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Wayanad Landslide: भूस्खलन ने वायनाड में मचाई ऐसी तबाही, अचानक आई आफत ने गांवों को कर दिया पूरी तरह बर्बाद

इंडिया टुडे द्वारा की गई मैपिंग से पता चलता है कि नदी के जलस्तर में भारी बढ़ोतरी, भूस्खलन, मूसलाधार बारिश और वनों की कटाई की वजह से वायनाड आपदा आई.

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वायनाड भूस्खलन (फोटो- PTI)
वायनाड भूस्खलन (फोटो- PTI)

मंगलवार को मूसलाधार बारिश की वजह से हुए भूस्खलन ने केरल (Kerala) के पर्यटन स्थल वायनाड में करीब तीन गांवों को तहस-नहस कर दिया और इसमें करीब 167 लोगों की मौत हो गई. बचावकर्मी अब भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं, लेकिन कई लोग अभी भी इस बात पर आश्चर्य कर रहे हैं कि इतने बड़े पैमाने पर आपदा कैसे आई. इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने वीडियो फुटेज और आर्काइवल डेटा के जरिए इस भयावह घटना की पूरी रिपोर्ट तैयार की है.

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wayanad landslide

कैसे आई आपदा?

वायनाड में आई आपदा का केंद्र इरुवाझिंझी नदी है, जो लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर है और तीन प्रभावित गांवों- व्यथरी तालुका में मुंदक्कई, चूरलमाला और अट्टामाला से होकर बहती है. इसके बाद यह चलियार नदी में मिल जाती है.

बारिश के बाद नदी के पानी में बढ़ोतरी हो गई और इसकी जल धाराएं ज्यादा तेज हो गईं. अधिकारियों का कहना है कि व्याथरी (Vythri) में 48 घंटों में लगभग 57 सेमी बारिश हुई, जिसके बाद इरुवाझिंझी में उफान आया और भूस्खलन हुआ. केरल के मुख्य सचिव वी वेणु ने कहा, "इस तरह की बारिश, विशेष रूप से संवेदनशील उच्च पर्वतमाला में भूस्खलन को बढ़ावा दे सकती है."

wayanad landslide

भूस्खलन का मलबा नदी में गिर गया और मलबे की एक दीवार बन गई. इसके बाद ऊपर की तरफ के गांव जलमग्न हो गए. ऊपर की पहाड़ियों से नदी में बहता भारी बारिश का पानी और ढलान आपदा की वजह बने. रिमोट सेंसिंग डेटा से पता चलता है कि नदी के रास्ते पर पहला गांव मुंदक्कई, जो अब समतल और तबाह हो गया है, लगभग 950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर केंद्र लगभग आधा है.

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सैटेलाइट इमेजरी और न्यूज रिपोर्ट्स से पता चलता है कि अगस्त 2020 में एक भूस्खलन हुआ था, जिसने मुंडक्कई में प्रवेश करने से पहले इरुवाझिंझी नदी के किनारे के पेड़ों को नष्ट कर दिया था. जल संसाधनों पर काम करने वाले GIS एक्सपर्ट राज भगत पलानीचामी ने कहा कि तीन पेड़ों के नष्ट होने से चट्टानों और भूस्खलन के मलबे को खुली छूट मिल गई. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, "मेरा प्रारंभिक आकलन कहता है कि वनस्पति ने इसके प्रभाव को कम किया होगा."

वक्त से जंग लड़ते बचावकर्मी

अब घरों में फंसे सौ से ज्यादा लोगों के लिए वक्त कम होता जा रहा है, क्योंकि वे अब कीचड़ के एक बेहद मोटे ढेर के नीचे दबे हुए हैं. पहले दो भूस्खलन सुबह-सुबह गांवों में तब हुए, जब लोग सो रहे थे.

इंडियन आर्मी, प्रादेशिक सेना, नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स टीम (NDRF), इंडियन नेवी और इंडियन एयर फोर्स (IAF) के करीब 1200 से ज्यादा बचाव और राहतकर्मी दिन-रात लोगों की जिंदगी बचाने में लगे हुए हैं.

मुख्य सचिव वी वेणु ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी चुनौती ढह चुके मकानों को काटना है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार से लैस ड्रोन तैनात करने पर विचार कर रहा है, जिससे यह साफ आकलन किया जा सके कि कितने ढांचे दबे हुए हैं.

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भूस्खलन से पहले, चूरलमाला और आसपास के इलाके अपने हरे-भरे जंगलों, ऊंची-ऊंची पहाड़ियों और झरनों की वजह से एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल थे. बुधवार को स्थानीय लोग अपने लोगों की तलाश में कीचड़ और पत्थरों के बीच से गुजर रहे थे.

भीगी आंखों के साथ एक शख्स ने कहा, "मुंडक्कई अब वायनाड के नक्शे से मिट चुका है, यहां कुछ भी नहीं बचा है. आप देख सकते हैं कि यहां कीचड़ और पत्थरों के अलावा कुछ नहीं है. हम इस मोटी मिट्टी की वजह ठीक से चल भी नहीं पाते. फिर हम जमीन के नीचे दबे अपने लोगों की तलाश कैसे करेंगे?"

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