मुंबई में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद से हड़कंप है. इस घटना की जिम्मेदारी लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने ली है. पिछले कुछ सालों में बिश्नोई गैंग ने एक के बाद एक कई बड़े हत्याकांड को अंजाम दिया है. जेल में बैठकर लॉरेंस बिश्नोई इस गैंग को कैसे ऑपरेट करता है ये अभी भी जांच का विषय है. लेकिन बिश्नोई गैंग ने जिस तरह से अपना नेटवर्क बनाया है वो अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की याद दिलाता है. दाऊद भी कभी ऐसे ही हाईप्रोफाइल लोगों को मरवाकर, डराकर अपना नेटवर्क चलाता था. कहा जाता है कि बड़े-बड़े कारोबारी उसके यहां डर से दरबार लगाते थे. ऐसी ही एक कहानी है भारत के दो गुटखा किंग की जो डर से दाऊद के पास पहुंचे थे लेकिन दाऊद ने उनकी मदद से पाकिस्तान में फायर ब्रान्ड गुटखे का 'राज' फैला दिया.
जानें क्या थी गुटखा किंग की कहानी…
दरअसल, पाकिस्तानी आवाम को गुटखे की लत का आदी बनाने में भगोड़े दाऊद, उसके भाई अनीस, और भारत के दो गुटखा किंग की आपसी दुश्मनी का बड़ा रोल है. ये कहानी बंबई से शुरू होकर दुबई पहुंचती है और फिर कराची जाकर पूरी होती है. इस कॉरपोरेट जंग में फिर जो 'इंसाफ' हुआ उसके बाद कराची में एक मॉडर्न गुटखा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की नींव पड़ी.
ये बात 24-26 साल पहले की है. भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापारिक संबंध कुछ खास नहीं थे. बावजूद इसके गुटखे की इस फैक्ट्री के लिए सारी तकनीक और मशीनरी मुंबई से कराची वाया दुबई पहुंची थी.
1971 तक गुटखा नहीं पान चबाते थे पाकिस्तानी
पाकिस्तान में गुटखे की कहानी देखें तो नजरें सिंध और ब्लूचिस्तान की समुद्री तटों तक जाती है. इसी सिंध प्रांत में कराची है जो पाकिस्तान का बिजनेस के साथ-साथ गुटखा हब भी है. पाकिस्तान के समाचारपत्र द ट्रिब्यून में छपी की एक रिपोर्ट में सिंध यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ फतेह मोहम्मद बरफत कहते हैं 'पान की तरह गुटखा चबाना बंटवारे से पहले सिंध के रिवाज में शामिल नहीं था. धीरे धीरे लोगों को पान की लत लगी.'
एक बार फिर आते हैं गुटखे के अंडरवर्ल्ड कनेक्शन की ओर. कैसे दाऊद के भाई अनीस ने इस धंधे में छुपी संभावनाओं को पहचान लिया और फिर पाकिस्तान में इसकी पूरी इंडस्ट्री खड़ा करने के लिए कुलबुलाने लगा. CBI ने 2016 में मकोका की अदालत में दायर चार्जशीट में इस कहानी को विस्तार से समझाया है. पत्रकार एम हुसैन जैदी ने भी अपनी किताब 'डोंगरी से दुबई तक' में पाकिस्तान में गुटखा इंडस्ट्री के पनपने की दिलचस्प कहानी बताई है.
90 के दशक में और 2000 के शुरुआती सालों में पाकिस्तानी तस्करी कर बंबई के पॉपुलर ब्रांड के गुटखे पाकिस्तान ले जाते थे. इसके लिए वहीं दुबई वाला रूट इस्तेमाल होता था. पाकिस्तान में गोवा, वन थाउजैंड, RMD जैसे इंडियन ब्रांड की बड़ी मांग थी. लेकिन तस्करी की वजह से पाकिस्तान के गरीबों के लिए ये गुटखा काफी महंगा पड़ रहा था. जबकि इसका सबसे बड़ा ग्राहक यही निचला तबका था.
