कोलकाता के आरजी कर मेडिकल अस्पताल की 31 साल की ट्रेनी डॉक्टर के रेप और हत्या मामले पर बंगाल में बवाल जारी है. छात्रों के नबन्ना अभियान प्रोटेस्ट के एक दिन बाद बुधवार को बीजेपी ने 12 घंटे का बंद बुलाया था. यह बंद नबन्ना प्रोटेस्ट में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई के मद्देनजर बुलाया गया था. इस बंद के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई थी जिसे खारिज कर दिया गया था. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि देश की अदालतें राजनीतिक दलों की ओर से बुलाए गए बंद को लेकर क्या-क्या आदेश दिए हैं?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बंद को लेकर 23 अगस्त को एक फैसला दिया था, जिसमें महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (MVA) की तरफ से बुलाए गए बंद पर रोक लगा दी थी. बदलापुर की घटना को लेकर महाविकास अघाडी बॉम्बे हाईकोर्ट ने बंद का आह्वान किया था, जिस पर हाईकोर्ट ने कहा था कि किसी भी राजनीतिक दल को बंद करने की इजाजत नहीं है. हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाए.
इसके बाद एडवोकेट सुभाष झा और गुनारत्न सदावर्ते ने हाईकोर्ट में दो जनहित याचिका दायर कर महाविकास अघाड़ी को हड़ताल करने की मंजूरी नहीं देने को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था. हालांकि, कोर्ट के आदेश के बाद एमवीए ने इस हड़ताल को वापस ले लिया था.
बंद को लेकर समय-समय पर कोर्ट के आदेशों में क्या रहा?
जुलाई 1997 में भारत कुमार के. पलिचा बनाम केरल सरकार मामले में केरल हाईकोर्ट की पीठ ने कहा था कि कोई राजनीतिक पार्टी या संगठन यह दावा नहीं कर सकते कि वह पूरे राज्य या देश में उद्योग और वाणिज्य को पंगु नहीं बना सकते. अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चक्का जाम करना सही नहीं है.
हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के दावे तर्कसंगत नहीं हैं. अगर कोई भी राजनीतिक पार्टी इसे मूलभूत अधिकारों से जोड़कर देखती है तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने इस बंद को असंवैधानिक बताया. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के बंद का आह्वान करने वाले राजनीतिक पार्टी और संगठन बंद के दौरान होने वाले नुकसान के लिए सरकार और लोगों को भरपाई करने के लिए जिम्मेदार होंगे.
इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में इस फैसले को बनाए रखा. पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी शख्स के मौलिक अधिकार किसी अन्य व्यक्ति या वर्ग के अधीन नहीं हो सकते. हाईकोर्ट ने बिल्कुल सही कहा है कि बंद बुलाने या उसे लागू करने का कोई अधिकार नहीं है.
बीजी देशमुख एंड कंपनी बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 23 जुलाई 2004 को कई निर्देश जारी किए थे, जिनमें बंद की वजह से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने का हवाला दिया गया था.
हाईकोर्ट ने कहा कि बंद लागू करना असंवैधानिक होगा. बंद का आह्वान करने वाली राजनीतिक पार्टी, संगठन, संघ, समूह या शख्स को आपराधिक प्रक्रिया संहित की धारा 149 के तहत नोटिस दिया जाएगा. इस नोटिस के तहत स्पष्ट होगा कि बंद में शामिल राजनीतिक दल, संगठन, संघ, समूह या लोग बंद की वजह से जान एवं माल की हानि के लिए जिम्मेदार होंगे. उन्हें कानूनी कार्रवाई का भी सामना करना पड़ेगा और पीड़ितों को मुआवजा देने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2009 में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राजनीतिक दलों की ओर से बुलाई गए बंद से निपटने के लिए कानून तैयार किया जाए. 2019 में सबरीमाला के मामले पर हुए प्रदर्शनों के बीच केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य में हड़ताल बुलाने के लिए कम से कम सात दिन पहले नोटिस देना होगा. 2019 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी बंद को लेकर दिए गए एक फैसले में इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था.