वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 का नोटिफिकेशन 8 अप्रैल, 2025 को जारी हो गया है. सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया है. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह अब पूरे देश में प्रभावी हो चुका है. इस कानून को लेकर मुस्लिम संगठनों और कई सांसदों द्वारा आपत्ति जताई गई. मुस्लिम संगठनों द्वारा कहा गया है कि इस कानून के अमल में आने के बाद ऐतिहासिक संपत्तियों का मालिकाना हक प्रभावित होगा और इसका मुसलमानों पर असर पड़ेगा.
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एबीपी न्यूज के साथ बातचीत में इस कानून के लागू होने के बाद संभल स्थित जामा मस्जिद को लेकर टिप्पणी की थी. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि वक्फ संशोधन कानून 2025 लागू होने के बाद संभल का जामा मस्जिद वक्फ की संपत्ति नहीं रह जाएगी.
'वक्फ की संपत्ति नहीं रही संभल की जामा मस्जिद'
ओवैसी ने एक चर्चा के दौरान कहा था, "उन्होंने बिल में 3D सेक्शन जोड़ा है, ये सेक्शन कहता है- Any declaration or notification issued under this Act or under any previous Act in respect of waqf properties shall be void, if such property was a protected monument or protected area under the Ancient Monuments Preservation Act, 1904 or the Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958, at the time of such declaration or notification. इस कानून पर जिस दिन राष्ट्रपति हस्ताक्षर करेंगे संभल की मस्जिद वक्फ नहीं रहेगी. क्योंकि संभल की मस्जिद जो है वो ASI में संरक्षित साइट है. इसलिए संभल की मस्जिद चली गई न वक्फ से."
इस कानून के लागू होने के बाद ओवैसी ने कल एक और ट्वीट किया और कहा कि 'मैने पहले ही कहा था कि संभल जामा मस्जिद नए वक्फ कानून में वक्फ की संपति नहीं रहेगी और आज संभल की जामा मस्जिद को ASI-संरक्षित स्मारक का बोर्ड लगाकर उसका नाम जुमा मस्जिद कर दिया गया.'
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'संभल की मस्जिद का वक्फ नंबर दिखाएं ओवैसी'
AIMIM सांसद ओवैसी के इस दावे पर वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने सवाल उठाया है. आजतक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, 'मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि अगर आप ये बयान दे रहे हैं कि संभल की मस्जिद से महरूम होना पड़ेगा तो सबसे पहले बैरिस्टर साहब को दिखाना पड़ेगा कि संभल की मस्जिद फलां-फलां वक्फ नंबर है. संभल की मस्जिद इस दिन वक्फ दर्ज हुई. ये वक्फ डीड है उसकी या फिर ये वक्फ वाय यूजर है. उन्होंने तो एक स्वीपिंग स्टेटमेंट दे दिया कि हमें वक्फ से महरूम होना पड़ेगा.'
विष्णु शंकर जैन ने आगे कहा कि ये भ्रम फैलाया जा रहा है. आप सेक्शन 3D पढ़ लीजिए. उसमें लिखा है कि जो ASI संरक्षित इमारत हैं और अगर आपने उसको वक्फ किया है तो वो नोटिफिकेशन शून्य हो जाएगा और अब ASI एक्ट 1958 से संचालित होगा.
उन्होंने कहा कि ASI एक्ट 1958 के बारे में वे बहुत जिम्मेदारी से कहना चाहते हैं कि बहुत सारे ऐसे मंदिर हैं, जो ASI के अधीन हैं, वहां पूजा-पाठ हो रही है. बहुत सारी मस्जिदें हैं इस देश में जो ASI के अधीन हैं लेकिन वहां पर नमाज पढ़ी जा रही हैं. गोवा का सैफई मस्जिद ऐसा ही है, वहां नमाज पढ़ी जा रही है. इसलिए ऐसा कहना भ्रम फैलाना है कि अगर कोई इमारत ASI के अधीन है तो वहां पर मेरी पूजा रुक जाएगी और नमाज रुक जाएगी, ऐसा कहना इस एक्ट के खिलाफ है.
बता दें कि देश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और वक्फ बोर्ड के बीच कई ऐतिहासिक संपत्तियों को लेकर विवाद रहा है. एएसआई इन संपत्तियों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित करता है, जबकि वक्फ बोर्ड इन्हें अपनी संपत्ति के रूप में दावा करता रहा है. वक्फ अक्सर यह तर्क देता है कि ये धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए समर्पित की गई थीं.
ताजमहल ASI का है या वक्फ बोर्ड का?
ऐसा ही विवाद मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा बनवाए गए ताजमहल को लेकर हुआ था. उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 2005 में ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित किया था. वक्फ बोर्ड ने यह दावा किया था यह एक मकबरा है और इस्लामी परंपरा के तहत वक्फ के अधीन आता है.
