लोकसभा चुनाव नतीजों में भले ही एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिल गया है, लेकिन बीजेपी अपने दम पर बहुमत के जादुई आंकड़े 272 से दूर है. एनडीए की तीसरी बार सरकार बनाने और नरेंद्र मोदी की बतौर प्रधानमंत्री के तौर पर हैट्रिक में बिहार और आंध्र प्रदेश की दो क्षेत्रीय पार्टियां किंगमेकर बनकर उभरी हैं. आंध्र प्रदेश में एन चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी (TDP) और बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के भरोसे ही नई सरकार का भविष्य टिका है. दोनों पार्टियां इस बात को बेहतर समझती हैं. यही वजह है कि सरकार में समायोजन से लेकर राज्यों से जुड़ी वो मांगें भी उठने लगी हैं, जो अब तक सिर्फ चुनावी मुद्दे बनकर रह जाती थीं.
बिहार और आंध्र प्रदेश दोनों ही राज्य लंबे समय से विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग उठा रहे हैं. अब जब केंद्र की नई सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की बारी आई तो दोनों पार्टियों से जुड़े नेताओं ने फिर से अपनी मांगें रखना शुरू कर दी हैं.
नीतीश कुमार और उनके करीबियों ने भी उठाई मांग
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने और स्पेशल पैकेज दिए जाने की मांग उठा रहे थे. 2005 में नीतीश ने जब पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तब से वो ये मांग उठा रहे हैं. नीतीश ने यह मांग पिछले साल नवंबर में भी दोहराई थी, जब उन्होंने जाति जनगणना के आंकड़े जारी किए थे.
अब जदयू महासचिव केसी त्यागी ने भी बिहार को स्पेशल स्टेट्स में शामिल करने की बात कही है. त्यागी का कहना था कि हम चाहते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले और हम इसके लिए प्रयास करेंगे.
नीतीश के करीबी और राज्य मंत्री विजय चौधरी ने भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की है. चौधरी का कहना था कि हम लोग पहले से कहते रहे हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, विशेष मदद, विशेष पैकेज मिलना चाहिए. हमारे संसाधन सीमित हैं. प्रदेश को विशेष मदद मिलना चाहिए.
यह भी पढ़ें: क्या है विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी का राज्य... नई सरकार के गठन के साथ क्यों चर्चा में हैं दोनों Terms
आंध्र प्रदेश भी उठा रहा है विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग
इसी तरह, टीडीपी प्रमुख एन. चंद्र बाबू नायडू भी लंबे समय से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं. नायडू इसके लिए काफी समय से अभियान चला रहे हैं. नायडू ने सबसे पहले साल 2017 में आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जा देने की मांग की थी.
अब तक 11 राज्यों को मिला है विशेष राज्य का दर्जा
पूर्वोत्तर के असम और नगालैंड ऐसे पहले राज्य थे, जिन्हें 1969 में विशेष दर्जा दिया गया था. बाद में हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित 11 राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया. देश के सबसे नए राज्य तेलंगाना को यह दर्जा आंध्र प्रदेश से अलग होने के कारण मिला, जिसका वित्तीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.
सबसे पहले जम्मू और कश्मीर को विशिष्ट दर्जा मिला था. हालांकि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अब वो एक केंद्र शासित प्रदेश है.
विशेष श्रेणी का दर्जा क्या है? इसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य क्या है? इसे राज्यों को कौन प्रदान करता है? इसके क्या लाभ हैं? विशेष श्रेणी के राज्यों का दर्जा देने के लिए क्या मानदंड हैं? जानिए...
यह भी पढ़ें: 'बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे केंद्र सरकार...', CM नीतीश ने फिर उठाई पुरानी मांग
विशेष श्रेणी का दर्जा कैसे दिया जाता है?
