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संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जाएगा वक्फ बिल, जानें- अब JPC में विधेयक का क्या होगा

किरेन रिजिजू ने कहा कि, हम प्रस्ताव करते हैं कि इस बिल को जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेज दिया जाए. इस पर स्पीकर ने कहा कि हां, जल्द ही कमेटी बनाऊंगा. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने इस पर डिवीजन की मांग की.

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केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू लोकसभा में पेश किया वक्फ (संशोधन) विधेयक
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू लोकसभा में पेश किया वक्फ (संशोधन) विधेयक

मोदी सरकार ने बुधवार को वक्फ बोर्ड एक्ट में बदलाव के लिए संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया. इस बिल को लेकर संसद में हंगामा देखने को मिला. इस दौरान जहां विपक्ष ने जमकर हंगामा किया तो वहीं सत्तापक्ष की तरफ से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने विस्तार से बताया कि क्यों इस विधेयक को लाने की जरूरत पड़ी. विपक्ष से समर्थन की गुहार लगाते हुए रिजिजू ने कहा कि इस बिल का समर्थन कीजिए, करोड़ों लोगों की दुआ आपको मिलेगी. चंद लोगों ने पूरे वक्फ बोर्ड को कब्जा करके रखा है और आम मुस्लिम लोगों को जो न्याय इंसाफ नहीं मिला उसे सही करने के लिए यह बिल लाया गया है. यह इतिहास में दर्ज होगा कि इस बिल किसने समर्थन किया है और किसने विरोध किया है.

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किरेन रिजिजू ने कहा कि हम भागने वाले नहीं 
इस बिल को लेकर जब बहुत बहस हुई तो किरेन रिजिजू ने कहा कि, हम प्रस्ताव करते हैं कि इस बिल को जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेज दिया जाए. इस पर स्पीकर ने कहा कि हां, जल्द ही कमेटी बनाऊंगा. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने इस पर डिवीजन की मांग की. स्पीकर ने कहा कि इस पर डिवीजन कैसे बनता है.

ओवैसी ने कहा कि हम तो शुरू से डिवीजन की मांग कर रहे हैं. किरेन रिजिजू ने कहा कि हम भागने वाले नहीं हैं. उन्होंने विधेयक पेश करते हुए कहा कि इस बिल को यहां से पास कर दीजिए. इसके बाद इसमें जो भी स्क्रूटनी करनी हो, हम तैयार हैं. ये बिल बनाकर आप जेपीसी को भेज दीजिए. हर दल के सदस्य उस कमेटी में हों, जो भी स्क्रूटनी करना चाहें, हम तैयार हैं.  

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बोहरा समाज के केस का दिया उदाहरण
इससे पहले अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने बिल को पेश करने की जरूरत को लेकर, व्यक्तिगत केस बताए. उन्होंने कहा कि 'बोहरा समाज का एक केस है. मुंबई में एक ट्रस्ट है, उसे हाईकोर्ट ने सेटल कर दिया था. दाऊद इब्राहिम के आसपास ही रहते हैं. एशिया की लार्जेस्ट स्कीम को उसी जगह लॉन्च किया गया है. किसी आदमी ने उसी प्रॉपर्टी को लेकर वक्फ बोर्ड में शिकायत कर दी और वक्फ बोर्ड ने उसे नोटिफाई कर दिया. जो आदमी न उस शहर में है, न उस राज्य में है, वक्फ बोर्ड के माध्यम से एक प्रोजेक्ट को डिस्टर्ब कर दिया गया.' 

यह भी पढ़िएः 'वक्फ बोर्ड पर कुछ लोगों ने कब्जा कर रखा है', रिजिजू ने 10 प्वाइंट में समझाया क्यों आई बिल लाने की जरूरत

तिरुचिरापल्ली में भी हुई मनमानी
तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली जिले में 1500 साल पुराने सुंदरेश्वर टेंपल था. वहां गांव में जब आदमी 1.2 एकड़ प्रॉपर्टी बेचने गया तो उसे बताया गया कि ये वक्फ की जमीन है. पूरे गांव को वक्फ प्रॉपर्टी डिक्लेयर कर दिया गया है. म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की जमीन को वक्फ प्रॉपर्टी डिक्लेयर कर दिया गया. कर्नाटक माइनॉरिटी कमीशन की रिपोर्ट में 2012 में कहा गया कि वक्फ बोर्ड ने 29 हजार एकड़ जमीन को कमर्शियल प्रॉपर्टी में कन्वर्ट कर दिया गया.

