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संसद में कौन करता है माइक ऑन और ऑफ? जानिए क्या हैं इसके नियम

संसद में कथित तौर पर विपक्षी नेताओं के माइक बंद करने को लेकर सियासी घमासान जारी है. राहुल गांधी ने लंदन में एक कार्यक्रम में कहा कि वे जब संसद में बोलते हैं, तो उनका माइक बंद कर दिया जाता है. बीजेपी राहुल के इस बयान को लेकर उनपर निशाना साध रही है. ऐसे में जानतेे हैं कि आखिर माइक कौन ऑन या ऑफ करता है और इसकी प्रक्रिया क्या है?

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भारतीय संसद
भारतीय संसद

कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार आरोप लगा रहे हैं कि संसद में उनका माइक बंद कर दिया जाता है और उनकी आवाज दबा दी जाती है. वहीं, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि उनका माइक्रोफोन तीन दिनों के लिए म्यूट कर दिया गया था. ऐसे में इन आरोपों ने सब के मन में एक सवाल पैदा कर दिया है कि आखिर संसद में कौन माइक बंद करता है और इसे बंद करने के आखिर क्या नियम हैं?

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सदन में प्रत्येक सांसद की सीट तय होती है. सीट पर माइक्रोफोन डेस्क से जुड़ा होता है. इनका अपना नंबर होता है. संसद के दोनों सदनों में चैंबर होता है, जहां साउंड टेक्नीशियन बैठते हैं. ये सदन से जुड़े अधिकारी होते हैं जो लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को ट्रांसक्राइव और रिकॉर्ड करते हैं. 

चैंबर में इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड होता है. यहां से माइक्रोफोन खोले या बंद किए जा सकते हैं. चैंबर में लगे ग्लास के जरिए ये अधिकारी सदन की कार्यवाही को देख सकते हैं. यह निचले सदन के मामले में लोकसभा सचिवालय के कर्मचारियों द्वारा और उच्च सदन के मामले में राज्यसभा सचिवालय के कर्मचारियों द्वारा संचालित होता है. 

एक्सपर्ट और संसद कवर करने वाले पत्रकारों का कहना है कि माइक्रोफोन को चालू और बंद करने की एक निर्धारित प्रक्रिया है. उन्होंने बताया कि सदन के अध्यक्ष नियमों के मुताबिक ही माइक्रोफोन को बंद करने का निर्देश दे सकते हैं. आम तौर रप सदन में हंगामे के दौरान इस शक्ति का इस्तेमाल किया जाता है. दोनों सदनों में माइक्रोफोन को मैन्युअल रूप से चालू और बंद किया जाता है. 

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डीएमके के राज्यसभा सांसद और जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने बताया कि माइक्रोफोन राज्यसभा के सभापति के निर्देश पर चालू किए जाते हैं. जब को सदस्य बोलता है तो उसका माइक चालू कराया जाता है. 

विल्सन ने बताया कि शून्य काल में एक सदस्य को बोलने के लिए तीन मिनट का समय दिया जाता है. जब तीन मिनट हो जाते हैं, तो अपने आप ही माइक बंद हो जाता है. जब बिल या मुद्दे पर चर्चा होती है, तो सभी पक्षों को समय दिया जाता है. अध्यक्ष अपने विवेक के हिसाब से सदस्यों को बोलने का समय देते हैं. 

वहीं, संसद कवर करने वाले एक पत्रकार ने बताया कि यदि किसी सांसद की बोलने की बारी नहीं है तो उसका माइक बंद हो सकता है. विशेष मौकों पर सांसदों के पास 250 शब्दों को पढ़ने की सीमा होती है, जब उनके बोलने का नंबर आता है, तो माइक चालू हो जाता है. 

एक्सपर्ट के मुताबिक, हर सदस्य का सीट क्रमांक तय होता है और उनसे अपनी जगह से बोलने का अनुरोध किया जाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि डेडिकेटेड और ट्रेन्ड स्टाफ लोकसभा और राज्यसभा में पूरे माइक्रोफोन सिस्टम को चलाता है. यह सब दिशानिर्देशों के अनुसार ही चलती है. 

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जब सांसदों की बोलने की बारी नहीं होती, तो उनकी आवाज कैसे सुनाई देती है, इस सवाल के जवाब में पी विल्सन ने बताया कि हंगामे के दौरान, सदस्य तेज तेज चिल्लाते हैं, ऐसे में सदस्यों के पास में जो माइक होता है, उससे आवाज सुनाई देती है. वहीं, नाम न छापने की शर्त पर लोकसभा में  वरिष्ठ पद पर आसीन एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि माइक बंद होने के दावे काफी चौंकाने वाले हैं. मुझे यकीन नहीं है कि ऐसा कुछ किया गया. 

 
 राहुल गांधी VS जगदीप धनखड़

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में लंदन में अपने एक संबोधन के दौरान कहा था, भारत में विपक्ष को बोलने नहीं दिया जाता. हमारे माइक को बंद कर दिया जाता है. जब मैं संसद में बोलता हूं तो मेरे माइक को बंद कर दिया जाता है. ऐसा कई बार हुआ है. 

वहीं, राहुल के आरोपों पर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पलटवार करते हुए कहा था कि इससे बड़ा कुछ झूठ नहीं हो सकता. धनखड़ ने कहा था, लोकसभा एक बड़ी पंचायत है जहां माइक्रोफोन कभी बंद नहीं होते. कोई बाहर जाता है और कहता है कि इस देश में माइक्रोफोन बंद हैं. हां, आपातकाल के दौरान एक समय था जब माइक्रोफोन बंद हो जाते थे. 

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