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एक तरफ नदी, दूसरी तरफ रेलवे ट्रैक...प्रतापगढ़ के इस गांव को कहा जा रहा है 'डेंजर जोन'

सोनावा गांव के लोगों का कहना है कि रेलवे लाइन क्रॉस करके जो आने-जाने का जरिया था, अब वो भी बंद करने की तैयारी की जा रही है, ट्रैक के बगल में दीवार बनने वाली है. इसके अलावा क्रॉसिंग के एक छोर पर पिलर लगाया जा चुका है और दूसरी छोर पर गड्ढे खोदे गए हैं. वहीं, क्षेत्र के विधायक का कहना है कि मैंने इस मसले पर DRM से बात करके हल निकालने की अपील की है.

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एक तरफ नदी, दूसरी तरफ रेलवे ट्रैक...प्रतापगढ़ के इस गांव को कहा जा रहा है 'डेंजर जोन'
एक तरफ नदी, दूसरी तरफ रेलवे ट्रैक...प्रतापगढ़ के इस गांव को कहा जा रहा है 'डेंजर जोन'

तू किसी रेल सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूं.

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दुष्यंत कुमार की क़लम से निकला ये शेर ना जाने किसके लिए था लेकिन यह उस छोटे से गांव के लिए बिल्कुल फिट बैठता है, जिसकी दहलीज़ हर पल ट्रेनों की आवाजाही से थरथराती और कांपती रहती है. 21वीं सदी के भारत में जहां पर बच्चे, बूढ़े और जवान अपनी जान हथेली पर लेकर रेलवे के तीन-तीन ट्रैक क्रॉस करते हैं. जहां पर हर वक़्त आंखों में एक कश्मकश झलकती रहती है कि कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए.

Sonava Pratapgarh
सोनावा गांव के बगल से गुजरे तीन रेलवे ट्रैक

बात हो रही है उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रतापगढ़ (Pratapgarh) जिले के एक छोटे से गांव सोनावा (Sonava) की, जो डीएम ऑफिस से करीब 7-8 किलोमीटर ही दूर है. गांव के एक तरफ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर तीन रेलवे ट्रैक गुजरे हुए हैं. वहीं, गांव के दूसरी तरफ नदी है. ऐसे में गांव के लोगों को रेलवे ट्रैक से गुज़रने के लिए मज़बूर होना पड़ता है.

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Sonava Pratapgarh
गांव के पीछे से गुजरने वाली बकुलाही नदी

बकुलाही नदी और तीन रेलवे ट्रैक्स से घिरी क़रीब तीन हज़ार की आबादी वाली ये जगह महज़ एक ज़मीन का टुकड़ा नहीं बल्कि जिले के ही नागरिकों का आशियाना है, जहां पर ज़िंदगियां आसमान में उड़ान भरने के ख़्वाब देखती हैं. लेकिन 21वीं सदी के भारत में छोटे-छोटे मासूम बच्चों को स्कूल पहुंचने से पहले रेलवे ट्रैक के नुकीले पत्थरों और हादसे की संभावनाओं से जंगें लड़नी पड़ती है

snava pratapgarh
रेलवे ट्रैक क्रॉस करते गांव के बुजुर्ग

सोनावा गांव के लोगों का कहना है कि रेलवे लाइन क्रॉस करके जो आने-जाने का ज़रिया था, अब वो भी बंद करने की तैयारी की जा रही है, ट्रैक के बगल में दीवार बनने वाली है. इसके अलावा क्रॉसिंग के एक छोर पर पिलर लगाया जा चुका है और दूसरी छोर पर गड्ढे खोदे गए हैं.

Sonava Pratapgarh

गांव की निवासी रामा देवी कहती हैं, "हमें आने-जाने, खाने-कमाने हर तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. शादी-ब्याह होने पर पैदल बारात आती है, दूल्हे-दुल्हन को किसी तरह बाइक पर बैठाकर लाया जाता है. अगर निकास नहीं होगा तो क्या हम लोग उसमें फंस के मरेंगे? बच्चे और जानवर कहां जाएंगे? हम लोग गिरते-पड़ते लाइन क्रॉस करते हैं. अब घर के बाहर की भी जगह लेने की तैयारी चल रही है."

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Sonava Pratapgarh

वो आगे कहती हैं कि हम प्रशासन से मांग करते हैं कि हमारा गांव सुरक्षित हो और जो अब घेराव करने की तैयारी चल रही है, उसको रोका जाए.

जिलाधिकारी आवास पर हो चुका है प्रदर्शन
 
गांव के पूर्व बीडीसी सदस्य रिज़वान कहते हैं, "यहां पर तीन रेलवे ट्रैक होने से इतना ज़्यादा तकलीफ़ है कि साइकिल पार करना भी मुसीबत होती है. आए दिन यहां के लोगों, बच्चों और जानवरों के साथ हादसे होते रहते हैं."
 
रिज़वान बताते हैं कि हमने अपनी समस्या को लेकर जिलाधिकारी आवास पर प्रदर्शन किया, चिलबिला रेलवे स्टेशन पर डीआरएम साहब आए हुए थे, वहां हम लोग गए लेकिन उनसे मिलने नहीं दिया गया. अब तक तो क्रॉस करके और ट्रैक के किनारे आवाजाही हो रही थी लेकिन अब ट्रैक के बगल बाउंड्री करने की भी कवायद शुरू हो चुकी है.

