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'क्या है वर्टिकल ड्रिलिंग, कैसे करेगी काम...', सुरंग में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए ये है प्लान B

मजदूरों की जिंदगी बचाने के लिए सुरंग के ऊपर से खुदाई की तैयारी है. वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए मशीनों को सुरंग के ऊपरी हिस्से पर ले जाया जा रहा है. इससे पहले तक माना जा रहा था कि अमेरिकी ऑगर मशीन मलबे में ड्रिंलिग का काम जल्द पूरा करेंगी और मजदूर निकाल लिए जाएंगे.

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उत्तरकाशी में टनल में फंसे हैं 41 मजदूर (फाइल फोटो)
उत्तरकाशी में टनल में फंसे हैं 41 मजदूर (फाइल फोटो)

उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों के जीवन में हर दिन आ रही नई तारीख, उनके लिए आशा लेकर आती है कि बस आज का दिन और वह, जल्द ही बाहर आ जाएंगे, लेकिन अफसोस कि हर एक दिन के साथ इंतजार का ये सिलसिला अगले दिन पर कर्ज की तरह चढ़ जाता है.

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शनिवार को उस वक्त मजदूरों और रेस्क्यू टीम को एक बार फिर निराशा का सामना करना पड़ा, जब रेस्क्यू में लगी अमेरिका से आई ऑगर मशीन के ब्लेड खराब होने से वो नाकाम हो गई. अब माना जा रहा है कि रेस्क्यू टीम के पास वर्टिकल ड्रिलिंग यानी सुरंग के ठीक ऊपर के हिस्से के पहाड़ की खुदाई का विकल्प बचा है. वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए भारी भरकम मशीनें पहुंचाई जा रहीं हैं.

ऑगर मशीन हुई नाकाम
अब मजदूरों की जिंदगी बचाने के लिए सुरंग के ऊपर से खुदाई की तैयारी है. वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए मशीनों को सुरंग के ऊपरी हिस्से पर ले जाया जा रहा है. इससे पहले तक माना जा रहा था कि अमेरिकी ऑगर मशीन मलबे में ड्रिंलिग का काम जल्द पूरा करेंगी और मजदूर निकाल लिए जाएंगे. लेकिन शनिवार सुबह-सुबह ऐसी खबर आई जो पूरे देश को मायूस कर गई. मलबे को भेद पाने में ऑगर मशीन नाकाम रहीं. उसके ब्लेड टूट गए और मशीन बेदम हो गई.

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उत्तरकाशी में टनल में फंसे हैं 41 मजदूर (फाइल फोटो)

क्या है वर्टिकल ड्रिलिंग?
अब जब टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग का प्लान बन रहा है तो यह जानना जरूरी है, कि क्या है वर्टिकल ड्रिलिंग और यह कैसे काम करेगी. आईआईटी गुवाहाटी में सिविल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर विवेक पद्मनाभ वर्टिकल ड्रिलिंग के बारे में बताते हुए कहते हैं कि, 'जब हम सुरंग बनाने की कोशिश करते हैं तो मिट्टी और चट्टानों पर भारी मात्रा में दबाव पड़ता है, या इसे भू-तनाव भी कहा जाता है और इससे संतुलन बिगड़ जाता है.

कैसे हुआ होगा हादसा?
इसे कुछ चट्टानें अच्छी तरह अपनाती हैं और कुछ नहीं. उत्तरकाशी में सुरंग बनाने के दौरान यहां की चट्टानों ने इसे अच्छी तरह से नहीं अपनाया होगा. संभवतः तीन मुद्दे हो सकते हैं जैसे भूविज्ञान के ज्ञान की कमी, अनुचित डिजाइन और दोषपूर्ण निर्माण. तीसरा कारण उत्खनन एवं निवारण योजना का अभाव है.'

