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हथियार डालते मणिपुर के इन विद्रोहियों की तस्वीर क्यों है ऐतिहासिक? कितना अहम है UNLF से समझौता

UNLF का गठन 24 नवंबर 1964 को हुआ था. यह मणिपुर का सबसे पुराना उग्रवादी संगठन है. इसका गठन अरेंबम सैमेंद्र के नेतृत्व में भारत से अलग होने की मांग के साथ किया गया था. यह मैतेई विद्रोही समूह है. 1990 में UNLF ने भारत से मणिपुर को अलग करने के लिए सशस्त्र संघर्ष भी शुरू किया था.

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उग्रवादी संगठन UNLF के सदस्य समर्पण करते हुए
उग्रवादी संगठन UNLF के सदस्य समर्पण करते हुए

मणिपुर से बुधवार को कुछ ऐसी तस्वीरें और वीडियो सामने आईं, जो पूर्वोत्तर के राज्य में शांति स्थापित करने की दिशा में काफी अहम मानी जा रही हैं. इन तस्वीरों में सैकड़ों विद्रोही हथियार डालते नजर आ रहे हैं. ये विद्रोही मणिपुर के सबसे पुराने उग्रवादी गुट यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) के हैं. 

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UNLF ने बुधवार को सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए और हिंसा छोड़ने पर सहमति व्यक्त की. खास बात ये है कि UNLF ने ऐसे वक्त पर हथियार डाले, जब गृह मंत्रालय ने कुछ दिन पहले ही यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) पर पांच सालों का प्रतिबंध बढ़ाया था. गृह मंत्रालय ने मणिपुर में जारी हिंसा के बीच 5 उग्रवादी संगठनों पर प्रतिबंध बढ़ाया था. 

यह ऐतिहासिक- अमित शाह

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर कहा, ''एक ऐतिहासिक मील का पत्थर. पूर्वोत्तर में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए मोदी सरकार के अथक प्रयासों ने पूर्ति का एक नया अध्याय जोड़ा है क्योंकि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने आज नई दिल्ली में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. मणिपुर का सबसे पुराना घाटी स्थित सशस्त्र समूह यूएनएलएफ, हिंसा छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने के लिए सहमत हो गया है. मैं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में उनका स्वागत करता हूं और शांति और प्रगति के पथ पर उनकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं."

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अमित शाह ने ट्वीट कर कहा, भारत और मणिपुर सरकार द्वारा यूएनएलएफ के साथ शांति समझौता छह दशक लंबे सशस्त्र आंदोलन के अंत का प्रतीक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के सर्वसमावेशी विकास के दृष्टिकोण को साकार करने और पूर्वोत्तर भारत में युवाओं को बेहतर भविष्य प्रदान करने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है. 

1964 में बना था UNLF

UNLF का गठन 24 नवंबर 1964 को हुआ था. यह मणिपुर का सबसे पुराना उग्रवादी संगठन है. इसका गठन अरेंबम सैमेंद्र के नेतृत्व में भारत से अलग होने की मांग के साथ किया गया था. यह मैतेई विद्रोही समूह है. 1990 में UNLF ने भारत से मणिपुर को अलग करने के लिए सशस्त्र संघर्ष भी शुरू किया था. माना जाता है कि यूएनएलएफ को शुरुआती ट्रेनिंग सबसे बड़े नागा विद्रोही समूह एनएससीएन (आईएम) से मिली थी.  UNLF ने 1990 में सशस्त्र विंग मणिपुर पीपुल्स आर्मी का गठन भी किया था.  पिछले कुछ सालों में इसने भारतीय सुरक्षा कर्मियों को निशाना बनाकर कई हमले किए. 

गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत UNLF पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है. यह बड़े पैमाने पर म्यांमार की सेना के संरक्षण में म्यांमार के सागांग क्षेत्र, चिन राज्य और राखीन राज्य में शिविरों और ट्रेनिंग कैंप से अपनी साजिशों को अंजाम देता रहा है. हालांकि, म्यांमार में सेना के खिलाफ चल रहे विद्रोह के बाद से UNLF बैकफुट पर है. 

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साल 2000 में सैमेंद्र की हत्या के बाद, यूएनएलएफ का नेतृत्व आर के मेघेन ने किया. 2010 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद इस संगठन की कमान खुंडोंगबाम पामबेई के पास आ गई. हालांकि, UNLF में कई बार टूट भी हुई.

क्यों अहम है ये समझौता?

मणिपुर में 3 मई से हिंसा जारी है. इस  हिंसा के मध्य में मैतेई और कुकी समाज है. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा मांग रहा है. मणिपुर हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने 20 अप्रैल को इस मामले में एक आदेश दिया था. इस आदेश में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. 

कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला था. ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. 

- इसके बाद से राज्य में हिंसा की घटनाएं हो रही हैं. हालांकि, अभी स्थिति काबू में है. अब तक 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, हजारों घरों को जला दिया गया. हिंसा में अब तक 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं. ये लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं.

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मणिपुर की कुल आबादी 28.55 लाख है. UNLF के हथियार डालने से पूर्वोत्तर के राज्य में अब शांति लौटने की उम्मीद है. यूएनएलएफ अपने सशस्त्र आंदोलनों को संचालित करने के लिए जबरन वसूली, हथियार व्यापार और बड़े प्रोजेक्ट से वसूली करता था, लेकिन अब इस संगठन के हथियार डालने को मणिपुर में शांति की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा है. 

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