क्या गेहूं को लेकर देश में ऑल इज वेल है? याद करिए रद्द हो चुके कृषि कानून को लेकर क्या कहा जा रहा था. दावा ये किया जा रहा था कि किसान अपना अनाज मंडी से बाहर भी बेच पाएंगे. इससे किसानों को अपने उत्पाद की अधिक कीमत मिलेगी और उनकी आय बढ़ेगी. आज जब किसानों ने गेहूं सरकारी मंडी की तुलना में व्यापारियों को अधिक बेच दिया सरकारी गोदाम में स्टॉक कम हो गया. गेहूं की खरीदारी कम हुई तो इसके परिणाम भी नजर आने लगे.
केंद्र सरकार ने तत्काल प्रभाव से गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दिया है. केंद्र की ओर से कहा गया है कि बढ़ती कीमतों को देखते हुए ये कदम उठाया गया है. दूसरी तरफ स्थिति ये है कि आठ राज्यों में मुफ्त राशन में दिए जाने वाले गेहूं में अगले महीने से कटौती करने का फैसला लिया जा चुका है. अब इसे सिर्फ गरीब परिवारों की चिंता मानकर अपने लिए ऑल इज वेल मान लेना भी ठीक नहीं. हालात गंभीर हैं.
केंद्र सरकार ने यूपी समेत कई राज्यों में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत दिए जा रहे गेहूं की सप्लाई रोककर उसकी जगह भी चावल ही देने की बात कही है. यूपी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत में बड़ी भूमिका के लिए खुद प्रधानमंत्री ने महिलाओं का विशेष धन्यवाद दिया था और आज इन्हीं महिलाओं को भोजन की चिंता सताने लगी है. महिलाएं अब ये सवाल भी करने लगी हैं कि केवल चावल खाकर कैसे जिएंगे. क्या सरकार केवल चावल खा लेगी? महिला लाभार्थियों का सवाल ये भी है कि एक अनाज कोई कैसे खा सकता है. केवल चावल तो खा नहीं सकते.
यूपी के अधिकारियों ने केंद्र को लिखी चिट्ठी
यूपी के खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर कहा है कि पूर्वांचल में तो गेहूं की जगह चावल खिला लेंगे लेकिन पश्चिम के लोगों को कैसे गेहूं न दें? लखनऊ में खाद्य आपूर्ति विभाग के अपर आयुक्त खाद्य अरुण कुमार सिंह ने कहा है कि उस योजना में भारत सरकार ने गेहूं की जगह चावल ही आवंटित किया है. उन्होंने कहा कि पश्चिम के सात मंडलों में लोग चावल खाना पसंद नहीं करते. हमने अनुरोध पत्र भेजा है कि वहां के लिए गेहूं भी दें और चावल भी.
क्या कहते हैं डाइटिशियन
उत्तर और मध्य भारत के कई राज्यों में आम आदमी, खासकर गरीबों की थाली में चावल से ज्यादा गेहूं के आटे की रोटी का इस्तेमाल होता है. लखनऊ के केजीएमयू की चीफ डाइटिशियन सुनीता सक्सेना ने कहा कि गेहूं में फाइबर अधिक और चावल में कम है. उन्होंने कहा कि चावल के अधिक सेवन से पेट से जुड़ी समस्याएं आती है. गेहूं में ग्लूटिन प्रोटीन होती है और चावल में कम. तीसरी चीज गेहूं में माइक्रो न्यूट्रिएंट होते हैं, आयरन, कैल्शियम, जिंक जो चावल में बहुत कम होते हैं. प्रोटीन, फाइबर, एंटी ऑक्सीटेंड बेस्ट अनाज गेहूं है. मतलब ये कि अगर सितंबर तक यानी चार महीने गरीबों को मिलने वाले मुफ्त अनाज से गेहूं गायब होता है तो फिर पोषण और बीमारी, दोनों की समस्या बढ़ भी सकती है.
क्यों आई ये नौबत
समझना ये भी जरूरी है कि आखिर मुफ्त अनाज की योजना से गेहूं की कटौती की नौबत क्यों आई? होता ये आया है कि सरकार किसानों से MSP पर गेहूं खरीदकर उसी को मुफ्त अनाज की योजना में जनता तक पहुंचाती है. इस बार हुआ ये है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमत बढ़ गई है. ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों ही गेहूं के बड़े निर्यातक हैं. दाम बढ़े तो सरकारी मंडी की जगह व्यापारियों ने किसानों का गेहूं ज्यादा खरीद लिया. इसका परिणाम ये हुआ कि 1 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक सरकारी गोदाम में गेहूं का स्टॉक पांच साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. एक अनुमान है कि पिछले साल के मुकाबले 30 फीसदी तक गेहूं की सरकारी खरीद कम हो पाई है. आगे इसके और भी घटने की आशंका है. ब्रेड-बिस्किट पर भी महंगाई के बादल मंडराने लगे हैं. गेहूं के इस खेल में समस्या और चिंता सबके लिए है.
(आजतक ब्यूरो)