पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय तीनों ही राज्यों में बीजेपी गठबंधन एक बार फिर से सरकार बनाने जा रहा है. पीएम मोदी ने पूर्वोत्तर को राजनीतिक महत्व दिया, जिसकी गवाही तीन राज्यों के चुनाव नतीजे दे रहे हैं. बीजेपी त्रिपुरा में अपने दम पर सत्ता बचाए रखने में सफल रही है तो मेघालय और नगालैंड में क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर सरकार बना रही है. कांग्रेस पूर्वोत्तर के इलाके में कमजोर पड़ी है तो टीएमसी से जेडीयू तक के नेशनल ड्रीम के विस्तार को झटका लगा है.इस तरह पूर्वोत्तर के नतीजों में कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक के लिए क्या सियासी संदेश हैं?
गैर-हिंदी राज्यों में बीजेपी की बढ़ी ताकत
त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय चुनाव नतीजे से एक बात साफ हो गई है कि बीजेपी अब सिर्फ हिंदी पट्टी वाले राज्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि गैर-हिंदी राज्यों में भी उसकी पहुंच है. पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों में बीजेपी गठबंधन की सत्ता में वापसी हुई है जिसने कांग्रेस के लिए चुनौती बढ़ा दी है.असम से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक पूर्वोत्तर में बीजेपी काबिज है. पूर्वोत्तर में बीजेपी के लिए मजबूत रास्ता बनाने के लिए पीएम मोदी ने पार्टीलाइन से इतर काम किया. क्षेत्रीय मुद्दों और नेताओं को वरीयता देने के साथ-साथ नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) का गठन किया.
पूर्वोत्तर को सियासी महत्व देने का फायदा बीजेपी को चुनाव में मिला है. बीजेपी सिर्फ उत्तर भारत के हिंदी पट्टी (काउ बेल्ट) वाले राज्यों की पार्टी नहीं रही बल्कि पूर्वी भारत में भी उसका सियासी दबदबा कायम हो गया है. नार्थ-ईस्ट में सात राज्य आते हैं और बीजेपी सातों ही राज्यों की सत्ता में सीधे या क्षेत्रीय दलों के गठबंधन के सहारे सत्ता पर काबिज है. बीजेपी का सियासी आधार बढ़ने से कांग्रेस पूर्वोत्तर में सिकुड़ती जा रही है.
अल्पसंख्यक के बीच मोदी की लोकप्रियता
पूर्वोत्तर सिर्फ भाषा के नजरिए से नहीं, बल्कि धर्म और नस्ल की विविधता के मामले में भी खास है. आदिवासी और ईसाई धर्म के लोग बड़ी संख्या में यहां रहते हैं. बीजेपी हार्डकोर हिंदुत्व वाली पार्टी मानी जाती है. इसके बावजूद बीजेपी त्रिपुरा से लेकर मेघालय और नगालैंड की चुनावी पिच पर न केवल कांग्रेस पर हावी ही नजर नहीं बल्कि उसका सफाया भी कर दिया. पूर्वोत्तर के नगालैंड में चर्च की ओर से बीजेपी और एनडीपीपी का नाम लिए बगैर इन्हें वोट न देने की अपील की गई थी लेकिन मतदाताओं ने उसे नकार दिया. ईसाई समुदाय के बीच बीजेपी अपनी पैठ बनाने में कुछ हद तक सफल रही.
अन्य दलों के लिए भी बड़ा संदेश
पूर्वोत्तर के चुनाव नतीजों को पीएम मोदी ने बीजेपी को अल्पसंख्यक विरोधी बताने के विपक्षी प्रोपेगेंडा को ध्वस्त करने वाला बताया. उन्होंने कहा कि गोवा के बाद नगालैंड और मेघालय के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बीच बीजेपी का समर्थन तेजी से बढ़ा है. इस तरह बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर के नतीजे हौसला बढ़ाने वाले हैं तो कांग्रेस सहित दूसरी सेक्यूलर कहलाने वाली पार्टियों के लिए बड़ा संदेश है. इतना ही नहीं, आरएसएस जिस तरह से अपने संवाद और संपर्क अभियान के तहत देश के मुस्लिमों और दूसरे अल्पसंख्यक नेताओं के साथ मेल मिलाप कर रहा है. ऐसे में पूर्वोत्तर के नतीजे देश के दूसरे हिस्सों के अल्पसंख्यक समुदाय के लिए भी संदेश माने जा रहे हैं.
