ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी मंदिर विवाद पर आज (12 मई) फैसला आना है. इससे पहले अदालत के आदेश के हिसाब से हुए सर्वे और कोर्ट कमिश्नर को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं. वीडियोग्राफी करने गए व्यक्ति ने मस्जिद परिसर में कुछ ऐसी निशानियों के मौजूद होने का दावा किया है, जो इसके मंदिर होने की तरफ इशारा करती है. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने सर्वे और वीडियोग्राफी करने गए कोर्ट कमिश्नर पर ही सवाल उठा दिए. ऐसे में अब कोर्ट जो भी फैसला सुनाता है, उससे जुड़े पूरे मसले को जानना जरूरी है. इस विवाद में शामिल पक्ष अब तक क्या दलील पेश किए हैं और उनका दावा क्या है?
रोक दिया गया था सर्वे
वादी हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर के अंदर सर्वे कराए जाने की मांग अदालत से की थी, जिसपर अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने अपना पक्ष रखने के लिए अदालत से बुधवार तक का समय मांगा था. जब 6 मई से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे शुरू हुआ तो महज डेढ़ दिन बाद ही मुस्लिम पक्ष ने सर्वे के लिए अदालत की तरफ से नियुक्त किए गए कोर्ट कमिश्नर की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा दिए. बड़ा हंगामा हुआ और सर्वे फिर रोक दिया गया था.
ज्ञानवापी के बारे में जो सबसे प्रचलित मान्यता है वो ये है कि इस मस्जिद का निर्माण सन 1664 में मुगल शासक औरंगजेब ने करवाया था. ये भी कहा जाता है कि इस मस्जिद के बनने से पहले यहां मंदिर हुआ करता था और औरंगजेब ने वो मंदिर ध्वस्त कर उसके अवशेषों का इस्तेमाल कर इस मस्जिद का निर्माण करवाया.
मामला 1991 से अदालत में है
इस मामले में साल 1991 में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय ने वादी के तौर पर प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से अदालत में मुकदमा दायर किया. ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1991 से अदालत में है, लेकिन मां श्रृंगार गौरी काम मामला महज 7-8 महीने पुराना है, 18 अगस्त, 2021 में वाराणसी की एक अदालत में यहां की 5 महिलाओं ने मां श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूजा-अर्चना की मांग की. इस याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने श्रृंगार गौरी मंदिर की मौजूदा स्थिति को जानने के लिए एक कमीशन का गठन किया. इसी कड़ी में कोर्ट ने श्रृंगार गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था और हंगामा छिड़ गया.
क्या दावे किए जा रहे हैं?
वाराणसी का जो काशी विश्वनाथ मंदिर है, उससे बिल्कुल सटी हुई ये ज्ञानवापी मस्जिद है और दावा किया जा रहा है कि प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर मस्जिद बनाई गई है. साल 1991 में वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक मुकदमा दायर किया गया. काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास समेत तीन लोगों ने याचिका दायर की. दावा किया गया कि औरंगजेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर उस पर मस्जिद बना दी. लिहाजा ये जमीन उन्हें वापस लौटाई जाए. उनके वकील विजय शंकर रस्तोगी थे. उनसे आजतक ने बात की तो उन्होंने जिन सबूतों को रखा था उनमें ये दो नक्शे हैं.
दूसरा नक्शा पूरे ज्ञानवापी परिसर का है, जिसमें मस्जिद के प्रवेश द्वार के बाद चारों ओर हिंदू-देवताओं के मंदिरों का जिक्र है. वहीं इस कोने में विश्वेश्वर मंदिर है. ज्ञानकूप है. बड़े नंदी हैं. यहीं व्यास परिवार का तहखाना है जिसका सर्वे और वीडियोग्राफी कोर्ट कमिश्नर को करना था. इन्हीं दलीलों के आधार पर विजय शंकर रस्तोगी कोर्ट गए थे.
वहीं, मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट पहुंच गया और 1991 के धर्मस्थल कानून का हवाला देकर कहा कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं दिया जा सकता है. हाई कोर्ट ने स्टे दे दिया मगर 22 साल बाद वाराणसी की अदालत ने परिसर के सर्वे और वीडियोग्राफी का हुक्म दिया ताकि ये पता लग सके कि ज्ञानवापी परिसर में वाकई मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी थी या मस्जिद का इलाका अलग है?
व्यास परिवार का दावा- जमीन उनकी है
जमीन के मालिकाना हक का दावा करने वाला व्यास परिवार आज भी सालाना श्रृंगार गौरी की पूजा करता है. उसके वंशज दावा करते हैं कि जमीन उनकी है, भले ही उसके ऊपर वो मस्जिद है, जिसे लेकर विवाद है. इलाहाबाद हाईकोर्ट से पहले आगरा हाईकोर्ट था। उसने तय किया कि जमीन का मालिकाना हक व्यास परिवार का है, लेकिन उस पर बनी मस्जिद मुसलमानों की है. आज भी व्यास परिवार इस फैसले को मानता आ रहा है.
व्यास परिवार का दावा है कि मुस्लिम पक्ष के पास जमीन का एक भी कागज नहीं है. वहीं मुस्लिम पक्ष भी ये मानता है कि ज्ञानचंद व्यास की जमीन पर मस्जिद बनी है, मगर उसके मुताबिक ज्ञानचंद व्यास ने अपनी जमीन मस्जिद को अपनी मर्जी से दी थी. व्यास परिवार के वकील इंद्र प्रकाश हैं.
मुश्किल मामला हैः शाही इमाम, जामा मस्जिद
इधर, जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना हसीन असमद हबीबी का कहना है कि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये औरंगजेब से पहले की बात है, लेकिन हिंदू पक्ष इन तस्वीरों और नक्शे के साथ ही मालिकाना हक के दस्तावेजों के साथ अदालत में अपनी दलील रख रहा है. अयोध्या के बाद अदालत के सामने ये एक और बेहद मुश्किल मामला है.