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खुद डिलीट होते हैं मैसेज, नंबर भी वैरिफाई करने की जरूरत नहीं... ऐसे सुरक्षित ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे आतंकी

केरल इस्लामिक स्टेट (आईएस) मॉड्यूल मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने खुलासा किया है कि भारत में आतंकी हूप और रॉकेट चैट जैसे अधिक सुरक्षित मैसेजिंग ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हूप, रॉकेट और थ्रेमा जैसी मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे आतंकी
  • राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच में हुआ खुलासा

केरल इस्लामिक स्टेट (आईएस) मॉड्यूल मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने खुलासा किया है कि भारत में आतंकी हूप और रॉकेट चैट जैसे अधिक सुरक्षित मैसेजिंग ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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एनआईए की जांच में सामने आया है कि मोहम्मद अमीन उर्फ ​​अबू याहया और उसके सहयोगियों की आतंकवादी गतिविधियों के लिए इन अतिसुरक्षित मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करते हैं.

मोबाइल ऐप के जरिए यह आतंकी आईएस विचारधारा के प्रचार-प्रसार और नए सदस्यों की भर्ती के लिए विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर विभिन्न आईएस प्रचार चैनल चला रहे हैं. जांच के दौरान यह पाया गया कि अमीन बातचीत के लिए हूप और रॉकेट चैट का इस्तेमाल कर रहा था.

हूप ऐप में दूसरे सदस्य के साथ शेयर किए गए मैसेज अपने आप डिलीट हो जाते हैं. यहां तक कि रॉकेट चैट में यूजर्स को अपना मोबाइल नंबर या अपनी ई-मेल आईडी वैरिफाई करने की जरूरत नहीं होती है. एनआईए ने इस साल मार्च में तीन आरोपी व्यक्तियों - अमीन, रहीस रशीद और मुशाब अनवर को गिरफ्तार किया था.

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इससे पहले एनआईए ने आईएस इराक और सीरिया खुरासान प्रांत (आईएसआईएस-केपी) मामले की जांच के दौरान पाया था कि गिरफ्तार आरोपी जहांजैब सामी वानी और उसकी पत्नी हिना बशीर और बेंगलुरु के डॉक्टर अब्दुर रहमान उर्फ ​​'डॉ ब्रेव' का थ्रेमा ऐप का इस्तेमाल कर रहे थे.  थ्रेमा एक सुरक्षित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म माना जाता है.

थ्रेमा के संदेश या कॉल का पता लगाना मुश्किल है. स्विट्जरलैंड में विकसित थ्रेमा आईफोन और एंड्रॉइड स्मार्टफोन के लिए एक ओपन-सोर्स एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्लिकेशन है. थ्रेमा पर भी उपयोगकर्ता को खाता बनाने के लिए ईमेल पता या फोन नंबर दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है.

हालांकि, पहली बार नहीं है जब एनआईए को आईएस आतंकवादियों के साथ-साथ हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा और अल कायदा के आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सुरक्षित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का सामना करना पड़ा है.

फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के मामले की जांच के दौरान भी एनआईए और अन्य खुफिया एजेंसियों ने अपनी जांच में पहले पाया था कि जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी पीयर-टू-पीयर सॉफ्टवेयर सेवा का उपयोग कर रहे थे. भारत और विदेशों में अपने साथियों के साथ बात करने के लिए एक जैसी मोबाइल ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल करते हैं. 

 

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