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यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी, उत्तराखंड सरकार ने बनाई ड्राफ्टिंग कमेटी

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर पुष्कर धामी सरकार ने ड्राफ्टिंग कमेटी गठित कर दी है. उत्तराखंड UCC पर काम करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. आखिर क्या है ये यूनिफॉर्म सिविल कोड, आइए जानते हैं.

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सांकेतिक फोटो
सांकेतिक फोटो
स्टोरी हाइलाइट्स
  • देश में अलग-अलग धर्म के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ
  • यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी में सरकार

उत्तराखंड राज्य यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर काम करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. पुष्कर धामी सरकार ने ड्राफ्टिंग कमेटी गठित कर दी है. इस कमेटी में पांच लोग शामिल हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का फैसला लिया था. उत्तराखंड सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया है. इसमें पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह, हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज प्रमोद कोहली, मनु गौड़ और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल को शामिल किया गया है.

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यह कमेटी इस कानून का एक ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंपेगी जिसे जल्द से जल्द लागू किया जाएगा. आखिर क्या है ये यूनिफॉर्म सिविल कोड जिसके लिए उत्तराखंड सरकार ने कमेटी बनाई है. आइए जानते हैं.

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड UCC

कानून की नजर में सब एक समान होते हैं. जाति से परे, धर्म से परे और इस बात से भी परे कि आप पुरुष हैं या महिला हैं, कानून सबके लिए एक ही है. शादी, तलाक, एडॉप्शन, उत्तराधिकार, विरासत लेकिन सबसे बढ़कर लैंगिक समानता वो कारण है, जिस वजह से यूनिफार्म सिविल कोड की आवश्यकता महसूस की जाती रही है.

UCC का मतलब है विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम. इसका अर्थ है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. समान नागरिक संहिता जिस राज्य में लागू की जाएगी वहां, शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा.

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देश में अलग-अलग धर्म के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ

मौजूदा समय में देश में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं. मसलन, भारत में हिन्दुओं के लिए हिंदू पर्सनल लॉ है. वैसे ही मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है. ईसाईयों के लिए भी पर्सनल लॉ है. UCC के लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा.

महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे. इस वक्त देश में धर्म और परंपरा के नाम पर अलग नियमों को मानने की छूट है. किसी समुदाय में बच्चा गोद लेने पर रोक है. कहीं-कहीं विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम है.

कई राज्य सरकारें इसे लागू करने की मांग करती रही हैं

बीजेपी शासित कई राज्य हैं जहां UCC की मांग उठती रही है. भाजपा सरकार इसे लाने की बात करती है तो विपक्षी दल इसे चुनाव में इस्तेमाल होने वाले हथियार के तौर पर पेश करते हैं. 2014 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता (UCC) का मुद्दा भी शामिल था, इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय की तरफ से लगातार विरोध होता रहा है. कई संगठन इसे वोट बैंक की राजनीति के लिए बीजेपी का नया पैंतरा बताते हैं. विपक्ष इसे हिंदुओं के ध्रुवीकरण के मकसद से उछाला गया मुद्दा मानता रहा है.

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UCC को क्यों बताया जा रहा है जरूरी?

विभिन्न धर्मों के अलग-अलग कानूनों से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है. UCC आने से न्यायालयों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के निपटारे जल्द होंगे.
दावा किया जा रहा है कि इससे मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी.
सबके लिए एक कानून होगा तो एकता को बढ़ावा मिलेगा.
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. UCC के जरिये सभी लोगों के साथ धर्म से परे जाकर समान व्यवहार होना जरूरी है.
हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से राजनीति में भी बदलाव आएगा.

धार्मिक अधिकार नहीं छिनेगा

UCC लागू होने से लोगों को अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने का अधिकार नहीं छिनेगा. इसे लागू करना या न करना पूरी तरह से सरकार पर निर्भर करता है. अब उत्तराखंड में ये लागू हो जाएगा. इसके लागू हो जाने से हर धर्म के लोगों को सिर्फ समान कानून के दायरे में लाया जाएगा. 

 

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