द कश्मीर फाइल्स की बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई जारी है. इस एक फिल्म ने कश्मीरी पंडितों को फिर न्याय के लिए अपनी आवाज बुलंद करने की ताकत दे दी है. समाज के कई दूसरे लोग भी आगे आकर इन लोगों के लिए न्यया की बात कर रहे हैं. अब देश के राष्ट्रपति के लिए एक याचिका दायर की गई है.
ये याचिका एडवोकेट विनीत जिंदल द्वारा दायर की गई है. उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि उन मामलों की दोबारा जांच होनी चाहिए जहां पर 1989-90 के समय कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. अब विनीत जिंदल से पहले कई दूसरे लोग भी फिल्म देखने के बाद ये मांग उठा चुके हैं.
लेकिन इस अपार समर्थन के बीच समाज और राजनीतिक गलियारों में एक ऐसा वर्ग भी सक्रिय है जो द कश्मीर फाइल्स को सच्चाई से दूर मान रहा है. कोई इस फिल्म को प्रोपेगेंडा बता रहा है तो किसी के लिए फिल्म में दिखाई गईं घटनाएं सच्चाई से दूर हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और एनसी नेता उमर अब्दुल्ला तो यहां तक कह चुके हैं कि उनकी पार्टी कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस लाने की तैयारी कर रही थी, लेकिन अब फिल्म ने सबकुछ बर्बाद कर दिया.
उमर ने आरोप लगाया कि मेकर्स खुद ही कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी नहीं चाहते हैं, उसी वजह से उन्होंने दर्शकों के सामने ऐसी फिल्म प्रस्तुत कर दी है. उमर की माने तो फिल्म में जो तथ्य दिखाए गए हैं, वो भी गलत हैं. जोर देकर कहा गया है कि जिस समय कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से पलायन हुआ था, तब वहां पर फारूक अब्दुल्ला की सरकार नहीं थी, बल्कि राज्यपाल शासन लगा हुआ था. ये भी बताया गया है कि उस समय केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी और बीजेपी ने उसका समर्थन किया था.
वैसे अभी क्योंकि समाज का एक वर्ग इस फिल्म का इतना विरोध कर रहा है, ऐसे में मेकर्स की सुरक्षा अपने आप में एक बड़ा मुद्दा बन गया है. अभी के लिए फिल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री को Y श्रेणी की सुरक्षा दी गई है.