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इतनी मनमानी कर रहे थे. आंखों के सामने इतना बड़ा घपला हो रहा है. डॉक्टर बारिया बुशरा फातिमा का केस, लखनऊ का है. वो महिला बच्चे के साथ किस मुश्किल हालात में जी रही हैं. जो प्रॉपर्टी इनके पिताजी गुजर जाएंगे तो उनको और उनके बच्चे को नहीं मिलेगी. अखिलेश जी आप मुख्यमंत्री थे, किसी ने आपको नहीं बताया. धर्म की नजर से नहीं, इंसाफ के नजरिये से देखिए. इल्जाम लगाकर के भागने की कोशिश मत करो.

भारत सरकार को वक्फ पर बिल लाने का अधिकार- रिजिजू
किरेन रिजिजू ने कहा कि विपक्ष ने जो तर्क दिए हैं इस बिल का विरोध करते हुए, वो स्टैंड नहीं करते. इस बिल में संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया गया है. ये किसी भी धर्म में दखल नहीं है. किसी का हक छीनने के लिए नहीं, जिनको दबाकर रखा गया उनको जगह देने के लिए ये बिल लाया गया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का भी जिक्र किया और ये भी कहा कि ये कॉन्क्रीट में है.

भारत सरकार को बिल लाने का अधिकार है. ये वक्फ अमेंडमेंट बिल अंग्रेजों के जमाने से लेकर के आजादी के बाद तक, कई बार पेश किया गया. ये एक्ट सबसे पहले 1954 में लाया गया था जिसके बाद कई अमेंडमेंट हुए हैं. जो अमेंडमेंट आज हम लाने जा रहे हैं, वह वक्फ एक्ट 1955 जिसको 2013 में अमेंडमेंट लाकर ऐसा प्रावधान डाला गया जिसकी वजह से ये अमेंडमेंट हमें लेकर आना पड़ रहा है. 

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चंद लोगों ने वक्फ बोर्ड को कब्जा करके रखा हुआ है: रिजिजू
1955 के वक्फ अमेंडमेंट में जो भी प्रावधान लाया गया था, उसको लोगों ने अलग-अलग तरीके से देखा है. कई कमेटियां, कई लोगों ने पूरा एनालिसिस किया है. ये पाया गया है कि 1955 का वक्फ अमेंडमेंट जिस परपज से लाया गया था, वह पूरे नहीं हो रहे थे. कई खामियां मिली हैं. ये अमेंडमेंट आप लोगों ने जो भी चाहा, वह नहीं कर पाए तो उसके लिए ही ये बिल लाया गया है. हम सब चुने हुए प्रतिनिधि हैं. इस बिल का समर्थन कीजिए, करोड़ों लोगों की दुआ मिलेगी. चंद लोगों ने वक्फ बोर्ड को कब्जा करके रखा हुआ है. गरीबों को न्याय नहीं मिला.

इतिहास में दर्ज होगा कि कौन-कौन विरोध में था. जो खामियां 2014 से आज तक 1955 के एक्ट के बारे में कांग्रेस के जमाने में भी कई कमेटियां कह चुकी हैं. 1976 में वक्फ इनक्वायरी रिपोर्ट में बड़ा रिकंमेडेशन आया था कि उसको डिसीप्लीन करने के लिए प्रॉपर कदम उठाए जाने चाहिए, मतभेद सरल करने के लिए ट्राइबल गठन होना चाहिए. ऑडिट और अकाउंट्स का तरीका प्रॉपर नहीं है, पूरा प्रबंधन होना चाहिए. वक्फ अल औलाद में सुधार लाना चाहिए. 

जेपीसी क्या होती है?
दरअसल, संसद को एक ऐसी एजेंसी की जरूरत होती है जिसपर पूरे सदन को भरोसा है. इसके लिए संसद की समितियां होती हैं. इन समितियों में संसद के सदस्य होते हैं. किसी बिल या फिर किसी सरकारी गतिविधियों में वित्तीय अनिमितताओं के मामलों की जांच के लिए जेपीसी का गठन किया जाता है.

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जेपीसी की जरूरत क्यों?