विपक्षी एकता की कवायद को झटका
बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर बुने जा रहे विपक्षी एकता के तानेबाने को पूर्वोत्तर के चुनावी नतीजों ने उधेड़कर रख दिया है. विपक्षी एकता का सपना संजोने वाली कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के लिए बड़ा संदेश हैं. त्रिपुरा में कांग्रेस और वामपंथी दल मिलकर भी बीजेपी को शिकस्त नहीं दे पाए तो मेघालय में सभी विपक्षी एक-दूसरे के खिलाफ दो-दो हाथ कर रहे थे. ममता बनर्जी की टीएमसी के त्रिपुरा और मेघालय में चुनावी मैदान में उतरने का खामियाजा विपक्ष को भुगतना पड़ा. टिपरा मोथा अगर कांग्रेस-लेफ्ट के साथ होती तो त्रिपुरा में बीजेपी की वापसी मुश्किल हो सकती थी. टीएमसी ने जिस तरह से कांग्रेस को सियासी नुकसान पहुंचाया है, उससे एक बात तो साफ है कि 2024 के चुनाव के लिए हो रही विपक्षी एकता की कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है.
पूर्वोत्तर के नतीजे में कांग्रेस के संदेश
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में कुल 180 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से कांग्रेस को महज आठ सीटें मिली हैं. एक दौर में पूर्वोत्तर को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था लेकिन अब पूरी तरह से सफाया हो गया है. त्रिपुरा में भले ही लेफ्ट के सहारे उसे 3 सीटें मिली हैं, मेघालय में 21 से 5 पर आ गई और नगालैंड में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि कांग्रेस ने इन चुनावों में कोई प्रयास भी नहीं किया बल्कि उसने हथियार डाल रखे थे. जबकि राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' को अच्छी प्रतिक्रिया मिली और उनकी अपनी छवि भी बहुत अच्छी बनी थी. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में 'भारत जोड़ो यात्रा' की सफलता से उत्साह का संचार हुआ है. इसके बाद कांग्रेस का चुनाव न जीत पाना बहुत निराशाजनक है. चुनाव नतीजे से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच निराशा हो सकती है.
क्षेत्रीय अस्मिता वाले दलों का बढ़ा ग्राफ
पूर्वोत्तर के तीनों ही राज्यों के चुनावी नतीजे देखें तो साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस जैसी पार्टी बीजेपी के सामने भले ही कमजोर पड़ी हो लेकिन क्षेत्रीय अस्मिता वाले दलों का प्रदर्शन अच्छा रहा है. नगालैंड में एनडीपीपी तो मेघालय मे एनपीपी किंग बनकर उभरी तो त्रिपुरा में टिपरा मोथा जैसी नई पार्टी ने अपने पहले ही चुनाव में 13 सीटें जीतकर खुद को साबित किया है. इन तीनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दल वहां के रहन-सहन, जीने का तरीका, भाषा, पहचान से जुड़े हैं. इसके चलते नगालैंड में सत्ता की कमान एनडीपीपी और मेघालय में एनपीपी के हाथों में है और बीजेपी सरकार में सहयोगी दल के तौर पर शामिल है.
पूर्वोत्तर से निकला 2024 का संदेश
पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों के नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? विधानसभा चुनाव के नतीजों का लोकसभा चुनाव से कोई सीधा नाता नहीं होता लेकिन सियासी नब्ज का अंदाजा हो जाता है. तीन राज्यों के चुनाव नतीजों से 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए संदेश निकला है. बीजेपी के लिए 2024 के गणित में पूर्वोत्तर बहुत महत्व रखता है क्योंकि वहां 26 लोकसभा सीटें है, जो बाकी देश के मध्य आकार के एक राज्य के बराबर है. बीजेपी इस बात को जानती है कि लोकसभा चुनाव में अन्य राज्यों में उसके खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान होगा लिहाजा उन राज्यों में होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए पूर्वोत्तर अहम साबित हो सकता है.