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खत्म हो गया है खाना... एक ब्लैक पैंथर, एक जैगुआर को यूक्रेन से है लाना, इंडियन डॉक्टर की सरकार से अपील

जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो डॉ पाटिल को यूक्रेन में अपना सब कुछ बेचकर वहां से निकलना पड़ा था. वे एक बैग में अपने कपड़े, 100 अमेरिकी डॉलर और कुछ हजार रूबल लेकर यूक्रेन से निकलने को मजबूर हुए थे. हालांकि वे 3 महीने तक अपने पैंथर और जैगुआर के लिए खाने का इंतजाम करके आए थे.

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यूक्रेन में फंसे एक जैगुआर और एक पैंथर को बचाने की कोशिश (फाइल फोटो)
यूक्रेन में फंसे एक जैगुआर और एक पैंथर को बचाने की कोशिश (फाइल फोटो)

यूक्रेन में प्रैक्टिस कर रहे भारत के एक डॉक्टर ने इंडियन गवर्नमेंट से अपील की है कि यूक्रेन के वार जोन में उनका पालतू तेंदुआ और जैगुआर फंसा हुआ है,  सरकार वहां से इन दोनों जानवरों को निकालकर लाने में इसकी मदद करे. डॉ गिदिकुमार पाटिल आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं. वे यूक्रेन के लुहान्सक में प्रैक्टिकस करते थे. यहां उन्होंने दो जानवर पाल रखे थे. इनमें से एक यश नाम का जैगुआर है और दूसरा सबरीना नाम की ब्लैक पैंथर (काला तेंदुआ) है. 

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जब यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की वजह से वहां के हालात बिगड़ गए तो उन्हें इस शहर को छोड़ना पड़ा. जंग जारी रहने की वजह से उन्हें लुहान्सक हड़बड़ी में छोड़ना पड़ा. इस दौरान यश और सबरीना वहीं रह गए. लुहान्सक रूस-यूक्रेन जंग से बुरी तरह प्रभावित है. डॉ गिदिकुमार जब यूक्रेन से निकले तो उन्हें अपनी मादा तेंदुआ और जैगुआर को एक स्थानीय किसान के पास छोड़कर आना पड़ा. 

डॉ गिदिकुमार जिस जैगुआर को बचाने के लिए अपील कर रहे हैं वो बेहद खास है. इस जैगुआर को लेपर्ड और जैगुआर के बीच हाईब्रीड करके पैदा किया गया है. 

इस वक्त पोलैंड के वार्सा में फंसे हुए डॉ गिदिकुमार ने फोन पर भारत सरकार से अपील करते हुए कहा, "मेरा विनम्र संदेश है कि मेरे जानवरों की सटीक वर्तमान स्थिति और उनकी तत्काल सुरक्षा पर जोर देते हुए सरकार उन्हें निकालने की पहल करे और इस पर तेजी से कार्य करें." उन्होंने कहा कि अपने पालतू जानवरों से दूर रहकर उनकी स्थिति खराब हो गई है, उन्हें डिप्रेशन का अनुभव होता है, वे उन जानवरों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं. 

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डॉ गिदिकुमार को यूक्रेन की नागरिकता मिली है. वे फरवरी में यूक्रेन के स्वावतोव शहर में काम कर रहे थे. 

डॉ पाटिल को ऐसे मिले दो जानवर

पालतू जानवरों के शौक के वशीभूत डॉ गिदिकुमार ने 2 साल पहले यूक्रेन की राजधानी कीव के एक चिडियाघर से इन दोनों जानवरों को लिया था. इसके बाद वे इन जानवरों को पालने में जुट गए. 

डॉ पाटिल अपने पालतू जानवरों के साथ

डॉ गिदिकुमार अपने यूट्यूब चैनल के जरिए अपने इन दो पालतू जानवरों की जिंदगी को दुनिया के सामने लाते रहते हैं. उनकी इच्छा है कि वे इतना पैसा जमा कर लें कि इनके लिए एक ब्रीडिंग प्रोजेक्ट की शुरुआत कर सकें. इन्हीं वीडियो की वजह से जब वे यूक्रेन से निकलना चाह रहे थे तो रूसी सैनिकों ने उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया. 

रूसी जंग में सड़क पर आ गए डॉ गिदिकुमार

जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो डॉ पाटिल को यूक्रेन में अपना सब कुछ बेचना पड़ा था. वे एक बैग में अपने कपड़े, 100 अमेरिकी डॉलर और कुछ हजार रूबल लेकर यूक्रेन से निकलने को मजबूर हुए थे. युद्ध की वजह यूक्रेन में रहते हुए उन्हें अपनी सारी कमाई गंवानी पड़ी थी. यूक्रेन में उन्हें अपनी कुछ जमीन, दो अपार्टमेंट, दो कारें, मोटरसाइकिल और कैमार एक कैमरा अमेरिकी डॉलर में बेचना पड़ा था. 

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जानवरों के लिए 3 महीने का खाना छोड़ गए थे डॉ पाटिल

जब युद्ध की वजह से डॉ गिदिकुमार पाटिल को यूक्रेन छोड़ना पड़ रहा था तो उस वक्त वे अपने जानवरों के लिए 3 महीने की खुराक का इतंजाम कर गए थे. लेकिन अब इन जानवरों का खाना खत्म हो चुका है. अब इन जानवरों को जिंदा रखने के लिए इन्हें वापस लाना जरूरी हो गया है. उन्होंने अपने जानवरों का पालन पोषण करने के लिए यूक्रेन में केयरटेकर को 2400 डॉलर मजदूरी के रूप में दे रखे थे. डॉ पाटिल अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा इन दोनों जानवरों की देख-रेख में खर्च कर चुके हैं. 

डॉ पाटिल का कहना है कि वे अपने जानवरों की सुरक्षा के लिए अभी किसी भी तरह के विकल्प पर विचार करने को तैयार हैं. उन्होंने कहा है कि वे यूक्रेन के किसी पड़ोसी देश में या फिर यूरोप में या फिर भारत में भी अपने जानवरों को लाने के लिए तैयार हैं. 

डॉ पाटिल ने न्यूज एजेंसी से कहा, "मेरी लिए ज्यादा जरूरी है कि कैसे मैं उन तक वैध रूप से पहुंच पाऊंगा, ये गंभीर विषय है. मैं भारत के जीव-जन्तु कानूनों और प्रावधानों से परिचित नहीं हूं."

यूक्रेन में युद्ध की वजह से पैदा हुए हालात पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि इन जानवरों को सबसे पहले सुरक्षित ठिकानों पर ले जाने की जरूरत है. इसमें सरकार मदद कर सकती है. उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि लगातार ब्रीडिंग करवा कर इनकी इतनी संख्या कर ली जाए ताकि इन्हें जंगलों में बसाया जा सके. 

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