इसकी जरूरत इसलिए क्योंकि संसद के पास बहुत सारा काम होता है. इन कामों को निपटाने के लिए समय भी कम होता है. इस कारण कोई काम या मामला संसद के पास आता है तो वो उस पर गहराई से विचार नहीं कर पाती. ऐसे में बहुत सारे कामों को समितियां निपटाती हैं, जिन्हें संसदीय समितियां कहा जाता है. 

ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी यानी संयुक्त संसदीय समिति भी इसी मकसद से गठित की जाती है. इसे संयुक्त संसदीय समिति इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य होते हैं.

संसदीय समितियों का गठन संसद ही करती है. ये समितियां संसद के अध्यक्ष के निर्देश पर करती हैं और अपनी रिपोर्ट संसद या अध्यक्ष को सौंपती हैं. 

दो तरह की होती हैं समितियां

ये समितियां दो प्रकार की होती हैं. स्थायी समितियां और अस्थायी समितियां. स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल होता है और इनका काम लगातार जारी होता है. वित्तीय समितियां, विभागों से संबंधित समितियां और कुछ दूसरी तरह की समितियां स्थायी समितियां होती हैं.

वहीं, अस्थायी या तदर्थ समितियों का गठन कुछ खास मामलों के लिए किया जाता है. जब इनका काम खत्म हो जाता है तो इन समितियों का अस्तित्व भी खत्म हो जाता है. 

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संसद की संयुक्त समिति एक अस्थाई समिति होती है, जिसका गठन एक निश्चित अवधि के लिए किया जाता है. इसका मकसद एक खास मुद्दे को देखना होता है. जेपीसी का गठन तब होता है, जब एक सदन उसका प्रस्ताव पास कर दे और दूसरा सदन उसका समर्थन कर दे. 

जेपीसी की संरचना कैसी होती है?
जेपीसी की संरचना जेपीसी में सदस्यों की संख्या अलग-अलग मामलों में भिन्न हो सकती है. इसमें अधिकतम 30-31 सदस्य हो सकते हैं, जिसका अध्यक्ष बहुमत वाली पार्टी के सदस्य को बनाया जाता है. लोकसभा के सदस्य राज्यसभा की तुलना में दोगुने होते हैं. उदाहरण के लिए यदि संयुक्त संसदीय समिति में 20 लोकसभा सदस्य हैं तो 10 सदस्य राज्यसभा से होंगे और जेपीसी के कुल सदस्य 30 होंगे.

इसके अलावा समिति में सदस्यों की संख्या भी बहुमत वाली पार्टी की अधिक होती है. किसी भी मामले की जांच के लिए समिति के पास अधिकतम 3 महीने की समयसीमा होती है. इसके बाद संसद के समक्ष उसे अपनी जांच रिपोर्ट पेश करनी होती है.

जेपीसी का काम और इसकी ताकत

जेपीसी में दोनों सदनों के सदस्यों को शामिल किया जाता है. समिति के सदस्यों की संख्या तय नहीं है. लेकिन फिर भी इसका गठन इस तरह से किया जाता है, ताकि सभी राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले. 

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आमतौर पर संयुक्त संसदीय समिति में राजस्यसभा की तुलना में लोकसभा से दोगुने सदस्य होते हैं. इनके पास किसी भी माध्यम से सबूत जुटाने का हक होता है. किसी भी मामले से जुड़े दस्तावेज मांग सकती है, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बुलाकर पूछताछ कर सकती है.

अगर कोई व्यक्ति या संस्था जेपीसी के सामने पेश नहीं होता है तो इसे संसद की अवमानना का उल्लंघन माना जाता है. इसे लेकर जेपीसी उस व्यक्ति या संस्था से लिखित या मौखिक जवाब मांग सकती है. 

कैसे करती है काम?

संसद की ओर से जेपीसी का गठन किया जाता है और कुछ प्वॉइंट्स भी बताए जाते हैं, जिनकी जांच की जाती है. अगर मामला किसी बिल को लेकर हो तो उस पर बिंदुवार चर्चा होती है. जेपीसी की जांच और चर्चा में अलग-अलग सहयोगियों, विशेषज्ञों और इच्छुक समूहों को आमंत्रित किया जाता है. तकनीकी सलाह के लिए तकनीकी विशेषज्ञों को भी नियुक्त किया जाता है. इसके अलावा कुछ मुद्दों पर आम जनता से भी सलाह ली जाती है.

