scorecardresearch
 

समंदर में तैर रहे थे सावरकर, और गोली चला रहे थे अंग्रेज! फ्रांस के मार्सिले का सावरकर से क्या कनेक्शन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस में वीर सावरकर को याद किया और कहा कि सावरकर की बहादुरी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी. मार्सिले शहर पहुंचे पीएम मोदी ने उस घटना को याद किया जब सावरकर ने अंग्रेजों की जहाज से बीच समंदर में छलांग लगा दी थी. ये अंग्रेजी दासता से मुक्ति की छलांग थी. लेकिन नियति का ताना-बाना ऐसा था कि सावरकार अगले 25 साल तक काल कोठरी में ही रहे.

Advertisement
X
PM मोदी ने सावरकर के Courageous escape को किया याद. (फोटो डिजाइन-आजतक)
PM मोदी ने सावरकर के Courageous escape को किया याद. (फोटो डिजाइन-आजतक)

समंदर के किनारे बसा हुआ फ्रांस का मार्सिले शहर. भूमध्यसागर इस शहर की सीमाओं को छूता है. इस समंदर में एक शख्स बेतहाशा तैर रहा था. ये व्यक्ति आड़े-तिरछे तैरते हुए कभी पानी के ऊपर जाता, कभी नीचे. इस पर दो ब्रिटिश सैनिक गोलियां बरसा रहे थे. पानी में तैर रहा ये शख्स अंग्रेजों का एक 'कैदी था'. जो उस जहाज की वॉशरूम की खिड़की (पोर्ट होल) से समंदर में छलांग लगा चुका था जिससे उसको ब्रिटेन से इंडिया ले जाया जा रहा था.

Advertisement

इसे पकड़ने के लिए दो सिपाही भी समुद्र में कूद पड़े. ये सिपाही इन कैदी को किसी भी तरह पकड़ना चाह रहे थे. सिपाही छोटी नौका से इसका पीछा कर रहे थे और ये 'क्रांतिकारी कैदी' तैरकर भाग रहा था. 

इस कैदी को मौत को भी मात देकर फ्रांस के मार्सिले शहर पहुंचना था. जहां उसे मदद करने के लिए कुछ लोग तैयार थे . युवक ने सुबह की धूप में खिल रहे मार्सिले शहर को देखा, और अपनी तैराकी और भी तेज कर दी.

फ्रांस के मार्सिले शहर पहुंचे पीएम मोदी ने इसी क्रांतिकारी कैदी को याद किया. नाम है विनायक दामोदर सावरकर. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक्स पोस्ट में सावरकर की मुक्ति की इस कोशिश को दिलेर छलांग (courageous escape) कहा है.  

ऊपर हम जिस कैदी की चर्चा कर रहे हैं वो सावरकर की ही दिलेर छलांग थी. 

Advertisement

पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, "मार्सिले में पहुंचा हूं. भारत की स्वतंत्रता की खोज में, इस शहर का विशेष महत्व है. यहीं पर महान वीर सावरकर ने साहसपूर्वक भागने का प्रयास किया था. मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें ब्रिटिश हिरासत में न सौंपा जाए. वीर सावरकर की बहादुरी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी!"

तो सावरकर क्यों और कैसे अंग्रेजों की कैद में आए. जहाज पर कैसे पहुंचे और उनकी मुक्ति की चाहत का क्या हुआ? 

सावरकर ने मुक्ति की ये छलांग 8 जुलाई 1910 को लगाई थी. इस रोज सुबह सुबह सावरकर ने अपनी पहरेदारी में खड़े सिपाहियों से शौच जाने की अनुमति मांगी. वीर सावरकर को ब्रिटेन से इंडिया ले जा रहे जहाज ने 7 जुलाई की शाम को फ्रांस के तटवर्ती शहर मार्सिले में लंगर डाला था. 

वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल 'ब्रेवहार्ट सावरकर' लिखने वाले आशुतोष देशमुख के हवाले से बीबीसी में लिखते हैं, "सावरकर ने जानबूझ कर अपना नाइट गाउन पहन रखा था. शौचालय में शीशे लगे हुए थे ताकि अंदर गए कैदी पर नजर रखी जा सके. सावरकर ने अपना गाउन उतार कर उससे शीशे को ढ़क दिया."

