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पश्चिम बंगाल में चुनावों से पहले बार-बार क्यों होती है हिंसा?

पश्चिम बंगाल में चुनावों से पहले हर बार बवाल क्यों होता है, 2024 में PDA फॉर्मूले से NDA को मात दे पाएंगे अखिलेश यादव और किस सेक्टर के लोग अपनी नौकरी के प्रति ज़्यादा वफ़ादार होते हैं? सुनिए 'आज का दिन' में.

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पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के लिए अगले मीहने जुलाई की 8 तारीख को वोटिंग होगी. नतीजे 11 जुलाई को आएंगे. लगभग अभी भी आधा महीना बाकी है, हालात ऐसे हैं कि तब तक ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल होगा कि बंगाल क्या कुछ देख चुका होगा. चुनाव के ऐलान के साथ ही राज्य में हिंसा की शुरुआत होने लगी थी, उम्मीदवारों की हत्याएं होने लगीं. इन घटनाओं को देखते हुए 15 जून को हाई कोर्ट ने ये आदेश दिया कि क़ानून व्यवस्था बनाने के लिए राज्य के हर ज़िले में 48 घंटे के भीतर केंद्रिय सुरक्षा बल को तैनात किया जाए. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया, आज सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई भी होनी है.

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ये सब दुखद तो है लेकिन नया नहीं है, बंगाल में चुनावी हिंसा यहां के इतिहास और संस्कृति का हिस्सा रहा है. जब ममता बनर्जी ने 35 साल बाद लेफ़्ट को सत्ता से बाहर धकेला था साल 2011 में तब 34 लोगों की जान गई थी, उसके पहले 2008 में 36 और साल 2003 में 70 की जान चुनाव के दौरान होने वाली हिंसा में गई थी. साल बदलें, चुनाव होने के तरीके बदलें, चुनावों के मुद्दें बदलें, बस नहीं बदली तो ये सच्चाई! ऐसा क्यों हैं, बंगाल हर छोटे-बड़े चुनाव में हिंसा की आग में क्यों जल उठता है और बंगाल के चुनावी सिस्टम में क्या समस्याएं हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 

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उत्तरप्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं, जिसको लेकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक नारा दिया है, 80 हराओ, बीजेपी हटाओ. उस अस्सी में से फ़िलहाल 71 सीटें नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए के पास हैं. एनडीए की गठबंधन को हराने के लिए अखिलेश यादव पीडीए की बात कर रहे हैं. पीडीए को उन्होंने अपने तरीके से पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक कह कर परिभाषित किया है. 23 जून को बिहार के पटना में विपक्षी पार्टियों की बैठक होनी है, अखिलेश का नारा उसके पहले आया है और उनका दावा है कि पीडीए का समीकरण ही एनडीए को हरा सकता है. जानकार बताते हैं कि अखिलेश यादव को पता चल गया है कि सपा के पुराने एमवाई समिकरण के भरोसे वो 2024 की लड़ाई नहीं जीत सकते, उन्हें अन्य समुदाय के लोगों को भी पार्टी से जोड़ना होगा. फिर असल सवाल ये आता है कि आखिर सपा MY से PDA पर शिफ़्ट कैसे करेगी और उनका निशाना किसके वोट बैंक कि ओर है?  'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 

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तज़ुर्बेगार पेशेवर कहते हैं कि सही वक़्त पर नौकरी बदलते रहने से सैलरी तेज़ी से बढ़ती है. और आमतौर पर लोग इस नियम को फ़ॉलो भी करते हैं, लेकिन जॉब सर्चिंग वेबसाइट इंडीड की एक रिपोर्ट बताती है कि कुछ चुनिंदा सेक्टर और पोजिशन पर बैठे लोग अपनी नौकरी को लेकर बहुत वफ़ादार होते हैं, मतलब वो अपने सेक्टर के बाहर नौकरी तलाशते नहीं पाए जाते. बहुत जल्दी बदलाव नहीं तलाशते. इसमें सबसे ऊपर टेक सेक्टर का नाम आता है. वो अपने सेक्टर में होने वाली कमाई और नौकरी के साथ मिलने वाली सुविधाओं से खुश रहते हैं. वहीं कॉल सेंटर और एयरपोर्ट एक्ज़िक्यूटिवस सबसे ज़्यादा किसी और सेक्टर में नौकरी ढूंढते हैं. सैलरी और जॉब सिक्यॉरिटी एक ज़रूरी फैक्टर तो है लेकिन उसके अलावा वो कौनसी सुविधाएं हैं, जिनकी वजह से लोग अपने सेक्टर में बने रहते हैं या उससे बाहर निकलने के मौके तलाशते हैं?  'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 

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