उपराष्ट्रपति चुनाव में TMC मतदान से दूर रहेगी. ममता बनर्जी से बिना बातचीत किए उपराष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा क्यों की गई? टीएमसी इस बात से नाराज है और पार्टी ने अपना विरोध दर्ज कराया है. पार्टी में सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया है. 85 फीसदी सांसदों ने इसका समर्थन किया है. विपक्ष ने टीएमसी से सलाह किए बिना मार्गरेट अल्वा को मैदान में उतारा है.
उम्मीदवार पर टीएमसी से सलाह किए बिना फैसला
टीएमसी का कहना है कि विपक्ष ने टीएमसी से सलाह किए बिना अल्वा को मैदान में उतारा है. उम्मीदवार पर टीएमसी से सलाह किए बिना फैसला किया गया है. यह एक लोकतांत्रिक पार्टी है. पार्टी का कहना है कि हमसे सलाह न करने के TMC किसी विशेष पार्टी का नाम नहीं लेगी. पार्टी अध्यक्ष ने सांसदों को निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया. TMC का कहना है कि वह अभी बड़ी बहस नहीं करना चाहती है.
TMC की ओर से कहा गया कि लोकतंत्र में यह विपक्ष के लिए ठीक नहीं है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए अल्वा को विपक्षी उम्मीदवार के रूप में लेने का फैसला कैसे किया गया?
विपक्ष ने मार्गरेट अल्वा को बनाया उम्मीदवार
बता दें कि उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की ओर से मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया गया है. हाल ही में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने मार्गरेट अल्वा के नाम का ऐलान किया था. मार्गरेट अल्वा कर्नाटक की रहने वाली हैं. वह राजस्थान, गोवा, उत्तराखंड और गुजरात की राज्यपाल रह चुकी हैं. विपक्ष ने एक ऐसे शख्स को उम्मीदवार बनाया है, जो एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की तरह ही राज्यपाल रह चुकी हैं और उन्हें भी प्रशासनिक कार्यों का अनुभव है.
6 अगस्त को उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने वाले उम्मीदवार अपना नामांकन पत्र 22 जुलाई तक वापस ले सकेंगे. उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए 6 अगस्त को वोटिंग होगी. मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसी दिन वोटों की गिनती भी हो जाएगी और चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे.
गौरतलब है कि देश के वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म हो रहा है. वेंकैया नायडू का कार्यकाल पूरा होने से चार दिन पहले ही ये साफ हो जाएगा कि देश का अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा.
कौन हैं मार्गरेट अल्वा?
मार्गरेट अल्वा का जन्म 14 अप्रैल को 1942 को कर्नाटक के मेंगलोर में हुआ था. अल्वा ने शुरूआती पढ़ाई कर्नाटक में ही पूरी की. उसके बाद कांग्रेस से जुड़ गईं. कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. फिर अल्वा अलग-अलग मंत्रालयों की समितियों में शामिल रहीं. कांग्रेस ने उन्हें 1975 में पार्टी का महासचिव भी बनाया था. उसके बाद 1999 में वो लोकसभा की सदस्य चुनी गईं. अल्वा कुल चार बार राज्यसभा की सदस्य रहीं.