देश का किसान एक बार फिर सड़कों पर है. इस बार वजह वो तीन अध्यादेश हैं जो मोदी सरकार ने पास किए हैं और अब संसद में बिल के रूप में पेश कर दिया है. सोमवार को संसद में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ये तीनों बिल पेश किए. अब सरकार की तैयारी इन तीनों बिलों को पास कराने की है. दूसरी तरफ देश के कई इलाकों में किसान इनके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं और आज संसद तक कूच करने का ऐलान किया है.
कृषि क्षेत्र से जुड़े ये तीन बिल हैं- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल, आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल, मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल. केंद्रीय कैबिनेट पहले ही इनसे जुड़े अध्यादेश पास कर चुकी है, जिन्हें अब संसद में बिल के रूप में पेश किया गया है. लोकसभा से मंगलवार को आवश्यक वस्तु से जुड़े संशोधन बिल पास हो गया है.
सरकार के इन फैसलों का विरोध तब से ही किया जा रहा है जब से अध्यादेश पास किए गए. किसानों और किसान संगठनों का कहना है कि ये नये तथाकथित कृषि सुधार लागू होने से किसान और उसकी उपज पर प्राइवेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा और सारा फायदा बड़ी कंपनियों को मिलेगा.
1- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश
यह अध्यादेश राज्यों के कृषि उत्पाद मार्केट कानूनों (राज्य APMC Act) के अंतर्गत अधिसूचित बाजारों के बाहर किसानों की उपज के फ्री व्यापार की सुविधा देता है. इस अध्यादेश के प्रावधान राज्यों के एपीएमसी एक्ट्स के प्रावधानों के होते हुए भी लागू रहेंगे. सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी. जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे.
इस अध्यादेश का मूल उद्देश्य एक देश, एक कृषि बाजार की अवधारणा को बढ़ावा देना और एपीएमसी बाजारों की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के साथ ही अवसर मुहैया कराना है. ताकि किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिल सके.
इसके अलावा, यह अध्यादेश इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग को भी बढ़ावा देगा. यानी उपज की ऑनलाइन खरीद-फरोख्द भी की जा सकेगी. अध्यादेश में यह भी व्यवस्था है कि कोई भी व्यापार करने पर राज्य सरकार किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स से कोई बाजार फीस, सेस या प्रभार नहीं वसूलेगी.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में कहीं भी बेचने की इजाजत देता है, इस तरह इससे वन नेशन वन मार्केट का मॉडल लागू हो जाएगा. इस अध्यादेश के समर्थकों का मानना है कि इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी. जबकि विरोधी खेमा कह रहा है कि इस अध्यादेश से मंडी एक्ट केवल मंडी तक ही सीमित कर दिया गया है और मंडी में खरीद-फरोख्त पर शुल्क लगेगा जबकि बाहर बेचने-खरीदने पर इससे छूट मिलेगी. इस नियम से खासकर मंडी व्यापारी बहुत नाराज हैं. उनका कहना है कि इससे बाहरी या प्राइवेट कारोबारियों को फायदा पहुंचेगा.
2- मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश
इस अध्यादेश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात है. छोटे किसानों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है. सरकार का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा. इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं रहेगा और साथ ही किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स तक पहुंच भी सुनिश्चित होगी. इससे किसानों की आय में सुधार होगा.
सरकार का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों की उपज की वैश्विक बाजारों में आपूर्ति के लिए जरूरी आपूर्ति चेन तैयार करने को निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा. किसानों की ऊंचे मूल्य वाली कृषि के लिए तकनीक और परामर्श तक पहुंच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें ऐसी फसलों के लिए तैयार बाजार भी मिलेगा।
बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और किसानों को अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा. हालांकि, इसका विरोध करने वालों का दावा है कि अब निजी कंपनियां खेती करेंगी जबकि किसान मजदूर बन जाएगा. किसान नेताओं का कहना है कि इसमें एग्रीमेंट की समयसीमा तो बताई गई है लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं किया गया है.
3-आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश
इस अध्यादेश के जरिए अनाज, दलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है. यानी अब इनका स्टोरेज किया जा सकेगा. सरकार का मानना है कि किसानों की अच्छी पैदावार होने के बावजूद कोल्ड स्टोरेज या निर्यात की सुविधाओं के अभाव में और वस्तु अधिनियम के चलते अपनी फसल के सही दाम नहीं ले पाते हैं.
सरकार का कहना है कि इस व्यवस्था से निजी निवेशक हस्तक्षेप के भय से मुक्त हो जाएंगे. साथ ही उत्पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आजादी से व्यापक स्तर पर उत्पादन करना संभव हो जाएगा और इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी/प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा, इससे कोल्ड स्टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी.
संशोधन के तहत यह व्यवस्था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है. सरकार का कहना है कि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों ही के लिए ही यह मददगार साबित होगा. इसके साथ ही भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण होने वाली कृषि उपज की बर्बादी को भी रोका जा सकेगा.
क्यों हो रहा है विरोध
किसान संगठन, किसान व कांग्रेस समेत कुछ राजनीतिक दल इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे है. विरोध के पीछे दलील दी जा रही है इससे मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगा और निजी कारोबारियों या बाहरी कंपनियों की मनमानी बढ़ जाएगी. साथ ही कुछ लोगों का कहना है कि किसानों की जमीन या खेती पर प्राइवेट कंपनियों का अधिकार हो जाएगा और किसान मजबूर व मजदूर बनकर रह जाएगा. ये भी कहा जा रहा है कि उपज के स्टोरेज से कालाबाजारी भी बढ़ेगी और बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे.
ये भी कहा जा रहा है कि जब मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा तो किसान पूरी तरफ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर निर्भर हो जाएगा. इसका नतीजा ये होगा कि बड़ी कंपनियां ही फसलों की कीमत तय करेंगी. कांग्रेस ने तो इसे नया जमींदारी सिस्टम तक बता दिया है.