केंद्र सरकार सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक रूप से पिछड़े राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा देती है, ताकि उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिल सके. पांचवें वित्त आयोग की सलाह पर 1969 में यह वर्गीकरण किया गया था. चूंकि भारत 'राज्यों का संघ' है. वर्तमान में भारत में 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं. वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, इन सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हर पांच साल में केंद्र सरकार के राजस्व का एक हिस्सा मिलता है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार, केंद्र सरकार किसी भी राज्य को वित्त आयोग की सिफारिशों के अलावा अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है. 29 भारतीय राज्यों में से 11 को पहले से ही विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा प्राप्त है और 5 और राज्य इसके लिए अनुरोध कर रहे हैं.
सबसे पहले किन राज्यों को स्पेशल स्टेटस का दर्जा मिला?
तीन राज्यों जम्मू और कश्मीर (वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेश), असम और नागालैंड को 1969 में महावीर त्यागी की अध्यक्षता में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर विशेष श्रेणी के राज्यों का दर्जा दिया गया था. जब 1969 में गाडगिल फॉर्मूला अधिकृत किया गया था तो विशेष श्रेणी के दर्जे का विचार पहली बार पेश किया गया था.
इन तीनों राज्यों का सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पिछड़ापन उन्हें विशेष दर्जा देने की वजह बना था. पहाड़ी और चुनौतीपूर्ण भूभाग, रणनीतिक सीमावर्ती स्थान, कम प्रति व्यक्ति आय, कम जनसंख्या घनत्व, बड़ी जनजातीय आबादी की उपस्थिति, आर्थिक और बुनियादी ढांचे में पिछड़ापन और राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति समेत अन्य जरूरतों के कारण विशेष श्रेणी का दर्जा दिया जाता है. राष्ट्रीय विकास परिषद ने कई विशेषताओं वाले राज्यों को योजना सहायता के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा दिया है. आज केंद्र सरकार इसे संभालती है.
यह भी पढ़ें: 'बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया तो करेंगे आंदोलन', बोले सीएम नीतीश कुमार
संविधान में नहीं है कोई प्रावधान
विशेष श्रेणी का दर्जा यानी SCS किसी पिछड़े राज्य को उनकी विकास दर के आधार पर दिया जाता है. यदि कोई राज्य भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हो, उसको कर और शुल्क में विशेष छूट देने के लिए विशिष्ट दर्जा दिया जाता है. हालांकि संविधान में किसी राज्य को उसके समग्र विकास के लिए विशेष दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है.
विशेष दर्जे से अलग है विशेष श्रेणी राज्य
तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के तहत 18 फरवरी 2014 को संसद ने विधेयक पारित कर तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग कर विशेष दर्जा दिया. इसके बाद 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर शेष राज्यों के लिए 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया. ऐसे राज्यों में संसाधन अंतर को कर हस्तांतरण के माध्यम से समायोजित करने का सुझाव दिया है. इसके लिए कर हस्तांतरण को 32% से बढ़ाकर 42% करने की सिफारिश की गई है. विशेष श्रेणी राज्य, विशेष दर्जे से अलग है. विशेष दर्जा विधायी और राजनीतिक अधिकारों को बढ़ाता है. स्पेशल स्टेटस स्टेट यानी एससीएस केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं से संबंधित है.
राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए हैं कुछ शर्तें
किसी राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए कुछ शर्तें और अनिवार्यताएं हैं. यदि कोई पहाड़ी राज्य कम जनसंख्या घनत्व वाला हो या वहां जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा हो या फिर पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक महत्व वाला क्षेत्र हो या फिर आर्थिक और बुनियादी ढांचे में पिछड़ा हुआ राज्य हो. जिस राज्य में वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति हो.
यह भी पढ़ें: बजट से बिहार को निराशा! नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा, जानें नीतीश कुमार ने क्या कहा
विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने पर राज्य को मिलते हैं क्या लाभ?
विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने पर केंद्र सरकार उस राज्य को केंद्र प्रायोजित योजनाएं लागू करने के लिए 90 प्रतिशत धनराशि देती है, जबकि अन्य राज्यों में यह 60 प्रतिशत या 75 प्रतिशत होती है. बाकी धनराशि राज्य सरकार खर्चती है. यदि आबंटित धनराशि खर्च नहीं की जाती है तो वह समाप्त नहीं होती है तथा उसे कैरी फॉरवर्ड यानी आगे ले जाया जाता है. राज्य को सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर सहित करों और शुल्कों में भी महत्वपूर्ण रियायतें मिलती हैं. केन्द्र के सकल बजट का 30 प्रतिशत हिस्सा विशेष श्रेणी वाले राज्यों को जाता है.
कब-किसे मिला विशेष राज्य का दर्जा
- पिछड़े राज्यों को केंद्रीय सहायता और कर छूट प्रदान की जाती है. कई राज्यों को केंद्रीय योजना के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय विकास परिषद से सहायता मिली है.
- पहले सिर्फ असम, नागालैंड, जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था.
- चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-1974) के अंतर्गत असम, नागालैंड और जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त हुआ. हालांकि 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद जम्मू और कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा छिन गया है.
- 1974 और 1979 के बीच पांच और राज्यों को विशेष श्रेणी में शामिल किया गया. इनमें हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा शामिल हैं.
- 1990 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के विलय के बाद विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों की संख्या बढ़कर 11 हो गई. 2001 में उत्तराखंड को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया.
विशेष राज्यों का दर्जा देने का क्या पैमाना?
- संसाधनों की कमी से जूझ रहा राज्य.
- प्रति व्यक्ति निम्न आय.
- राज्य की वित्तीय स्थिति व्यवहार्य नहीं होना.
- आर्थिक एवं संरचनात्मक पिछड़ापन.
- एक बड़ी जनजाति का अस्तित्व.
- पहाड़ी और चुनौतीपूर्ण इलाका.
- सीमावर्ती क्षेत्र जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं.
- एक विरल आबादी वाला क्षेत्र.
राष्ट्रीय विकास परिषद, योजना आयोग के कार्यों की देखरेख और निर्देशन करती है. प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और आयोग के सदस्यों से मिलकर बनी होती है.
यह भी पढ़ें: BJP प्रदेश अध्यक्ष बोले- बिहार को तभी मिलेगा विशेष राज्य का दर्जा, जब जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगे ये काम
विशेष श्रेणी के दर्जे के लाभ
- सभी केंद्र प्रायोजित कार्यक्रमों और बाहरी सहायता के लिए राज्य के कुल व्यय का 90% केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है. शेष 10% राज्य को शून्य ब्याज ऋण के रूप में दिया जाता है.
- सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिए, सामान्य ऋण-अनुदान अनुपात 70% ऋण और 30% अनुदान है.
- सरकारी वित्तपोषण के लिए आवेदन करते समय विशेष ध्यान दिया जाना.
- उद्यमों को राज्य की ओर आकर्षित करने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती.
- विशेष श्रेणी के राज्यों को कुल संघीय बजट का 30% दिया जाता है.
- इन राज्यों को ऋण कटौती और ऋण विनिमय कार्यक्रमों तक पहुंच प्राप्त है.
- निवेश को आकर्षित करने के लिए, विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों को उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, कॉर्पोरेट कर, आयकर और अन्य करों से छूट दी जाती है.
- जब केंद्रीय धन प्राप्त करने की बात आती है तो राज्यों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे वहां विकास परियोजनाएं आकर्षित होती हैं.
- विशिष्ट श्रेणी वाले राज्यों के पास एक वित्तीय वर्ष से अप्रयुक्त धनराशि को अगले वित्तीय वर्ष में बिना समाप्त हुए ले जाने का विकल्प होता है.
- पूर्वोत्तर क्षेत्र और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर 14वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा समाप्त कर दिया गया है.
- इसके बजाय उसने केंद्र को कर प्राप्तियों में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% करने की सलाह दी, जो 2015 से लागू है. इससे प्रत्येक राज्य में संसाधन अंतर को कम करने में मदद मिलेगी.