बीजेपी ने मॉनसून सत्र के ठीक पहले 38 छोटे दलों के साथ एनडीए का कुनबा बढ़ाने की पेशबंदी की है. संसद का मॉनसून सत्र 20 जुलाई से शुरू हो चुका है जो 12 अगस्त तक चलेगा. इसी सत्र में ही संभावना है कि यूसीसी से जुड़ा बिल इसमें पेश होगा. हालांकि लॉ कमीशन की तरफ से इस पर लोगों से राय लेने के लिए तारीख 14 जुलाई थी लेकिन अब ये तारीख बढ़ाकर 28 जुलाई कर दी गई है. लिहाजा सूत्रों का ये कहना है कि यूसीसी पर बिल कम से कम इस मॉनसून सत्र में लाने की संभावना ना के बराबर रह है.
दूसरी ओर पसमांदा मुसलमानों की सबसे बड़ी संस्था आरएमपीएम यानि राष्ट्रवादी मुस्लिम पसमांदा महाज़ ने समान नागरिक संहिता पर पसमांदा मुसलमानों के साथ संवाद लखनऊ में शुरू कर दिया है, जिसमें भाजपा संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति के सदस्य और भारत सरकार के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष आरएमपीएम आतिफ रशीद, यूपी विधान परिषद में उपनेता विद्यासागर सोनकर, यूपी सरकार में मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी और यूपी अल्पसंख्यक आयोग के यूपी अध्यक्ष अशफाक सैफी भी शिरकत कर रहे हैं.
राष्ट्रीय अध्यक्ष आरएमपीएम आतिफ रशीद ने बताया कि 27 जुलाई से एनसीआर के गाजियाबाद से शुरू होकर पूरे देश में “पसमांदा स्नेह यात्रा” निकलेगी. आपको याद होगा कि बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा पसमांदा मुसलमानों के बीच पैठ बनाने के लिए सक्रिय है. इस वोट बैंक को कितनी संजीदगी से लिया जा रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि पीएम मोदी के मन की बात का उर्दू में अनुवाद कर इस वर्ग के मुसलमानों को दिया गया.
यूपी निकाय चुनाव से मिला आउटरीज आइडिया
यूपी निकाय चुनाव में 391 मुस्लिम उम्मीदवारों में से 61 की जीत हुई थी. इसके अलावा योगी कैबिनेट में इकलौते मुस्लिम मंत्री दानिश आजाद भी पसमांदा समाज से आते हैं. चेयरमैन की 5 सीटों पर बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार जीते. जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा के लिए नॉमिनेट होने वाले गुलाम अली खटाना गुर्जर मुस्लिम हैं. बीजेपी के कोटे से ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वीसी रहे चुके तारिक मंसूर विधान परिषद के सदस्य हैं.
सपा और बसपा की काट बनेंगे पसमांदा
आतिफ ने बताया कि सैफी, अंसारी, अल्वी, कुरैशी, मंसूरी, इदरीसी, सलमानी, रायन समुदाय अधिकतर पसमांदा ही हैं. दर्जी, धोबी, नाई, कसाई, मेहतर, धुनिया और जुलाहे का काम पेशेवराना तौर पर अपनाने वाले पसमांदा ही हैं जो कई सालों से उपेक्षित हैं, इनके पास नौकरी नहीं है. अभी तक मुस्लिम परंपरागत रूप से सपा और बसपा का वोटर रहा है, लेकिन यूपी निकाय चुनाव से बीजेपी को लगता है कि दोनों पार्टियों के कोर वोटर में सेंध आसानी से नहीं लगाई जा सकती. लिहाजा पसमांदा नेताओं पर दांव लगाया है. ना केवल यूपी बल्कि एमपी, बिहार में भी इसका काफी असर होगा. ठीक उसी तरह से जैसे बसपा में गैर जाटव और सपा में गैर यादव ओबीसी को बीजेपी ने साधा है. बीजेपी की एंटी मुस्लिम छवि कितनी बदलेगी ये तो 2024 के आम चुनाव में आए परिणामों से पता चलेगा हालांकि इससे पहले 5 राज्यों एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और हरियाणा में इसका लिटमस टेस्ट हो जाएगा.