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'न बजट होगा, न घाटे की कोई शिकायत करेगा...', लखनऊ के नवाब का मशहूर किस्सा

बजट देश का सबसे अहम दस्तावेज होता है जिसमें सरकार आने वाले साल के लिए खर्चे का ब्यौरा देती है. किसी भी देश या राज्य को चलाने के लिए बजट बनाने की परंपरा काफी पुरानी है. राजा-महाराजा और नवाबों के दौर में भी बजट की परंपरा थी और हुकूमत के खर्चे और राजस्व का हिसाब रखा जाता था.

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लखनऊ के नवाब का बजट के जुड़ा मशहूर किस्सा
लखनऊ के नवाब का बजट के जुड़ा मशहूर किस्सा

आज केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का बजट पेश किया. टैक्स पर उनके ऐलान को सुनकर लोग खुशी से झूम उठे. हर साल बजट से पहले लोगों की धड़कनें बढ़ जाती हैं. बजट देश का सबसे अहम दस्तावेज होता है जिसमें सरकार आने वाले साल के लिए खर्चे का ब्यौरा देती है. किसी भी देश या राज्य को चलाने के लिए बजट बनाने की परंपरा काफी पुरानी है. राजा-महाराजा और नवाबों के दौर में भी बजट की परंपरा थी और हुकूमत के खर्चे और राजस्व का हिसाब रखा जाता था.

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बजट से जुड़ा अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह का एक किस्सा लखनऊ की गलियों में काफी मशहूर है. हालांकि इस किस्से का कोई आधिकारिक स्रोत नहीं है. यह लोककथाओं और जनश्रुतियों से लिया गया है. यह किस्सा एक मौखिक परंपरा का हिस्सा है और इसका कोई लिखित ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है.

बजट से जुड़ा अवध के नवाब का किस्सा

नवाब वाजिद अली शाह अपने ठाट-बाट और शाही खर्चों के लिए मशहूर थे. शाही खान-पान और नृत्य-संगीत से उनका दरबार हमेशा सजा रहता था. लेकिन धीरे-धीरे दरबार की इसी शान-ओ-शौकत का बोझ राज्य के खजाने पर पड़ने लगा.

नवाब की बेफिक्री, घटते राजस्व और दिन-ब-दिन बढ़ते सरकारी खर्च से वाजिद अली शाह के वित्त मंत्री की चिंता बढ़ने लगी. लिहाजा एक दिन देखकर उन्होंने नवाब से गुजारिश करते हुए कहा कि 'हुजूर, खर्चों में कटौती बेहद जरूरी जान पड़ती है, इसका बोझ राज्य के बजट पर पड़ रहा है.'

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नवाब ने दिया अनोखा हल

अपने मसनद पर बैठे नवाब ने मंत्री की पूरी बात सुनी और मुस्कुराते हुए कहा, 'अरे, अगर खर्च कम करना है तो सबसे पहले हुकूमत में बजट बनाने की परंपरा ही खत्म कर दो. जब बजट बनेगा ही नहीं, खर्चे का लेखा-जोखा ही नहीं होगा तो उसके घाटे की शिकायत कौन करेगा?'

वित्तीय दबाव से निपटने के लिए नवाब के इस अनोखे हल को सुनकर सारे अमीर-उमराव हंस पड़े लेकिन वित्त मंत्री के माथे पर बल पड़ गए. कालांतर में नवाब के इसी खर्चीले अंदाज का अंजाम यह हुआ कि कुछ ही साल बाद अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा कर लिया और नवाब वाजिद अली शाह को सत्ता छोड़नी पड़ी.

कौन थे नवाब वाजिद अली शाह?

नवाब वाजिद अली शाह अवध के अंतिम नवाब थे, जिनका शासन 1847 से 1856 तक चला. उनका शासनकाल 9 साल तक रहा. 1856 में अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा कर लिया और उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी. अंग्रेजों को अवध की समृद्धि और रणनीतिक स्थिति चाहिए थी. उन्होंने वाजिद अली शाह के शासन को 'कुशासन' करार दिया और इसे ब्रिटिश शासन के लिए खतरा बताया.

ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने यह तर्क दिया कि वाजिद अली शाह एक अक्षम शासक हैं और प्रशासन सही तरीके से नहीं चला पा रहे हैं. इसी बहाने 11 फरवरी 1856 को अंग्रेजों ने अवध पर अधिकार कर लिया. जब अंग्रेजों ने अवध का शासन छीन लिया, तो वाजिद अली शाह ने इसका विरोध किया, लेकिन सैन्य ताकत न होने के कारण वे मजबूर हो गए. 

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वतन के दूर बिताए अंतिम 30 साल

उन्हें कलकत्ता (अब कोलकाता) भेजकर नजरबंद कर दिया गया, जहां वे मेटियाब्रुज इलाके में शरण लेने को मजबूर हुए. अवध की जनता, विशेष रूप से बेगम हजरत महल (वाजिद अली शाह की पत्नी), ने 1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया. लेकिन अंग्रेज़ों ने क्रूरता से इसे दबा दिया. कलकत्ता में वाजिद अली शाह का 1 सितंबर 1887 को निधन हो गया. वह अपने जीवन के अंतिम 30 साल अपने वतन से दूर ही रहे.

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