उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने में अब 5 दिन का समय बचा है, लेकिन अभी तक उम्मीदवार के नाम तय नहीं हो पाए हैं. अभी तक न तो एनडीए ने अपना उम्मीदवार बताया है और न ही विपक्ष ने. इतना ही नहीं, उम्मीदवार कौन होगा? इस बारे में कोई अनौपचारिक बयान भी सामने नहीं आया है.
सूत्रों का कहना है कि जल्द ही बीजेपी की संसदीय बोर्ड की मीटिंग होनी है, जिसमें उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार के नाम पर फैसला होगा. उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी दूसरी पार्टियों से भी समर्थन मांगेगी, क्योंकि विपक्ष की ओर से भी किसी उम्मीदवार को उतारे जाने की पूरी संभावना है.
दूध का जला, छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है
विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया है, लेकिन इसी वजह से अब विपक्ष उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित करने में जल्दबाजी नहीं कर रहा है.
यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ये दिखाने में जल्दबाजी कर दी कि आम सहमति बन गई है और तृणमूल कांग्रेस पहल कर रही है.
सिन्हा ने टीएमसी से इस्तीफा दे दिया और समर्थन मांगने के लिए देशभर में यात्रा कर रहे हैं. हालांकि, उनके कैंपेन ने विपक्षी खेमे की गहरी दरारों को भी उजागर कर दिया. राष्ट्रपति चुनाव को विपक्षी एकता दिखाने का मंच माना जाता है, लेकिन यहां ये दांव उल्टा पड़ गया.
एक-एक कर सब गिर रहे!
यशवंत सिन्हा को उतारकर टीएमसी खुश हो रही थी, लेकिन बीजेपी ने आदिवासी कार्ड खेलकर इस खुशी को कम कर दिया. बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बना दिया. तख्तापलट से जूझ रही शिवसेना पहले ही एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन दे चुकी है.
बीजेपी के आदिवासी और महिला कार्ड ने यशवंत सिन्हा को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. झारखंड से होने के बावजूद सिन्हा यहां अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा खामोश है और कांग्रेस के नेता पार्टी नेतृत्व के दूसरे दलों के साथ भूमिका निभाने में बड़बड़ा रहे हैं. क्रॉस वोटिंग का डर भी सता रहा है.
हजारीबाग से यशवंत सिन्हा के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ चुके एक कांग्रेस नेता ने कहा, 'मैं जीवनभर उनके खिलाफ लड़ता रहा और अब कांग्रेस मुझसे उन्हें वोट देने को कह रही है.'
विजन की कमी
एनडीए से पहले राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम घोषित करने को विपक्षी नेता विजन की कमी मानते हैं. विपक्ष के एक नेता का कहना है कि यहां रणनीति फेल नहीं हुई है, बल्कि ये विजन की कमी है. उनका कहना है कि बीजेपी का उम्मीदवार घोषित होने का इंतजार करना चाहिए था और फिर एक ऐसा उम्मीदवार उतारना चाहिए था, जो उनका प्रभावी तरीके से मुकाबला कर सके.
17 जुलाई को शरद पवार दिल्ली आ रहे हैं. लेकिन अभी तक ये भी साफ नहीं है कि विपक्ष के नेता कब तक उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार का नाम तय करेंगे और दिल्ली में बैठक होगी भी या नहीं? राहुल गांधी अभी विदेश में हैं और रविवार को लौटेंगे.
मुख्तार अब्बास नकवी, सुरेश प्रभु, आरिफ मोहम्मद खान और गुलाम नबी आजाद के नाम चर्चा में हैं. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि हम एक आम सहमति वाला उम्मीदवार चाहते हैं. उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि उस उम्मीदवार के कांग्रेस नेता होने की संभावना नहीं है.
आम आदमी पार्टी भी मूकदर्शक बनी पूरा खेल देख रही है. आप के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि उनकी पार्टी एक या दो दिन में उम्मीदवार की घोषणा कर देगी. लेकिन इससे ये कन्फ्यूजन हो रहा है कि क्या ये विपक्षी उम्मीदवार को कमतर आंकने की कोशिश है या फिर टीएमसी और आप के बीच दरार बढ़ रही है?