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क्या है सिग्नल स्पूफिंग... भारत-पाकिस्तान सीमा पर विमानों के लिए कैसे बन रहा खतरा?

स्पूफिंग को फ्लाइट ऑपरेशन के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा करने वाला माना जाता है. क्योंकि यह एयरक्राफ्ट में मौजूद महत्वपूर्ण उपकरणों के सामान्य कामकाज में बाधा डालता है. यदि ऐसा होता है, तो एयरक्राफ्ट अपने फ्लाइट रूट से भटक सकता है.

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सिग्नल स्पूफिंग भारत और पाकिस्तान की सीमा पर ​विमानों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनकर उभरा है. (प्रतीकात्मक फोटो)
सिग्नल स्पूफिंग भारत और पाकिस्तान की सीमा पर ​विमानों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनकर उभरा है. (प्रतीकात्मक फोटो)

अमृतसर और जम्मू में भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में उड़ान भरने वाले विमानों को एक बढ़ती चुनौती का सामना करना पड़ रहा है: ऐसे इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल जो सैटेलाइट नेविगेशन बीम की नकल करते हैं. इसका खतरा ये है कि फेक सिग्नल पैसेंजर्स और क्रू की सुरक्षा से समझौता कर सकते हैं. सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में बताया कि पिछले दो वर्षों में 450 से अधिक भारतीय उड़ानों में 'सिग्नल स्पूफिंग' की रिपोर्ट की गई है. सिग्नल स्पूफिंग क्या है? सिविल फ्लाइट्स पर इसका क्या असर होता है और ऐसा क्यों होता है? आइए इसके बारे में जानते हैं...

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सिग्नल स्पूफिंग

हवा में गोता लगा रहे विमान और जमीन से उन्हें जरूरी सहायता देने वाले एयर कंट्रोलर्स, नेविगेशन, सर्विलांस और ट्रैकिंग के लिए ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) से प्राप्त सैटेलाइट सिग्नल्स पर निर्भर करते हैं.

Signal Spoofing

ये सैटेलाइट सिग्नल्स प्रायः कमजोर होते हैं और एयरक्राफ्ट सिस्टम्स उन्हें छोड़कर ऐसे मजबूत सिग्नल्स को फॉलो करते हैं, जो सैटेलाइट सिग्नल्स की नकल करते हैं- इस घटना को सिग्नल स्पूफिंग के रूप में जाना जाता है. एविएशन इंडस्ट्री के लिए इंफॉर्मेशन शेयर करने वाले प्लेटफॉर्म OPSGROUP के अनुसार, GNSS स्पूफिंग सितंबर 2023 में सिविल एविएशन को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है. अगस्त 2024 तक, लगभग 1500 उड़ानों में प्रतिदिन सिग्नल स्पूफिंग की सूचना मिली है.

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केंद्र सरकार के अनुसार, भारत में नवंबर 2023 से फरवरी 2025 के बीच विशेष रूप से अमृतसर और जम्मू क्षेत्रों में लगभग 465 उड़ानें जीपीएस/जीएनएसएस स्पूफिंग से प्रभावित हुईं. OPSGROUP के अनुसार, फेक सिग्नल फ्लाइट मैनेजमेंट सिस्टम, ग्राउंड प्रॉक्सिमिटी वार्निंग सिस्टम, एयरक्राफ्ट क्लॉक, वेदर रडार, कंट्रोलर-पायलट डेटा लिंक कम्युनिकेशन, ऑटोमेटिक डिपेंडेंट सर्विलांस-ब्रॉडकास्ट (ADS-B) और ऑटोमेटिक डिपेंडेंट सर्विलांस-कॉन्ट्रैक्ट (ADS-C) के सामान्य संचालन को बाधित कर सकते हैं.

सिग्नल स्पूफिंग से सुरक्षा संबंधी चुनौतियां

स्पूफिंग को फ्लाइट ऑपरेशन के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा करने वाला माना जाता है. क्योंकि यह एयरक्राफ्ट में मौजूद महत्वपूर्ण उपकरणों के सामान्य कामकाज में बाधा डालता है. यदि ऐसा होता है, तो एयरक्राफ्ट अपने फ्लाइट रूट से भटक सकता है, जिसके परिणामस्वरूप विमान किस तरह के भौगोलिक क्षेत्र के ऊपर उड़ान भर रहा है, इससे संबंधित डेटा पायलट को नहीं मिल पाती और इस कारण गंभीर हादसे का जोखिम बनता है. 

