केंद्र सरकार ने हाल ही में गन्ना किसानों को बड़ी राहत दी है. सरकार ने गन्ना खरीद की कीमत में आठ फीसदी की बढ़ोतरी को मंजूरी दी है. इसके तहत कैबिनेट ने गन्ना खरीद की कीमत को 315 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 340 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. इस तरह गन्ने की कीमत 25 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी है.
क्या किसानों को वाकई होगा फायदा?
पहली नजर में केंद्र सरकार का यह कदम गन्ना किसानों के लिए फायदेमंद लग सकता है, लेकिन थोड़ा बारीकी से देखने पर पता चलता है कि इस बढ़ोतरी का पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसानों पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. इसकी वजह ये है कि, इन राज्यों में राज्य सलाहित मूल्य (एसएपी) का प्रावधान है, जो आमतौर पर एफआरपी से काफी अधिक है.
सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है यूपी
देशभर में लगभग 49 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती की जाती है. इसमें अकेले उत्तर प्रदेश का हिस्सा 45% से अधिक है. इसलिए उत्तर प्रदेश सबसे अधिक गन्ना उत्पादक राज्यों में से एक है, हालांकि, इन किसानों के बड़े योगदान के बावजूद, एफआरपी वृद्धि से उनकी वित्तीय स्थिति में खास सुधार होने की संभावना नहीं है क्योंकि वे पहले से ही एसएपी के तहत नई घोषित दर से लगभग 40-60 रुपये प्रति क्विंटल अधिक कमा रहे हैं.
हरियाणा-पंजाब को कितना फायदा?
दूसरी ओर पंजाब और हरियाणा जहां इस वक्त आंदोलनकारी किसान जुटे हुए हैं, ये दोनों केंद्र सरकार की ओर से की गई गन्ना एफआरपी में बढ़ोतरी का स्वागत कर सकते हैं. हालांकि, यहां भी हाई एसएपी की मौजूदगी है, जिसका मतलब है कि केंद्र की ओर से की गई बढ़ोतरी दोनों राज्यों में किसानों के लिए किसी भी महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ में तब्दील नहीं होगी.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और अन्य दक्षिण भारतीय प्रदेश इस एफआरपी वृद्धि का लाभ उठा सकते हैं. वैसे यह माना जा सकता है कि केंद्र सरकार द्वारा एफआरपी वृद्धि प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुछ शांत कर सकती है, लेकिन सच्चाई यह है कि किसानों को पहले से ही एसएपी के माध्यम से लगभग 40-60 रुपये प्रति क्विंटल अधिक मिल रहा है. नतीजतन, इस बढ़ोतरी से इन राज्यों में गन्ना किसानों के आर्थिक सुधार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा.
महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु के किसानों को मिल सकता है लाभ
यहां यह बता देना जरूरी है कि भारत की लगभग 49 लाख हेक्टेयर में फैली गन्ने की खेती का लगभग 45% उत्तर प्रदेश में होता है, जो राष्ट्रीय गन्ना उत्पादन में लगभग 45% का योगदान देता है. हालाँकि, प्रति हेक्टेयर सबसे अधिक उपज तमिलनाडु से होती है, उसके बाद कर्नाटक और महाराष्ट्र का स्थान आता है. इस प्रकार, 8% एफआरपी बढ़ोतरी से कीमत पिछले वर्ष के 315 रुपये से बढ़कर 340 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगी, जिससे संभवतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और बिहार के किसानों को लाभ होगा, जहां कोई अलग एसएपी मौजूद नहीं है.
यूपी में क्यों नहीं काम करेगी गन्ना खरीद मूल्य की बढ़ोतरी
राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह आगामी चुनावों में भाजपा के पक्ष में हो सकता है क्योंकि वे महाराष्ट्र की चीनी बेल्ट में अपना वोट तय करने की जुगत में लगी हुई है. यहां बीजेपी का गठबंधन अजित पवार के साथ होने की संभावना भी बन रही है. इसलिए इस बढ़ोतरी के फायदे राजनीतिक नजरिए से यहां मिल सकते हैं. खासकर महाराष्ट्र की चीनी बेल्ट में, जो कि अजित पवार का ही गढ़ है. एफआरपी से अधिक एसएपी मिलने के कारण उत्तर प्रदेश में यह रणनीति उतनी प्रभावी साबित नहीं हो पाएगी.
चीनी मिल मालिकों के लिए क्यों बढ़ी परेशानी?
इस रणनीति का एक नेगेटिव पहलू भी है. एफआरपी वृद्धि से चीनी मिल मालिकों पर वित्तीय दबाव पड़ेगा. मिल मालिक पहले ही बढ़ी हुई लेबर कॉस्ट और ईंधन लागत से जूझ रहे हैं. इस वर्ष कर्नाटक और महाराष्ट्र में बदले हुए मौसम के कारण फसल में कमी देखी गई, जिससे उपज लगभग 10-30% प्रभावित हुई. परिणामस्वरूप, देश में कुल चीनी उत्पादन पिछले साल के 37 मिलियन टन से लगभग 10% कम होने का अनुमान है. हालांकि घरेलू खपत के लिए पर्याप्त है, लेकिन सरकार द्वारा लगाए गए चीनी निर्यात प्रतिबंधों ने चीनी मिल मालिकों की परेशानियों को और बढ़ा दिया है.
साफ शब्दों में कहें तो एफआरपी बढ़ोतरी कुछ राज्यों में किसानों को थोड़े समय के लिए राहत दे सकती है, लेकिन यह गन्ना उद्योग के सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों का समाधान करने में विफल है. विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में यह कारगर नहीं दिखती.