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कर्नाटक के हक्की-पिक्की आदिवासियों के बारे में जानिए, जो सूडान में गृहयुद्ध के बीच फंस गए

हक्की पिक्की' कर्नाटक के प्रमुख आदिवासी समुदायों में से एक है. कन्नड़ में 'हक्की' शब्द का इस्तेमाल 'पक्षी' और 'पिक्की' का इस्तेमाल 'पकड़ने' के लिए किया जाता है. यानी इस समुदाय का पारंपरिक व्यवसाय 'पक्षी पकड़ने' के रूप में जाना जाता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, हक्की पिक्की समुदाय की कर्नाटक में आबादी 11892 थी.

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सूडान में हिंसा में फंसे कर्नाटक के हक्की-पिक्की समुदाय के 31 लोग
सूडान में हिंसा में फंसे कर्नाटक के हक्की-पिक्की समुदाय के 31 लोग

कर्नाटक के हक्की-पिक्की आदिवासी समुदाय के 31 लोग गृहयुद्ध से जूझ रहे अफ्रीकी देश सूडान में फंस गए हैं. पिछले हफ्ते शुरू हुई हिंसा के बाद से इन लोगों के पास खाने तक की भी व्यवस्था नहीं है. कांग्रेस ने इस मुद्दे पर केंद्र और कर्नाटक की सत्ताधारी बीजेपी पर निशाना साधा है. कांग्रेस का आरोप है कि सीएम बसवराज बोम्मई ने इन लोगों को वहां से निकालने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. 

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उधर, कर्नाटक स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने कहा है कि सूडान में आदिवासियों की स्थिति के बारे में विदेश मंत्रालय (MEA) को जानकारी दे दी गई है और फंसे हुए लोगों से कहा है कि वे अपने वर्तमान स्थान को न छोड़ें और वहां भारतीय दूतावास की सलाह के हिसाब से काम करें. 

सूडान में अपने नागरिकों की सुरक्षा और के लिए भारत अन्य देशों के साथ संपर्क में है. इतना ही नहीं विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सूडान की स्थिति पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में अपने समकक्षों से बात की है. 

कौन हैं हक्की-पिक्की आदिवासी?
 
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के SPPEL (लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण के लिए योजना) के मुताबिक, हक्की पिक्की' कर्नाटक के प्रमुख आदिवासी समुदायों में से एक है. कन्नड़ में 'हक्की' शब्द का इस्तेमाल 'पक्षी' और 'पिक्की' का इस्तेमाल 'पकड़ने' के लिए किया जाता है. यानी इस समुदाय का पारंपरिक व्यवसाय 'पक्षी पकड़ने' के रूप में जाना जाता है. 

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2001 की जनगणना के मुताबिक, उत्तर भारत से विस्थापित हक्की पिक्की समुदाय की कर्नाटक में आबादी लगभग 8414  है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, इनकी आबादी 11892 थी. 1970 के दशक में पक्षियों के शिकार के उनके व्यापार पर प्रतिबंध लगने के बाद, हक्की-पिक्की आदिवासियों का पुनर्वास किया गया. 

इसके बाद इस समुदाय के लोगों ने खेतों में काम करने और साइकिल पर शहरों के चारों ओर घूमकर चाकुओं, कैंचियों को तेज करने जैसे काम करना शुरू कर दिया. इसके अलावा इस समुदाय के लोग जड़ी बूटियां भी बेचते हैं. हक्की-पिक्की को मातृसत्तात्मक कहा जाता है. 

कर्नाटक में कहां रहते हैं हक्की पिक्की, कौन सी भाषा बोलते हैं?

हक्की-पिक्की आदिवासी समुदाय कर्नाटक में मुख्य तौर पर शिमोगा, दावणगेरे और मैसूर में रहते हैं. द्रविड़ भाषाओं से घिरे होने और दक्षिणी भारत में रहने के बावजूद, इस समुदाय के लोग इंडो आर्यन भाषा बोलते हैं. उनकी मातृभाषा को 'वागरी' नाम दिया गया. ये लोग घर पर 'वागरी' भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जबकि दैनिक कामकाज के दौरान कन्नड़ भाषा बोलते हैं. यूनेस्को ने हक्की पिक्की को लुप्तप्राय भाषाओं में से एक बताया है.

औषधियां बेचने के लिए जाने जाते हैं

कर्नाटक में हक्की पिक्की समुदाय अपनी स्वदेशी दवाओं के लिए भी जाने जाते हैं. घने जंगलों में रहने वाली यह जनजाति पेड़- पौधे और जड़ी-बूटियों पर आधारित इलाज करते हैं. समुदाय के लोगों के पास जड़ी-बूटी संबंधी चिकित्सा का अच्छा ज्ञान है, इनकी कई अफ्रीकी देशों में मांग है. यही वजह है कि समुदाय के सदस्य पिछले कई सालों से अफ्रीकी देशों में जाते रहते हैं. 

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इससे पहले 2021 में भी हक्की पिक्की जनजातियां कोरोना से बचने की वजह से चर्चा में आई थीं. हालांकि, लॉकडाउन के चलते उन्हें कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. 

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