Advertisement

पुस्तक 'ब्रेवहार्ट सावरकर'के अनुसार सावरकर ने शौचालय के 'पोर्ट होल' को नांप लिया था और उन्हें अंदाज़ा था कि वो उसके जरिए बाहर निकल सकते हैं. सावरकर ने अपने दुबले-पतले शरीर को पोर्ट-होल से नीचे उतारा और बीच समुद्र में कूद गए. और लगे तैरने.

सावरकर इस भागाभागी में चोटिल हो गए, उनके शरीर से खून बहने लगा. इस दौरान ब्रिटिश सिपाही भी समुंद्र में कूद गए और उनका पीछा करने लगे. 

आशुतोष देशमुख लिखते हैं, "सावरकर लगभग  15 मिनट तैर कर किनारे पहुंचे. वो तेज़ी से दौड़ने लगे और एक मिनट में उन्होंने करीब 450 मीटर का फ़ासला तय किया."

जब सावरकर हांफकर मार्सिले शहर पहुंचे तो उनके बदन पर नाममात्र के कपड़े थे. मार्सिले शहर में ट्रामें और कारें दौड़ रही थीं. 

अचानक एक पुलिसवाला सावरकर को दिखाई देता है, फ्रेंच न जानने वाले सावरकर ने अंग्रेजी में फ्रेंस पुलिसवाले से कहा, " मुझे राजनीतिक शरण चाहिए, मुझे मजिस्ट्रेट के पास ले चलो."

लंदन में कानून पढ़ रहे सावरकर जानते थे कि उन्होंने फ्रांस की जमीन पर कोई अपराध नहीं किया है, लिहाजा पुलिस हड़बड़ी में उन्हें भले ही गिरफ्तार कर लेती लेकिन उनपर कोई केस नहीं बनेगा.

मार्सिले में उस रोज समुद्र के किनारे सुबह-सुबह एक अजनबी को देखकर बहस चल ही रही थी कि सावरकर का पीछा कर रहे सिपारी वहां पहुंच गए और चोर चिल्लाने लगे. 

Advertisement

सावरकर ने बहुत विरोध जताया लेकिन अंग्रेज सिपाहियों ने धौंस जमाकर सावरकर को गिरफ्तार कर ही लिया. 

अंग्रेजों के बागी सावरकर की कुछ ही मिनटों की मुक्ति खत्म हो गई थी. इसके बाद उनके जीवन में कारावास और काले पानी का जो दौर आया वो किसी न किसी रूप में अगले 25 सालों तक चला. 

क्यों गिरफ्तार किए गए थे सावरकर?

1910 में सावरकर लंदन में कानून की पढ़ाई कर रहे थे. लंदन में उनपर कोई केस भी न था. फिर ब्रिटिश पुलिस ने 13 मार्च 1910 को लंदन से उन्हें गिरफ्तार क्यों किया? 

इस सवाल का जवाब पाने के लिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी जाननी पड़ेगी. 

नासिक के विजयानंद थियेटर में मराठी नाटक 'शारदा' का मंचन हो रहा था. तारीख थी 21 दिसंबर 1909. दरअसल नासिक के क्लेक्टर जैक्सन की विदाई की हो रही थी. उन्हीं को सम्मान देने के लिए इस नाटक का मंचन हो रहा था. 

नासिक में 'पंडित जैक्सन' के नाम से चर्चित जैक्सन का प्रमोशन हुआ था अब वह बंबई का कमिश्नर था. ये नाटक एक तरह से उसकी फेयरवेल पार्टी थी. 

जैक्सन  जैसे ही नाटक देखने आया. मौका पाकर 18 साल का एक क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कन्हारे सामने आया और अपनी पिस्टल से कलेक्टर जैक्सन के सीने में चार गोलियां दाग दी.  

Advertisement

अंग्रेजों ने अपनी जांच में पाया कि जिस पिस्टल से कन्हारे ने जैक्सन को गोली मारी थी उसे लंदन से सावरकर ने ही भेजा था. इसी बिना पर ब्रिटिश पुलिस ने 13 मार्च 1910 को उन्हें लंदन रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया. ब्रिटिश मजिस्ट्रेट ने सावरकर को मुकदमे का सामना करने के लिए  ब्रिटेन से बंबई भेजने का आदेश दिया.

1 जुलाई 1910 को सावरकर इसी सफर पर रवाना होने के लिए ब्रिटिश जहाज एस एस मोरिया पर सवार हुए थे. 

Live TV

Advertisement
Advertisement