ये मामला सुप्रीम अदालत में गया. और सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड से पूछा कि अगर शाहजहां ने इसको वक्फ किया है तो वो वक्फ डीड दिखाइए. लेकिन वक्फ बोर्ड कोर्ट में वक्फ डीड दाखिल नहीं कर पाए. इसके बाद कोर्ट ने मामला खारिज कर दिया.
वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि जो मौजूदा वक्फ कानून आया है उसके सेक्शन-36 को उठा कर देख लीजिए उसमें यही लिखा है कि अब जो भी वक्फ होगा वो वक्फ डीड के माध्यम से ही होगा. इतिहास में जो भी वक्फ हुई है उसके बारे में सेक्शन-3B के माध्यम से जानकारी मांगी गई है. जैसे- वक्फ डीड कब हुई है, आपकी ऑनरशिप कब आई, उसका मुतवल्ली कौन था. गजट नोटिफिकेशन कब हुआ. ये जानकारी वक्फ के पोर्टल पर देनी पड़ेगी.
ASI और वक्फ साथ मिलकर मैनेज करते थे
सवाल है कि क्या वक्फ संशोधन कानून 2025 लागू होने से पहले ASI की संपत्ति वक्फ की संपत्ति हो सकती थी? ये सवाल आजतक डॉट इन ने जमात-ए-इस्लामी हिंद के शिक्षा विभाग के सहायक सचिव इनाम-उर-रहमान से पूछा.
इनाम उर रहमान ने कहा कि ऐसे सैकड़ों-दर्जनों उदाहरण हैं जब दोनों एक साथ ऐसी संपत्तियों को मैनेज करते थे. जैसे आगरा का जामा मस्जिद- जहां ASI और वक्फ दोनों मिलकर इसे मैनेज करते हैं. उन्होंने कहा कि ASI ऐसी इमारतों का संरक्षण करता था. जबकि वक्फ बोर्ड वहां के मजहबी काम देखता था. जैसे इमाम कौन होगा, मुअज्जिन कौन होगा. इत्यादि-इत्यादि. और इसमें कभी टकराव नहीं हुआ.
वक्फ बोर्ड को गैर जरूरी तौर पर सरकार बाहर क्यों कर रही है
उन्होंने कहा कि अगर सरकार का नीयत और इरादा ठीक है तो वक्फ बोर्ड को गैर जरूरी तौर पर ऐसी इमारतों से बाहर क्यों कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि दोनों मिलकर सैकड़ों मस्जिदों का प्रंबधन संभाल रहे हैं.
इनाम उर रहमान ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी हिंद इस कानून को पूरी तरह से खारिज करती है और वापस लेने की मांग करती है. उन्होंने कहा कि
यह कानून असंवैधानिक है, नागरिकों के बीच भेदभाव करता है और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ, मूलभूत अधिकारों के खिलाफ है.
इनाम उर रहमान ने कहा कि ये कानून खास समुदाय को दबाने, कमजोर करने और उनकी संपत्ति को हड़पने का मसौदा है. इसमें एक खास कम्युनिटी को टारगेट किया गया है. और बांटने की कोशिश की गई है.
क्या वक्फ कानून लागू होने से पहले ASI की संपत्ति वक्फ की संपत्ति हो सकती थी?
वक्फ संशोधन कानून 2025 लागू होने से पहले, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की संपत्ति को वक्फ की संपत्ति के रूप में दावा किया जा सकता था. बशर्ते उस पर वक्फ बोर्ड द्वारा कोई वैधानिक दावा स्थापित किया गया हो और वह दावा वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत मान्य हो.
वक्फ अधिनियम, 1995, जो 2025 में संशोधन से पहले लागू था, वक्फ बोर्ड को यह अधिकार देता था कि वह किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सके, यदि उसे लगता था कि वह संपत्ति मुस्लिम कानून के तहत धार्मिक, पवित्र या परोपकारी उद्देश्यों के लिए समर्पित की गई थी.
इसमें "वक्फ बाय यूज़र" (Waqf by User) का सिद्धांत भी शामिल था, जिसके तहत बिना औपचारिक दस्तावेज के भी लंबे समय तक उपयोग के आधार पर संपत्ति को वक्फ माना जा सकता था.
हालांकि, ASI द्वारा संरक्षित संपत्तियां, जैसे स्मारक या पुरातात्विक स्थल, आम तौर पर केंद्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत आती थीं. इस कानून के तहत ऐसी संपत्तियों पर किसी भी तरह का अतिक्रमण या स्वामित्व परिवर्तन प्रतिबंधित था. फिर भी, वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 40 के तहत वक्फ बोर्ड को यह शक्ति प्राप्त थी कि वह किसी संपत्ति के बारे में जानकारी एकत्र कर उसे वक्फ घोषित कर सकता था, और उसका निर्णय अंतिम माना जाता था, जब तक कि वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा उसे बदला या रद्द न किया जाए.
गौरतलब है कि नए वक्फ कानून में "वक्फ बाय यूज़र" और धारा 40 दोनों को ही समाप्त कर दिया गया है.