90 के दशक में पाकिस्तान में रोकड़े कमाने का ये आसान सा धंधा दाऊद ब्रदर की नजरों से छिप नहीं सका. दाऊद और अनीस ने समझ लिया कि मामूली मेहनत करके मोटी रकम इस धंधे से बनाई जा सकती है. दाऊद इस समय तक कराची में ISI की सरपरस्ती में सेटल हो चुका था. डी कंपनी दुबई और कराची से ऑपरेट कर रही थी.
अनीस इब्राहिम के मन में उम्मीदें जोर मारने लगी थीं. वह इंडियन ब्रांड पर ताक-झांक कर रहा था. पैसा तो उसके पास था हीं, उसे तकनीक चाहिए थी. उसे मशीनें चाहिए थीं. उसे एक ऐसा आदमी चाहिए था जो ये बताए कि एक ऐसा गुटखा कैसे बनाया जाए जो पाकिस्तानियों की जुबां पर चढ़ जाए. डी कंपनी एक अदद मौके की तलाश में था ही कि इसी समय भारत के दो गुटखा दिग्गजों के बीच तीखी कॉरपोरेट जंग छिड़ी हुई थी.
जोशी वर्सेज धारीवाल यानी गोवा वर्सेज RMD
दो गुटखा किंग की ये अदावत बॉस और उसके मातहत मैनेजर के बीच टकराव की कहानी है. इसमें बॉस था धारीवाल और मैनेजर था जगदीश जोशी. धारीवाल जो गुटखा बनाता था उसका नाम था RMD और जोशी की कंपनी जिस गुटखे को बनाती थी उसका नाम था गोवा.
रसिकलाल माणिकचंद धारीवाल यानी कि RMD, गुटखा इंडस्ट्री का ये वो नाम है जिसे कभी इसे धंधे का किंग माना जाता था. ये ब्रॉन्ड कितना लोकप्रिय है ये किसी मुंबईया लड़के से पूछिए.
पुणे के शिरूर में जन्मे धारीवाल को अपने पिता से 20 मजदूरों के साथ एक बीड़ी फैक्ट्री विरासत में मिली था. इसी के दम पर वह गुटखा किंग बन गए, जिसका मार्केट वैल्युएशन 8000 करोड़ तक था. इसी कंपनी में कभी मैनेजर हुआ करता था जगदीश जोशी. अपने ही मालिक से भिड़ने के बाद जगदीश जोशी ने खुद का गुटखा ब्रॉन्ड मार्केट में लॉन्च किया, नाम था गोवा. अब गोवा RMD को टक्कर दे रहा था. कुछ ही सालों में दोनों ब्रांडों के बीच बात बराबरी की हो गई थी.
धारीवाल और जोशी की क्यों ठनी?
एम हुसैन जैदी अपनी किताब डोंगरी से दुबई तक में इस व्यावसायिक लड़ाई का खाका जबरदस्त अंदाज में खींचते हैं, वे लिखते हैं, "विडंबना यह थी कि ज्यादा वक्त नहीं गुजरा था जब एक दूसरे के खून के प्यासे ये लोग एक ही टीम में काम करते थे. जोशी ने 1990 में बतौर मैनेजर अपने काम की शुरुआत की थी और इस ब्रांड को सनसनीखेज ऊंचाइयों तक ले गया था."
पत्रकार जैदी के अनुसार मैनेजर जोशी को लगता था कि वो जितना मेहनत कर रहा है उसके एवज में वैसा मेहनताना नहीं मिल रहा है. महात्वाकांक्षी जोशी की राहें 1997 में धारीवाल से जुदा हो गई, उसने खुद की फर्म खोल ली. माना जाता है कि इन दो गुटखा सामंतों के बीच 4 साल तक जंग जारी रही. इस लड़ाई की शुरुआत जोशी के इस दावे के साथ हुई थी कि धारीवाल पर उसका 70 करोड़ रुपया बनता है, लेकिन RMD ने इससे सीधा इनकार कर दिया.
