आगामी लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया है. तीन पार्टियों बीजेपी, आरएलडी और एसबीएसपी के चार विधायक-एमएलसी मंत्री बनाए गए हैं. सुभासपा की तरफ से खुद पार्टी अध्यक्ष ओपी राजभर को मंत्री पद दिया गया है. हाल ही में एनडीए का हिस्सा बनी आरएलडी के एक विधायक को भी योगी कैबिनेट में शामिल किया गया है.
बीजेपी के एक विधायक और एक एमएलसी को भी मंत्री पद मिला है. कैबिनेट में सुभासपा के ओपी राजभर के अलावा राष्ट्रीय लोक दल की तरफ से अनिल कुमार और बीजेपी की तरफ से विधायक सुनील शर्मा और एमएलसी दारा सिंह चौहान मंत्री बनाए गए हैं.
ओमप्रकाश राजभर का इंतजार खत्म
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं. पिछले साल जब उन्होंने समाजवादी पार्टी छोड़कर एनडीए में वापसी की तभी से उन्हें मंत्री पद मिलने के कयास लगाए जा रहे थे.
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हालांकि, उन्हें यह पद मिलने में छह महीने का वक्त लग गया, जब सामने लोकसभा चुनाव है. ओम प्रकाश राजभर को यूपी कैबिनेट में शामिल करने के पीछे बीजेपी की बड़ी रणनीति, लोकसभा चुनाव को लेकर ही है. उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय चार फीसदी है और पूर्वांचल के जिलों में इसकी अच्छी खासी आबादी है.
पूर्वांचल के 25 जिलों में लोकसभा की 26 सीटें हैं. माना जाता है कि कम से कम एक दर्जन जिले में राजभर समुदाय ही हार-जीत तय करते हैं लेकिन राजभर की पार्टी के पास लोकसभा की शून्य सीट है. ओपी राजभर ने लोकसभा में बीजेपी के सामने पांच सीटों की मांग रखी है.
अनिल कुमार के जरिए बीजेपी-आरएलडी की रणनीति
योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में राष्ट्रीय लोक दल के अनिल कुमार को भी मंत्री पद दिया गया है. यह पद असल में जयंत चौधरी को बीजेपी की तरफ से 'वेलकम गिफ्ट' है, जिनकी पार्टी आरएलडी आगामी लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में पार्टी की अहम सहयोगी होगी. हाल ही में चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के बाद जयंत चौधरी बीजेपी के साथ गठबंधन से 'इनकार नहीं कर पाए' थे.
असल में, आरएलडी के विधायक को योगी कैबिनेट में शामिल करके बीजेपी पश्चिमी यूपी के जाट वोटों को साधने की कोशिश में है. हालांकि, कैबिनेट में शामिल किए गए पार्टी के पुरकाजी के विधायक अनिल कुमार, दलित जाटव समाज से आते हैं. इसके जरिए आरएलडी-बीजेपी गठबंधन पश्चिमी यूपी में दलित मतदाताओं को अपने साथ जोड़ सकेगी.
अब अगर, राष्ट्रीय लोक दल का पिछले लोकसभा चुनाव का पर्फोर्मेंस देखें तो पता चलता है कि पार्टी के कोर वोटर ने ही पार्टी का साथ नहीं दिया. मसलन, पश्चिमी यूपी में लोकसभा की 27 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में अकेले बीजेपी ने 19 सीटें हासिल की. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को चार-चार सीटें मिली थी.
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जाटों की पार्टी कही जाने वाली आरएलडी को शून्य सीट मिली. अब चुकी आरएलडी का बीजेपी के साथ गठबंधन है, तो आगामी लोकसभा चुनाव में खुद जयंत चौधरी और बीजेपी नेतृत्व की पश्चिमी यूपी की अधिक से अधिक सीटें जीतने की कोशिश होगी.
सुनील शर्मा ब्राम्हण वोटों की चाबी
सुनील शर्मा गाजियाबाद में बीजेपी के बड़े ही कद्दावर नेता हैं. उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव में उन्होंने राज्य में सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी. ब्राम्हण समुदाय से आने वाले सुनील शर्मी को मंत्रिमंडल में शामिल करने के पीछे बीजेपी की बड़ी स्ट्रैटेजी लोकसभा चुनाव में ब्राम्हण वोटों को साधने की है.
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लोकसभा चुनाव से पहले सुनील शर्मा को मंत्री बनाए जाने से पश्चिमी यूपी से लेकर बीजेपी को तमाम ब्राम्हण बहुल सीटों पर लाभ मिलेगा. 2022 के विधानसभा चुनाव में सुनील शर्मा ने गाजियाबाद की साहिबाबाद सीट पर 214,386 वोटों से सपा गठबंधन उम्मीदवार अमरपाल शर्मा को हराया था.
दारा सिंह चौहान भी बनाए गए मंत्री
योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में बीजेपी की तरफ से शामिल किए गए नेता में एमएलसी दारा सिंह चौहान भी एक हैं. वह विधान परिषद के रास्ते योगी कैबिनेट में शामिल किए गए हैं. मऊ के मधुबन सीट से वह विधायक रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने इस सीट से जीत दर्ज की थी लेकिन 2022 के चुनाव में टिकट नहीं मिलने की संभावनाओं के बीच उन्होंने बीजेपी छोड़ दी थी.
2022 के विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान ने सपा के टिकट पर घोसी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. हालांकि, सपा को सत्ता नहीं मिली तो दारा सिंह बीजेपी में वापसी कर गए. जुलाई 2023 में उन्होंने सपा छोड़ने के साथ ही विधायकी भी छोड़ दी. अब इस सीट पर जब उपचुनाव हुए तो दारा सिंह हार गए. बीजेपी ने उन्हें बाद में एमएलसी बनाया और अब मंत्री पद से नवाजा है.