Flight Saftey Risk.png

डीजीसीए (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि जैमिंग या स्पूफिंग अटैक के कारण पायलट को नेविगेशन या टेरेन संबंधी भ्रामक जानकारी मिल सकती है, जिसका फ्लाइट सिक्योरिटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. डीजीसीए के सर्कुलर में कहा गया है कि स्पूफिंग अटैक का प्रभाव अस्थायी हो सकता है, जिसमें प्रभावित क्षेत्रों को छोड़ने पर सुधार हो सकता है, या स्थायी भी हो सकता है, जिसमें सुधार न हो सकने वाली स्थिति पैदा हो सकती है.

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ऑपरेटरों की ओर से जनवरी में जारी सुरक्षा चेतावनी में यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) ने कहा था कि जीपीएस स्पूफिंग से सिविल एविशन के लिए फ्लाइट सिक्योरिटी का संभावित खतरा उत्पन्न होता है. हालांकि, विमानों में नेविगेशन के लिए वैकल्पिक सिस्टम अब भी मौजूद हैं, लेकिन जीपीएस इनोवेशन एलायंस के अनुसार, ये एनालॉग सिस्टम जीपीएस और अन्य जीएनएसएस सिग्नल्स जितने सक्षम नहीं हैं. जीपीएस/जीएनएसएस स्पूफिंग अटैक खासकर कॉन्फ्लिक्ट जोन के आसपास होते हैं. सबसे अधिक सिग्नल स्पूफिंग पूर्वी भूमध्य सागर में, इजरायल, लेबनान, साइप्रस और मिस्र के निकट होती है. OPSGROUP ने सितंबर 2024 की एक रिपोर्ट में कहा कि ब्लैक सी, पश्चिमी रूस और भारत/पाकिस्तान सीमा पर सिग्नल स्पूफिंग के बहुत सारे मामले दर्ज किए गए हैं. 

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सिग्नल स्पूफिंग का उपयोग

कॉन्फ्लिक्ट जोन या उसके आसपास, सिग्नल स्पूफिंग का उपयोग अक्सर सीमाक्षेत्र का उल्लंघन करने वाले ड्रोन, एयरक्राफ्ट, मिसाइल सिस्टम्स और अन्य गाइडेड-प्रोजेक्टाइल्स के खिलाफ डिफेंस टूल के रूप में किया जाता है. इसे अन्य GPS-गाइडेड हथियारों, मिसाइलों, ऑटोनोमस या मैन्ड व्हीकल्स के फ्लाइट रूट को बाधित करने के लिए भी तैनात किया जाता है. इन क्षेत्रों में उड़ान भरने के दौरान सिविल एयरक्राफ्ट सिग्नल स्पूफिंग का अनचाहा टारगेट बन जाते हैं.

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Signal Spoofing.png

2019 में भारत के हवाई हमले के बाद, पाकिस्तान सीमा पर अपने एयर डिफेंस को मजबूत कर रहा है और यह संभव है कि इस्लामाबाद ने ऐसे सिस्टम तैनात किए हों जो जीपीएस/जीएनएसएस की नकल करने वाले सिग्नल छोड़ते हों. पुलिस, अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियां और सुरक्षा बल भी संवेदनशील क्षेत्रों में ड्रोन ऑपरेशन को रोकने के लिए स्पूफिंग डिवाइस तैनात करते हैं. माना जाता है कि काउंटर-ड्रोन सिस्टम, जिनमें से कई पाकिस्तान सीमा से लगे क्षेत्रों में तैनात हैं, ड्रोन को ग्राउंडेड करने के लिए सिग्नल स्पूफिंग का उपयोग करते हैं. 

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अमृतसर और जम्मू भारत के सबसे ज्यादा सिग्नल स्पूफिंग प्रभावित सीमावर्ती क्षेत्रों में से हैं, जहां हाल के वर्षों में दुश्मन के ड्रोन बंदूकों, गोला-बारूद, ड्रग्स और पैसे के साथ भारतीय सीमा में उतरते देखे गए हैं. रिपोर्टों के अनुसार, सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने 2023 और 2024 में क्रमशः अमृतसर और जम्मू सेक्टरों में 107 और 184 पाकिस्तानी ड्रोन को या तो मार गिराया है या भारतीय सीमा क्षेत्र में घुसने से रोकने में सफल रहा है.

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