धरती पर जीवन और खासकर मानव-जीवन के लिए वेटलैंड (आर्द्रभूमि) का होना बहुत जरूरी है. पूरे विश्व में ऐसी जगहों का नेटवर्क बनाकर इसे संरक्षित और विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है. क्योंकि इन जगहों पर पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने वाले जैव विविधता से पूर्ण एक मजबूत इको सिस्टम पनपता है. ऐसे ही तीन भारतीय वेटलैंड को अंतर्राष्ट्रीय महत्व वाले रामसर कन्वेंशन साइट की सूची में शामिल किया गया है.
रामसर साइटों की सूची में तमिलनाडु के नंजरायण बर्ड सेंचुरी और काझुवेली बर्ड सेंचुरी तथा मध्य प्रदेश के तवा जलाशय को शामिल किया गया है. न्यूज एजेंसी के अनुसार यह जानकारी मंत्री भूपेंद्र यादव ने दी. उन्होंने बताया कि रामसर साइटों की सूची में शामिल भारत के 85 वेटलैंड का कुल क्षेत्रफल 1.35 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है.
सबसे ज्यादा तमिलनाडु में हैं रामसर साइट्स
भारत में सबसे ज्यादा वेटलैंड तमिलनाडु में हैं. यहां 18 ऐसी जगहें हैं जिसे रामसर साइट का टैग मिला हुआ है. इसके बाद दूसरा स्थान उत्तर प्रदेश का है, यहां भी ऐसे 10 साइटें हैं. मंत्री ने कहा कि भारत सरकार की विशेष नीति और प्रयास से ही यहां रामसर साइटों की संख्या बढ़ी है. पिछले दस वर्षों में भारत में रामसर साइटों की संख्या 26 से 85 हुई है.
रामसर साइट बनाने का उद्देश्य पूरे विश्व में वेटलैंड का एक नेटवर्क तैयार करना है. ताकि धरती पर मानव जीवन के संतुलन के लिए जरूरी जैव विविधता और इसके इकोसिस्टम को मजबूत रखा जा सके. इसलिए ऐसी जगहों को, जहां विस्तृत क्षेत्र में जैव विविधता पनप रही होती है उसे रामसर साइट का टैग दिया जाता है.
क्या है रामसर साइट और कन्वेंशन
रामसर साइट दरअसल विश्व के अलग-अलग हिस्सों में फैले वेटलैंड हैं. 1971 में जैव विविधता को बनाए रखने के लिए दुनिया भर के वेटलैंड को संरक्षित करने की दिशा में यूनेस्को की ओर से एक कन्वेंशन हुआ था. यह कन्वेंशन ईरान के रामसर में हुआ था. यहां अंतर्राष्ट्रीय वेटलैंड ट्रिटी पर कई देशों ने हस्ताक्षर किये थे. तब से विश्व के अलग-अलग देशों में जैव विविधता से परिपूर्ण वेटलैंडों की पहचान कर इसे रामसर साइट का टैग देकर इसे संरक्षित किया जाता है.
यह भी पढ़ें: पर्यटकों-पर्यावरण प्रेमियों के लिए स्वर्ग हैं ओडिशा की ये रामसर साइटें
रामसर साइट का टैग मिलने के फायदे
रामसर साइट का टैग मिलने से उस वैटलैंड पर पूरी निगरानी रखी जाती है. उसे पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए तैयार किया जाता है. रामसर साइट घोषित होने से पहले ही यह तय कर लिया जाता है कि यहां कितने तरह के पक्षियों की प्रजातियां पोषित हो रही है और यहां का इकोसिस्टम क्या है. इसके बाद एक तय वैश्विक मानक के तहत इसे संरक्षित किया जाता है. ऐसी जगहों पर वैसे निर्माण और अन्य गतिविधियों को रोक दिया जाता है, जिससे वेटलैंड की जैव विविधता प्रभावित होती हो.