दो पुड़िया किंग की लड़ाई में अनीस को दिखा मौका
हिन्दुस्तान के दो पुड़िया किंग बकाये के लिए आपस में लड़ रहे हैं, जब ये बात दाऊद के छोटे अनीस को पता चली तो मानों उसके लिए ये बिन मांगी मुराद थी. उसने पूरी जानकारी जुटाई और जल्द ही इस नतीजे पर पहुंचा कि डी कंपनी इस लड़ाई में मध्यस्थ बनेगा और अपना एक सपना पूरा करेगा.
पत्रकार एम हुसैन जैदी अपनी किताब में दावा करते हैं कि जोशी ने दुबई में अनीस से कॉन्टैक्ट किया और उससे कहा कि वो उसका बकाया दिलाने में मदद करे. किताब डोंगरी से दुबई में जैदी लिखते हैं, "माना जाता है कि अनीस ने जोशी को भरोसा दिलाया कि वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा और इस झगड़े को हमेशा के लिए खत्म करवा देगा."
इसी दौरान धारीवाल भी मुंबई पहुंचा था. गैंगस्टर अनीस ने अपनी गुंडई और प्रभाव का इस्तेमाल किया. उसने धारीवाल को ऑफर दिया और कहा कि वह इस विवाद को सुलझाने में मध्यस्थ बनना चाहता है. धारीवाल भी इस किचकिच से परेशान था. फिर बात अंडरवर्ल्ड तक पहुंच चुकी थी. उसने इस डील के लिए हामी भर दी. बस एक बदलाव वह चाहता था. जैदी लिखते हैं, " कहा जाता है कि धारीवाल चाहता था कि यह डील दाऊद की मौजूदगी में हो, इसलिए अनीस ने इस मीटिंग को दाऊद के सामने कराची में रखने का फैसला किया. कुछ दिन बाद धारीवाल और जोशी दोनों कराची गए और दाऊद के घर में पहुंचे."
2004 में खुला मामला
मुंबई में पहले तो इस मामले की जांच मुंबई पुलिस कर रही थी. बांद में सीबीआई ने इसे अपने हाथ में ले लिया. ये मामला 2004 का है, जब मुंबई पुलिस ने अवैध बंदूक रखने के आरोप में जमीरुद्दीन उर्फ जम्बो को गिरफ्तार किया था. पूछताछ के दौरान जमीरुद्दीन ने खुलासा किया कि जोशी-धारीवाल ने कराची में गुटखा बनाने की फैक्ट्री स्थापित करने के लिए अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की मदद की थी.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार सीबीआई को इस केस को सौंपे जाने से पहले इस केस की जांच कर रहे ऑफिसर सुरेश वलीशेट्टी ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था, "पूछताछ के दौरान जंबो ने बोलना शुरू किया और उसने हमें बताया कि कैसे धारीवाल और जोशी के बीच पैसे को लेकर विवाद था और कोई और नहीं बल्कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने ही इस मुद्दे का हल किया था. इसके बदले में, दाऊद ने जोशी और धारीवाल से कहा था कि वे कराची में गुटखा निर्माण इकाई स्थापित करने में उसकी मदद करें."
दाऊद की 'अदालत' में क्या हुआ इस अदावत का 'इंसाफ'
सवाल यह है कि दो बिजनेसमैन की इस लड़ाई में दाऊद ने क्या इंसाफ किया? पत्रकार जैदी लिखते हैं कि लंबी बहस, चर्चा और शिकायतों के सुनने के बाद दाऊद ने 70 करोड़ के बकाये की ये लड़ाई 11 करोड़ में निपटा दी, लेकिन उसने इसमें से अपना फीस भी काट लिया. दाऊद ने कहा कि धारीवाल को 11 करोड़ रुपये ढीले करने होंगे. इसमें से 7 करोड़ जोशी को मिलेगा और बाकी 4 करोड़ वो बतौर अपनी फीस रखेगा.
