सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा था कि ब्रेस्ट पकड़ना और लड़की के पायजामे की डोरी तोड़ना रेप या रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले की तीखी आलोचना की और कहा कि इस फैसले में संवेदनशीलता की कमी दिखाई देती है और ये अमानवीय है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र और यूपी सरकार से जवाब मांगा है. आइए जानते हैं इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर स्वत: संज्ञान लिया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि ये फैसला तात्कालिक तौर पर नहीं लिया गया था, बल्कि इसमें विवेक का इस्तेमाल किया गया था, क्योंकि फैसला सुरक्षित रखने के चार महीने बाद सुनाया गया है.
'जल्दबाजी में नहीं सुनाया गया फैसला'
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, 'हमें ये कहते हुए दुख हो रहा है कि यह फैसला लिखने वाले की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दिखाता है. ये फैसला तत्काल नहीं लिया गया था, बल्कि फैसला सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया. इस प्रकार, इसमें विवेक का इस्तेमाल किया गया है.'
'फैसले में दिखता है अमानवीय दृष्टिकोण'
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, 'हम आमतौर पर इस स्तर पर रोक (स्थगन) लगाने में देने में हिचकिचाते हैं. लेकिन पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के दायरे से बाहर हैं और अमानवीय दृष्टिकोण दिखाती हैं, इसलिए हम इन टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं.'
केंद्र और यूपी से मांगा जवाब
इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से भी जवाब मांगा है. अदालत ने कहा, "हम केंद्र, उत्तर प्रदेश राज्य और हाईकोर्ट के समक्ष पक्षकारों को नोटिस जारी करते हैं. अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल अदालत की मदद करेंगे."
दिलचस्प बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने 24 मार्च को विवादास्पद अदालती आदेश के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था.
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HC ने अपने फैसले में क्या कहा
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये विवादित फैसला दो लोगों की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया, जिन्हें रेप के आरोप में निचली अदालत ने तलब किया था.
मामले में आरोपी पवन और आकाश ने कथित तौर पर 11 वर्षीय नाबालिग के ब्रेस्ट पकड़े.आरोपियों में से एक ने लड़की के पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की.
इस मामले में न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने फैसला सुनाया कि केवल ब्रेस्ट पकड़ना और पायजामे के नाड़े को तोड़ना बलात्कार नहीं माना जाता. लेकिन ऐसा अपराध किसी भी महिला के खिलाफ हमला या आपराधिक बल के इस्तेमाल के दायरे में आता है, जिसका मकसद उसे निर्वस्त्र करना हो सकता है.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुनाया कि दोनों पर हमले के आरोपों के साथ-साथ POCSO एक्ट (गंभीर यौन उत्पीड़न) की धारा 9/10 के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए.