अयोध्या में राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को खत्म करने के बाद बीजेपी अपने घोषणापत्र के तीसरे सबसे अहम एजेंडे समान नागरिक संहिता (Uniform civil code) पर आगे बढ़ रही है. साल 2024 के चुनाव से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड के इर्द-गिर्द सियासी शोर और भी बढ़ने के आसार हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में समान नागरिक संहिता का जिक्र कर इसके संकेत दे दिए हैं.
बीजेपी नेतृत्व समान नागरिक संहिता को लेकर जितना अड़ा हुआ दिख रहा है. समाज के दूसरे वर्गों से इसका उतना ही तीव्र और तीखा विरोध भी सुनने को मिल रहा है. यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का सबसे प्रखर विरोध मुस्लिम समाज से हो रहा है. लेकिन भारत के आदिवासी समाज में भी केंद्र सरकार की इस कोशिश के खिलाफ विरोध के आवाज बुलंद हैं.
आदिवासी समाज ने यूसीसी का ये कहकर विरोध किया है कि अगर ये कानून लागू हो गया तो उनकी स्वतंत्र अस्मिता सवालों के घेरे में आ जाएगी. आदिवासियों का कहना है कि इस कानून से उनके विवाह, तलाक, बंटवारा, गोद लेने, विरासत और उतराधिकार समेत कानून प्रभावित होंगे.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने भी यूसीसी से आदिवासियों के हित प्रभावित होने का मुद्दा उठाया है. सीएम बघेल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में, हमारे पास आदिवासी लोग हैं. उनकी मान्यताओं और रूढ़िवादी नियमों का क्या होगा जिनके माध्यम से वे सैकड़ों सालों से अपना समाज चलाते आ रहे हैं? अगर यूसीसी लागू हो गया तो उनकी परंपरा का क्या होगा?
बता दें कि यूसीसी कई कानूनों संग्रह है. संसद से पास होने पर ये कानून देश के सभी नागरिकों पर एक समान तरीके से लागू होगी. चाहे वे किसी भी धर्म के हों. इस कानून के दायरे में शादी, तलाक, गोद, विरासत और उत्तराधिकार आएंगे.
UCC पर PM मोदी ने क्या कहा?
मंगलवार को पीएम मोदी ने भोपाल में मेरा बूथ सबसे मजबूत कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यूसीसी का मुद्दा उठाया. पीएम मोदी ने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर आजकल मुस्लिमों को भड़काया जा रहा है. उन्होंने कहा कि एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा कानून हो तो क्या घर चल पाएगा? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? हमें याद रखना है कि भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है.
UCC पर आदिवासियों का विरोध
यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ झारखंड की राजधानी में 26 जून को 20 से ज्यादा अलग अलग आदिवासी संगठनों ने अपनी आवाज बुलंद की. ट्राइबल संगठनों को ये डर है कि अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाती है तो आदिवासी समाज की पहचान ही खत्म हो जाएगी. इतना ही नहीं जमीन से जुड़े सीएनटी, एसपीटी और पेसा कानून पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा. बैठक के बाद आदिवासी नेता देव कुमार धान ने बताया कि कॉमन सिविल कोड आदिवासी समाज पर लागू नहीं हो सकता है. क्योंकि ये संविधान के खिलाफ होगा.
विवाह, तलाक, विभाजन और उत्तराधिकार पर होगा असर
आदिवासी नेता देवकुमार धान ने कहा कि समान नागरिक संहिता पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों में लागू ही नहीं हो सकता है. लिहाजा, केंद्र सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए इसे लेकर आगे बढ़ रही है. देव कुमार धान ने कहा कि आदिवासी समाज परंपराओं, प्रथाओं के आधार पर चलता है और यूसीसी यानी कि एक समान कानून लागू होने से आदिवासियों की अस्मिता ही खत्म हो जाएगी. उन्होंने बताया कि यूसीसी कैसे आदिवासियों को प्रभावित कर सकता है. देवकुमार धान ने इसे बिंदूवार बताया.
1. आदिवासियों के सभी प्रथागत कानून खत्म हो जाएंगे.
2. CNT यानी कि छोटानगपुर टेनेंसी एक्ट, संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा एक्ट के तहत आदिवासियों को झारखंड में जमीन को लेकर विशेष अधिकार हैं, आदिवासियों को भय है की यूसीसी के लागू होने से ये अधिकार खत्म हो जाएंगे.
3. यूसीसी के लागू होने से पूरे देश में विवाह, तलाक, विभाजन, गोद लेने, विरासत और उतराधिकार एक समान हो जाएगा लेकिन आदिवासी जिनके रीति-रिवाज और परंपराएं अलग हैं और सदियों से चले आ रहे हैं, अगर उनके कानून UCC के दायरे में आएंगे तो उनके अस्तित्व पर ही संकट आ जाएगा. आधुनिकता की मार खाए आदिवासी समाज पहले ही आगे हैं.
4. आदिवासियों का तर्क है कि UCC के लागू होने से महिलाओं को संपत्ति का सामान अधिकार मिल जाएगा. ऐसे में अगर कोई गैर आदिवासी एक आदिवासी महिला से शादी करता है तो उसकी अगली पीढ़ी की महिला को जमीन का अधिकार मिलेगा. जिससे कि आदिवासियों के जमीन से जुड़े हित प्रभावित होंगे. इसके बाद आदिवासी भूमि जिसकी खरीद बिक्री पर अभी रोक है उसे हड़पने की होड़ लग जाएगी.
झारखंड में आदिवासी महासभा के बैनर तले चल रहे इस विरोध को उन्होंने हर ग्राम पंचायत तक पहुंचाने का फैसला किया है.