Sonava Pratapgarh


 
वो आगे कहते हैं कि रेलवे ट्रैक बनने से पहले हमारा गांव बसा था. शुरू में यहां पर फाटक लगा हुआ था लेकिन उसको हटाकर कहीं और लगा दिया गया. हम लोग क्या करें, हमारी कोई नहीं सुनता है. अगर हमारी मांग नहीं सुनी जाएगी, तो हम रेलवे जाम करेंगे.
 
'सांसद से मिला आश्वासन लेकिन नहीं हुई सुनवाई...'

ग्रामीण आसिफ कहते हैं कि हमारे गांव में रास्ता नहीं है, पूरे गांव और समाज को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. अब घेराबंदी होने के बाद हम किधर से आएंगे-जाएंगे. हमारे पास धरना देने के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं. जब संगम लाल गुप्ता सांसद थे, तो कई बार आए और उन्होंने रास्ता बनवाने को लेकर वादा किया लेकिन बात बनाकर चले जाते हैं. अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई.
उन्होंने आगे बताया, "विधायक जी यहां तो नहीं आए लेकिन उनसे मिलने हम लोग गए थे. उन्होंने कहा कि हम बनवाएंगे, प्रशासन को भेजेंगे लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ. इस गांव में कुछ होता ही नहीं है."

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Sonava Pratapgarh

आसिफ कहते हैं कि बिना रेलवे लाइन क्रॉस किए बच्चों को स्कूल नहीं पहुंचाया जा सकता है. हम लोग बच्चों का हांथ पकड़कर रेलवे लाइन क्रॉस करवाते हैं. अगर बच्चे अचानक अकेले आ जाएं, तो हादसे का शिकार हो सकते हैं.
 
'अचानक आई ट्रेन से हादसे का शिकार हुआ पालतू जानवर'

गांव की बुज़ुर्ग महिला असीमुल कहती हैं, "मैं एक दिन ट्रैक क्रॉस करते हुए गिर गए, चोट लग गई और उस वक्त कोई उठाने वाला नहीं था. हम लोग को बहुत मुसीबत है."

उन्होंने आगे बताया कि एक दिन मैं अपनी गाय लेकर आ रही थी और अचानक ट्रेन आ गई, मैं भागी और बच गई लेकिन मेरी गाय हादसे का शिकार हो गई. मैंने उसको छोड़ दिया था, नहीं तो मैं भी उसी में चली जाती. सरकार से मेरी मांग है कि हमें आने-जाने का रास्ता दिया जाए.

Sonava Pratapgarh

गांव की एक अन्य बुज़ुर्ग महिला बताती हैं कि जब लोग बीमार होते हैं, महिलाएं प्रैग्नेंट रहती हैं तो रेलवे ट्रैक की वजह से उनको वाहन से नहीं ला सकते. जो आंख से कमज़ोर बुज़ुर्ग हैं, उनके लिए बहुत मुश्किल होती है.
 
'कष्टदायी स्थिति है, समाधान होगा...'

प्रतापगढ़ की सदर विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक राजेंद्र प्रसाद मौर्या 'aajtak.in' से बातचीत में कहते हैं, "तीन रेलवे ट्रैक के बगल बसे लोगों के लिए निश्चित रूप से बहुत कष्टदायी स्थिति है. क़रीब पंद्रह दिनों पहले जब लाइन को कवर करने का प्रोग्राम शुरू हुआ, तो स्थानीय लोग मेरे पास आए थे. मैं सोनावा के एक-एक इंच से परिचित हूं, वहां के लोगों से वादा करता हूं कि उनकी समस्या का समाधान होगा."

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Sadar MLA on Sonava tracks
सदर विधानसभा सीट से विधायक राजेंद्र प्रसाद मौर्या

उन्होंने आगे कहा कि अभी तक तो किसी तरह वो लोग पैदल निकल सकते थे और ट्रैक किनारे से भी आवाजाही होती थी लेकिन अब फास्ट ट्रेन चलने वाली है और वहां पर बड़ी दुर्घटना से बचने के लिए रेलवे और सरकार ने लाइन के बगल बैरिकेडिंग करने का फैसला लिया है. मैं हृदय से कोशिश करूंगा कि गांव वालों को दूसरी तरफ से या फिर पीछे की ओर से रास्ता मिल सके.
 
विधायक राजेंद्र प्रसाद मौर्या ने कहा, "मैंने इस संबंध में डीआरएम से बात की, इस मसले पर हल निकालने की अपील की. उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि स्थानीय निरीक्षण और फोटोग्राफ़ी करके भेजिए, मैं उसका हल निकालने की कोशिश करता हूं."

कई अन्य इलाक़ों में भी इस तरह की समस्याएं...

विधायक राजेंद्र प्रसाद मौर्या ने बताया कि मेरे क्षेत्र में परसरामपुर, जगेसरगंज, मदाफ़रपुर और नरहरपुर जैसे गांवों के लोग इस समस्या से त्रस्त हैं. कहीं पांच, कहीं दस और कहीं बीस हजार की आबादी में लोग रहते हैं. हम उनकी समस्याओं के समाधान की कोशिश कर रहे हैं, देखते हैं कितनी सफलता मिलती है.

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