पूरा सिस्टम रखा जाता है गोपनीय
इसके काम करने का पूरा सिस्टम गोपनीय रखा जाता है. लेकिन इसके अध्यक्ष समय-समय पर मीडिया को जानकारी देते रहते हैं. जनहित से जुड़े मुद्दों को छोड़कर बाकी सभी मामलों की रिपोर्ट को भी गोपनीय रखा जाता है. इसके अलावा किसी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने या न करने का अंतिम फैसला सरकार के ऊपर रहता है. एक बार जांच रिपोर्ट संसद में पेश हो जाने के बाद जेपीसी का अस्तित्व खत्म हो जाता है.

संसद में कब-कब की गई जेपीसी की मांग
जेपीसी जांच को लेकर कई बार मांग की जा चुकी हैं. अभी हाल में जब लोकसभा चुनावों का रिजल्ट आया था तो उसके ठीक बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने शेयर मार्केट क्रैश को लेकर जेपीसी जांच की मांग की थी. राहुल गांधी ने कहा कि एग्जिट पोल के बाद अगले दिन शेयर बाजार ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, लेकिन अगले ही दिन 4 जून को नतीजे वाले दिन शेयर मार्केट खटाक से अंडरग्राउंड में चला गया. उन्होंने कहा कि मार्केट में गिरावट से 30 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. ये पैसा पांच करोड़ रिटेल इन्वेस्टर्स का था. उन्होंने इस पूरे मामले की जेपीसी से जांच कराने की मांग की थी.

पहली बार बोफोर्स घोटाले के बाद अस्तित्व में आई जेपीसी
जेपीसी के गठन का इतिहास भी दिलचस्प रहा है. सबसे पहली बार जेपीसी अस्तित्व में तब आई थी, जब देश में बोफोर्स घोटाला सामने आया था और इसे लेकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार चौतरफा घिर गई थी. इसी दौरान सबसे पहले जेपीसी का गठन साल 1987 में किया गया.

जेपीसी जांच का नतीजों ने 3 बार पलट दी सरकार
जेपीसी के गठन के बाद जांच को जो नतीजा आया, उसने सरकारों की भी दशा-दिशा तय की है. इसे संयोग भी मानें तो आजादी के बाद से अब तक 8 बार जेपीसी का गठन किया गया है. इसमें से 5 बार जो भी नतीजे आए हैं, उसके बाद केंद्र में सत्ता में रही सरकार अगला आम चुनाव नहीं जीत पाई है. अटल और कांग्रेस सरकार में दो बार जेपीसी जांच हुई है. इस तरह तीन बार सरकारें पलट गई हैं. बोफोर्स घोटाले में जेपीसी जांच के बाद कांग्रेस 1989 में चुनाव हार गई थी.

दूसरी बार जेपीसी का गठन साल 1992 में हुआ था, जब पीवी नरसिंह राव की सरकार पर सुरक्षा एवं बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता का आरोप लगा था. इस जांच के बाद 1996 में कांग्रेस चुनाव हार गई. 

तीसरी बार साल 2001 में स्टॉक मार्केट घोटाले को लेकर जेपीसी का गठन हुआ था. हालांकि सरकार पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वैसे भी यह सरकार अभी अपने मध्य दौर में ही पहुंची थी.

चौथी बार साल 2003 में जेपीसी का गठन भारत में बनने वाले सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीनटाशक होने की जांच के लिए किया गया था. इसके बाद अदल सरकार अगला चुनाव हार गई थी. 

पांचवीं बार साल 2011 में टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच को लेकर जेपीसी का गठन हुआ था, तो छठी बार साल 2013 में वीवीआईपी चॉपर घोटाले की जांच को लेकर जेपीसी का गठन हुआ. कांग्रेस 2014 में चुनाव हार गई थी.

देश में मोदी सरकार आने के बाद पहली बार 2015 में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास बिल को लेकर जेपीसी का गठन किया गया. हालांकि अभी इस पर कोई नतीजा नहीं आया है. इसके बाद साल 2016 में आठवीं और आखिरी बार एनआरसी मुद्दे को लेकर जेपीसी का गठन हुआ था. इस पर भी कोई नतीजा नहीं आया है.

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