीति क्या है?
बीजेपी अब जिस अंदाज से आतंकवाद मुद्दे को खींच रही है, कुछ महीने पहले तक जिन्ना विवाद को भी ऐसी ही बढ़ाया था. अखिलेश यादव ने तो एक रैली में बयान देने के बाद चुप्पी साध ली थी, लेकिन बीजेपी ने इस मुद्दे को अच्छे से भुनाया. क्या सीएम योगी, क्या अमित शाह, सभी ने सपा को जिन्ना प्रेमी बताया और तार सीधे पाकिस्तान से जोड़ दिए. लेकिन सबसे बड़ा फर्क ये रहा कि सपा प्रमुख ने बीजेपी के इन आरोपों पर कभी ज्यादा सफाई पेश ही नहीं की. एक-दो बार रैली या इंटरव्यू में कुछ बोला हो, वरना इस जिन्ना विवाद से पूरी दूरी बनाए रखी. नतीजा ये हुआ कि बीजेपी तो इस मुद्दे के साथ ड्राइविंग सीट पर बैठ गई, लेकिन अखिलेश ने इसकी सवारी नहीं की.
वहीं, आतंकवाद के मुद्दे पर बीजेपी पूरी उम्मीद लगाए बैठी है कि अखिलेश यादव इस चक्रव्यूह में फंसा जाए ताकि उन्हीं के इशारों पर अपनी चुनावी रणनीतियां तय करते दिखेंगे. लेकिन अभी तक सपा प्रमुख ने इस मुद्दे को भी अपनी तरफ से हवा नहीं दी है. अखिलेश अपने पहले से सेट मद्दों को लेकर आगे चल रहे हैं, जिसमें आवारा पशु, रोजगार, विकास और जातीय के इर्द-गिर्द ही बात कर रहे हैं.
ऐसे में बीजेपी की ज्यादा बड़ी चुनौती ये है कि कैसे सपा के नेताओं से इन मुद्दों पर प्रतिक्रिया दिलवाई जाए. अगर रिएक्शन आया तो ये मुद्दा आने वाले चरणों की भी दिशा तय कर सकता है. लेकिन अगर सपा ने चुप्पी साधे रखी तो शायद अगले चरण तक बीजेपी फिर किसी दूसरे नरेटिव के साथ चुनावी मैदान में उतर सकती है. देखना है कि बीजेपी का यह सियासी दांव कितना सफल रहता है?