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उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का पेच फंस गया है. यूपी सरकार ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का ड्राफ्ट जारी किया था. इस ड्राफ्ट में बताया था कि नगरीय निकायों की 762 सीटों में से कितनी ओबीसी के लिए होंगी. लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस ड्राफ्ट को रद्द कर दिया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि या तो सरकार सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय 'ट्रिपल टेस्ट' का फॉर्मूला अपनाकर ओबीसी आरक्षण दे या फिर बगैर ओबीसी आरक्षण के ही चुनाव करवा ले.
इस पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी साफ कर दिया है कि बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव नहीं कराए जाएंगे. उन्होंने कहा कि सरकार एक आयोग का गठन कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर ओबीसी को आरक्षण देगी और उसके बाद ही चुनाव होंगे.
हालांकि, यूपी इकलौता राज्य नहीं है जहां नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मसले को लेकर विवाद हुआ है. इससे पहले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड में भी नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर बवाल हो चुका है.
उत्तर प्रदेश में ओबीसी का क्या है गणित?
किस राज्य में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी कितनी है? इसका आखिरी आंकड़ा 2011-12 का है.
सामाजिक न्याय विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2011-12 में देशभर में 44 फीसदी आबादी ओबीसी थी. वहीं, उत्तर प्रदेश में लगभग 55 फीसदी आबादी ओबीसी है. यानी, यूपी में हर 100 में से 55 लोग ओबीसी हैं.
ओबीसी आबादी बीजेपी का बड़ा वोट बैंक माना जाता है. लोकसभा चुनाव का ट्रेंड बताता है कि 10 साल में बीजेपी के लिए ओबीसी वोटों का समर्थन दोगुना हो गया है. चुनाव बाद हुए सर्वे में अनुमान लगाया गया था कि 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 22 फीसदी ओबीसी वोट मिले थे, जो 2019 में बढ़कर 44 फीसदी हो गए.
इसी तरह उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 46 फीसदी ओबीसी वोट मिले थे. 2022 के चुनाव में भी बीजेपी को करीब 65 फीसदी वोट ओबीसी के मिले थे. चुनाव के बाद योगी सरकार की कैबिनेट में भी 20 ओबीसी विधायकों को शामिल किया गया था.
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक, 2020-21 में ओबीसी की आबादी 44 फीसदी के आसपास होने का अनुमान है. वही, एससी 21 फीसदी और एसटी की आबादी लगभग 10 फीसदी है.
अब बात ओबीसी आबादी की?
भारत में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी. तभी से हर 10 साल में जनगणना होती आ रही है. उस समय जातियों के आंकड़े भी जुटाए जाते थे. 1931 तक जातियों के आंकड़े जारी किए जाते थे. 1941 में भी जातियों के आंकड़े जुटाए गए, लेकिन उसे जारी नहीं किया गया.
आजादी के बाद 1951 में जब जनगणना हुई, तब सरकार ने तय किया कि सिर्फ अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आंकड़े ही जुटाए जाएंगे. इसके बाद से सिर्फ एससी और एसटी के आंकड़े ही जारी होते हैं.
लिहाजा, ओबीसी की सही आबादी के आंकड़े मौजूद नहीं हैं. 1989-90 में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिश को लागू किया. इसने 1931 के जनगणना के आधार पर देश में ओबीसी की 52 फीसदी आबादी होने का अनुमान लगाया.
ओबीसी को कितना आरक्षण?
1992 में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती.
कानूनन आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. अभी देशभर में एससी, एसटी और ओबीसी को जो आरक्षण मिलता है, वो 50 फीसदी की सीमा के भीतर ही है.
अभी देश में 49.5% आरक्षण है. ओबीसी को 27%, एससी को 15% और एसटी को 7.5% आरक्षण दिया जाता है. ये आरक्षण सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मिलता है. इनके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को भी 10% आरक्षण मिलता है.
इस हिसाब से आरक्षण की सीमा 50 फीसदी के पार जा चुकी है. हालांकि, इसी साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग से जुड़े लोगों को आरक्षण देने को सही माना था. पांच जजों की बेंच ने इस आरक्षण को 3-2 से सही ठहराया था.
कहां कितने ओबीसी?
- सरकारी नौकरियों मेंः इस साल जुलाई में सरकार ने संसद में बताया था कि केंद्र के मंत्रालयों और विभागों में 1 जनवरी 2021 तक 4.15 लाख से ज्यादा कर्मचारी ओबीसी वर्ग के थे. यानी, केंद्र के कर्मचारियों में करीब 42 फीसदी ओबीसी कर्मचारी हैं. PLFS के मुताबिक, ओबीसी की साक्षरता दर 78.1% है.
- पढ़ाई-लिखाई मेंः शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 26.52 करोड़ से ज्यादा छात्र स्कूल में पढ़ते हैं. इनमें से करीब 44 फीसदी यानी 11.48 करोड़ छात्र ओबीसी हैं. वहीं, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में 3.85 करोड़ छात्र हैं, जिनमें से 37 फीसदी यानी 1.42 करोड़ ओबीसी हैं.
- रोजगार मेंः पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक, 2020-21 में देश में लेबर फोर्स में ओबीसी की हिस्सेदारी 40.9% रही थी. वहीं, वर्कर पॉपुलेशन रेशो में ओबीसी की हिस्सेदारी 39.2% थी. जबकि, ओबीसी में बेरोजगारी दर 4.2% थी.