कैसी होगी प्रक्रिया?
विवेक पद्मनाभ के मुताबिक, वर्टिकल ड्रिलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें हम पृथ्वी की सतह के नीचे अर्थ शाफ्ट बनाते हुए बोर होल ड्रिल करते हैं. यह वेंटिलेशन और संचार के लिए सीधी पहुंच प्रदान करने के लिए है. यदि बोर होल पर्याप्त चौड़ा है तो हम फंसे हुए लोगों को निकाल सकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भौगोलिक तनाव अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग होता है, इसलिए ऊर्ध्वाधर तनाव पर अधिकतम दबाव होगा. यहां पर केसिंग के जरिए चट्टानों को बोरवेल में गिरने से रोका जा सकेगा.

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वर्टिकल ड्रिलिंग प्लान B का हिस्सा
दरअसल, वर्टिकल ड्रिलिंग प्लान B का हिस्सा था. इसकी चर्चा जोरों पर है. इस प्लान के तहत टनल में वर्टिकली 86 मीटर की खुदाई होनी है. हालांकि इसको लेकर अबतक रेस्क्यू टीम में जुटी एजेंसियों ने कोई फाइनल फैसला नहीं किया है. लेकिन माना जा रहा है इस प्लान पर आगे बढ़ा जा सकता है. वहीं टनल के दूसरे सिरे से भी हॉरिजॉन्टल खुदाई जारी है. अबतक दूसरे सिरे से खुदाई के लिए 3 ब्लास्ट किए जा चुके हैं. 

क्या था प्लान A, जो नहीं हुआ कारगर
प्लान -A के तहत अमेरिकन ऑगर मशीन से ड्रिलिंग का काम चल रहा था. ड्रिलिंग मशीन के जरिए 80 सेंटीमीटर मोटाई वाली पाइप को भेजा जा रहा था. लेकिन करीब-करीब 45 से 46 मीटर की दूरी पर जाकर ऑगर मशीन ने काम करना बंद दिया क्योंकि ये मशीन टूट गई, यानी मजदूरों से महज 12 से 15 मीटर की दूरी पर ये काम ठप हो गया. इस प्लान के तहत सिल्क्यारा साइड में मजदूरों को निकालने के लिए मेडिकल की सुविधा थी. टनल के बाहर 41 एंबुलेंस और 40 डॉक्टरों की टीम तैनात थी.

उत्तरकाशी टनल हादसा

चुनौतियों भरी होगी वर्टिकल ड्रिलिंग 
वर्टिकल ड्रिलिंग का काम भी चुनौतियों भरा है. कई टन वजनी मशीन को उस ऊंचाई तक पहुंचाना और फिर ड्रिलिंग एक लंबी प्रक्रिया है. ONGC और SGVNL सुरंग के ऊपर से ड्रिल की तैयारी में जुटे हैं. इसके लिए बीआरओ ने सड़क पहले ही तैयार कर लिया था. लेकिन असल चुनौती अब है. माना जा रहा है कि ऊपरी हिस्से से फंसे मजदूरों तक 85 मीटर से ज्यादा की ड्रिल करनी होगी. ड्रिल के लिए लाई गई इस मशीन का इस्तेमाल डीप सी एक्सप्लोरेशन में किया जाता है.

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सुरंग के ऊपर पहुंचने के बाद इस मशीन और इसके पुर्जों को जोड़ा जाएगा. ड्रिल से पहले मशीन को तैयार करने में करीब 2 घंटे का वक्त लगेगा. ड्रिल की रफ्तार वहां मिलने वाली मिट्टी और चट्टान पर निर्भर है. जितनी सख्त जमीन मिलेगी उतना ज्यादा समय लगेगा. अब तक राहतकर्मी सुरंग के मुहाने से हो रही ड्रिलिंग के भरोसे थे. अब वर्टिकल ड्रिलिंग ही सहारा है, क्योंकि सुरंग के अंदर मलबे में मौजूद सरिये के जाल को काट पाना आसान नहीं है.

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