दाऊद का भाई अनीस इब्राहिम
यह 'इंसाफ' हो ही रहा था कि अनीस ने अपना भी ऑफर सामने रख दिया. उसने कहा कि चूंकि उसने लंबे समय से चल रहे इस विवाद को सुलझाया है इसलिए वह चाहता है कि बदले में जोशी उसे गुटखा बनाने की तकनीक और जानकारी मुहैया कराए. अनीस इब्राहिम ने भले ही ये बात अपील के तौर पर कही थी लेकिन दाऊद की छत्रछाया में कही गई ये बात भारतीय बिजनेसमैन के लिए एक ऑर्डर जैसी ही थी.
सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार ये डील सितंबर 1999 में हुई थी. सीबीआई का यह भी दावा है कि धारीवाल 1996 से ही दाऊद से सौदा कर रहा था. सीबीआई के अनुसार अगस्त 1999 में दाऊद के गुर्गे अंतुले और सलीम शेख ने जगदीश जोशी को पीटा भी था. क्योंकि जोशी धारीवाल से डील को निपटाने में राजी नहीं दिख रहा था. जोशी के लिए दाऊद से टकराना आसान नहीं था. उसे धंधा भी करना था, मुंबई में भी रहना था. इसलिए वो डील पर तैयार हो गया.
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अली असगर कंपनी ने मुंबई से दुबई फिर कराची भेजी मशीनें
आखिरकार 7 करोड़ पाकर जोशी अपना ट्रेड सीक्रेट दाऊद फैमिली को देने के लिए तैयार था. डोंगरी टू दुबई में लिखी कहानी के अनुसार जल्द ही 15 गुटखा मैन्युफैक्चरिंग मशीनें और पाउच बनाने की चार मशीनें पहले दुबई भेजी गई और फिर यहां से 2001-02 में कराची भेजी गई. जैदी के अनुसार ये मशीनरी अली असगर कंपनी के नाम पर न्हावा शेवा से दुबई के लिए एक्सपोर्ट की गई थी. इस सौदे पर नजर रखने के लिए जोशी राजू पचारिया को लगाया था. बाद में उसने बीजू जॉर्ज नाम के एक शख्स को कराची भेजा. बीजू अनीस की फैक्ट्री में गुटखा बनाने के लिए कामगारों को ट्रेनिंग दे रहा था.
आखिरकार कुछ ही महीनों में इंडियन तकनीक, अंडरवर्ल्ड की पूंजी और दाऊद की निगरानी में पाकिस्तानियों के लिए एक तेज और भभकेदार गुटखा कराची की मार्केट में लॉन्च हो गया. ये ब्रॉन्ड बहुत पॉपुलर हुआ और उम्मीद के मुताबिक दाऊद अनीस ने खूब पैसा बनाया. पूरे बिजनेस ऑपरेशन के दौरान इब्राहिम ब्रदर पर्दे के पीछे बनी रही.
दाऊद को गुटखा बिजनेस के इस राज को सौंपने की जानकारी मुंबई पुलिस को 2004 में मिली. मुंबई पुलिस दाऊद और उसके सहयोगी सलीम चिपलन और अनीस के बीच फोन पर बातचीत पर नजर रखे हुई थी. इस दौरान इन लोगों ने गुटखा बनाने वाली मशीनों के स्पेयर पार्ट का जिक्र किया. फैसला किया गया कि ये पार्ट चोर बाजार में खरीदे जाएं फिर यहां से दुबई भेजे जाएंगे और फिर वहां से कराची. मुंबई पुलिस के कान खड़े हो गए. मुंबई पुलिस ने पूछताछ के लिए दाऊद के ससुर सलीम इब्राहिम कश्मीरी को दबोच लिया. इसी शख्स ने इस पूरे सेटअप की कहानी बताई और अपने दामाद के कुकर्मों का सारा रहस्य पुलिस के सामने उगल दिया.