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पहले नौकरी के लिए जंग, अब बच्चे के लिए जद्दोजहद... HC पहुंचीं ट्रांसजेंडर पृथिका

पुलिस बल में देश की पहली ट्रांसजेंडर पृथिका याशिनी ने एक बच्चे को गोद लेने के लिए साल 2021 में सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी से संपर्क किया था. मगर, बीते साल 22 सितंबर को उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था. इस पर उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इस मामले में कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास और सीएआरए को नोटिस जारी किया है.

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पृथिका यशिनी की फाइल फोटो.
पृथिका यशिनी की फाइल फोटो.

पुलिस बल में देश की पहली ट्रांसजेंडर पृथिका याशिनी (Prithika Yashini) ने बच्चे को गोद लेने के मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने बच्चा गोद लेने के लिए आवेदन किया था, जिसे खारिज कर दिया गया था. इसके बाद वो न्यायालय की शरण में पहुंचीं.

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उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एम. ढांडापानी ने सवाल किया कि याचिका क्यों खारिज कर दी गई. साथ ही कोर्ट ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास (Central Women and Child Development) और सीएआरए (Central Adoption Resource Authority) को 30 जून तक याचिका का जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया. पृथिका ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि उनके आवेदन को अस्वीकार करना एक नागरिक को प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है. 

बता दें पृथिका याशिनी ने बड़ी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद तमिलनाडु पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की नौकरी हासिल की थी. इससे ट्रांसजेंडर (Transgender) महिलाओं में खुशी की लहर देखी गई थी. साथ ही समुदाय में पुलिस बल में शामिल होने का हौसला भी बढ़ा था. इस समय वो वर्तमान में असिस्टेंट इमिग्रेशन ऑफिसर (Assistant Immigration Officer) के पद पर हैं. 

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ये है पूरा मामला

दरअसल, पृथिका ने एक बच्चे को गोद लेने की इच्छा व्यक्त करते हुए साल 2021 में सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी से संपर्क किया था. मगर, बीते साल 22 सितंबर को उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था. इसके बाद उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

पुलिस बल में भर्ती होने के लिए लड़ी थी लंबी लड़ाई

गौरतलब है कि याशिनी ने पुलिस बल में भर्ती होने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. इसके बाद साल 2015 में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सेवा भर्ती बोर्ड को निर्देश दिया कि वह याशिनी को पुलिस सब इंस्पेक्टर के तौर पर तैनात करे. कोर्ट ने कहा था कि वो नौकरी की हकदार हैं.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस पुष्पा सत्यनारायण की पीठ ने बोर्ड को यह भी आदेश दिया था कि अगली भर्ती प्रकिया से वह ‘तीसरे लिंग’ की श्रेणी में ट्रांसजेंडर को शामिल करे. इससे पहले उनके आवेदन को प्रारंभिक तौर पर नामंजूर कर दिया गया था. इस पर उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

हाई कोर्ट में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस व्यवस्था का हवाला दिया था, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा मानते हुए उनके उत्थान के लिए कदम उठाने के निर्देश दिए गए थे. साथ ही उन्हें सरकारी भर्तियों और शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश के लिए सभी प्रकार के आरक्षण के लाभ देने के भी निर्देश दिए गए थे.

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