सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि मामलों की सुनवाई में देरी के लिए केवल हाईकोर्ट्स में जजों की कम संख्या को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. मामलों के निपटारे के लिए संबंधित अदालतों द्वारा निर्धारित समय-सीमा की कमी, बार-बार स्थगन, समान प्रकृति के मामलों की निगरानी, ट्रैक और समूह बनाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की कमी जैसे कई अन्य कारण हैं, जिससे मामलों की सुनवाई में देरी हो सकती है.
न्यूज एजेंसी के मुताबिक एक लिखित जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि राज्य और केंद्रीय कानूनों की संख्या में वृद्धि, फर्स्ट अपीलों का संचय, कुछ हाईकोर्ट्स में सामान्य नागरिक क्षेत्राधिकार की निरंतरता, सिविल कोर्ट के आदेशों के खिलाफ अपील जैसे कारक शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि 25 जनवरी तक अलग-अलग हाईकोर्ट में 1,114 की स्वीकृत क्षमता के मुकाबले 783 जज कार्यरत थे. 331 जजों के पद फिलहाल खाली हैं. 331 खाली पदों में से जजों की नियुक्ति के लिए 145 प्रस्ताव हाईकोर्ट्स से प्राप्त हुए हैं, जो अलग-अलग चरणों में प्रक्रिया में हैं. हाईकोर्ट्स ने जजों की शेष 186 रिक्तियों के संबंध में अभी तक प्रस्ताव नहीं भेजा है.
बता दें कि पिछले साल संसद में एक सवाल के जवाब में मेघवाल ने बताया था कि 1 दिसंबर तक अदालतों में 5,08,85,856 मामले लंबित हैं. इनमें से 61 लाख से अधिक मामले हाईकोर्ट के स्तर पर हैं. वहीं जिला और अधीनस्थ कोर्ट्स में लंबित मामलों की संख्या 4.46 करोड़ से अधिक है.