2019 में 14 में से 11 सीटें जीती थी बीजेपी
बता दें कि आदिवासी बहुल झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं. 2019 में पार्टी ने यहां 11 सीटें जीती थीं. इस लिहाज से ये राज्य बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है.
आदिवासी संस्कृति और प्रथाओं का क्या होगा- बघेल
झारखंड के बाद देश के दूसरे आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में भी इसका विरोध हो रहा है. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने पीएम मोदी से सीधा सवाल पूछा है कि यूसीसी के लागू होने के बाद आदिवासी संस्कृति और प्रथाओं का क्या होगा.
भूपेश बघेल ने कहा, "बीजेपी हर मुद्दे को हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से क्यों देखती है? छत्तीसगढ़ में, हमारे पास आदिवासी लोग हैं उनकी मान्यताओं और रूढ़िवादी नियमों का क्या होगा जिनके माध्यम से वे अपने समाज पर शासन करते हैं? अगर यूसीसी लागू हो गया तो उनकी परंपरा का क्या होगा?”
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा कि हिन्दुओं में भी कई जाति समूह हैं जिनके अपने नियम हैं. उन्होंने कहा, "हमारा देश एक खूबसूरत गुलदस्ते की तरह है जहां अलग-अलग धर्मों को मानने वाले, विभिन्न भाषाएं बोलने वाले, विभिन्न संस्कृतियों का पालन करने वाले लोग हैं. हमें उन्हें भी देखना होगा."
2019 में छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटें बीजेपी जीती थी. इसलिए अगर छत्तीसगढ़ में UCC को लेकर आदिवासियों का विरोध गहराता है तो बीजेपी के सामने इससे निपटने की अहम चुनौती होगी.
पूर्वोत्तर में UCC का विरोध
यूनिफॉर्म सिविल कोड का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध हो रहा है. सेवन सिस्टर्स नाम के मशहूर भारत के इन सात राज्यों में असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैण्ड में आदिवासी अपनी अनूठी संस्कृति के साथ रहते हैं. इन आदिवासी समाज में बहुपति और बहुपत्नी की प्रथा है. ये आदिवासी अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों को लेकर काफी संवेदनशील हैं. इसमें जरा सा भी दखल का वे उग्र और हिंसक विरोध करते हैं.
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मिजोरम, नागालैंड और मेघालय में आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक है. 2011 की जनगणना के मुताबिक इन राज्यों में आदिवासियों की जनसंख्या क्रमश: 94.4%, 86.5% और 86.1% है.
मिजोरम की विधानसभा ने फरवरी 2023 में एक प्रस्ताव पारित कर UCC लागू करने से जुड़े किसी भी कदम का विरोध किया था. यहां के स्थानीय कायदे-कानूनों की सुरक्षा की गारंटी संविधान भी लेता है. मिजोरम के मामले में, संविधान का अनुच्छेद 371G स्पष्ट करता है कि संसद का कोई भी कानून जो मिजो जातीय समूह की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं को प्रभावित करता है, मिजोरम पर लागू नहीं हो सकता जब तक कि राज्य की विधानसभा इस मामले में सहमति न दे.
मिजो नेशनल फ्रंट के नेता थंगमविया ने कहा था कि सिद्धांत के रूप में यूसीसी की चर्चा करना आसान है लेकिन इसे मिजोरम में लागू नहीं किया जा सकता है. अगर इसे लागू किया गया तो यहां कड़ा विरोध होगा.
मेघालय में आदिवासियों की आबादी 86.1% है. अंग्रेजी अखबार द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार मेघालय की खासी हिल्स ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल(KHADC) ने 24 जून को एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि UCC खासी समुदाय के रीति-रिवाजों, परंपराओं, प्रथाओं, शादी और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को प्रभावित करेगा.
KHADC के मुख्य कार्यकारी सदस्य पाइनिएड सिंग सियेम ने कहा कि परिषद ने सर्वसम्मति से केंद्र से आग्रह किया कि संविधान की छठी अनुसूची के तहत खासी समुदाय के हितों की रक्षा और संरक्षण के लिए केएचएडीसी के अधिकार क्षेत्र के भीतर यूसीसी को लागू न करे.
मेघालय में खासी, गारो और जंयतिया समुदाय के अपने नियम हैं. ये तीनों ही मातृसत्तात्मक समुदाय हैं और इनके नियम निश्चित रूप से यूसीसी से टकराएंगे.
नागालैंड में नागालैंड बेपटिस्ट चर्च काउंसिल (NBCC) के अलावा नागालैंड ट्राइबल काउंसिल (NTC) ने भी यूसीसी का विरोध करने की घोषणा की है. नागालैंड ट्राइबल काउंसिल का कहना है कि UCC संविधान के अनुच्छेद 371 A के प्रावधानों को कमजोर करेगा.
इसमें कहा गया है कि, नागाओं की धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं, नागा परंपराओं, कानून और प्रक्रिया से जुड़े मामलों में संसद का कोई अधिनियम राज्य पर लागू नहीं होगा. अनुच्छेद 371 A नागालैंड से जुड़ा है. इसके अनुसार संसद बिना नागालैंड की विधानसभा की मंजूरी के नागा धर्म से जुड़ी हुई सामाजिक परंपराओं, पारंपरिक नियमों, कानूनों, नागा प्रथाओं के मामले में कानून नहीं बना सकती है.
इसकी बानगी 2017 में देखने को मिली थी जब अदालत के आदेश के बाद राज्य में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण के साथ नगर निगम चुनाव कराने का फैसला राज्य सरकार ने लिया था. इस फैसले के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा और अशांति हुई इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री टीआर ज़ेलियांग को इस्तीफा देना पड़ा था.