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कौन हैं बंगाल में मतुआ समुदाय के लोग, जो CAA लागू होने का मना रहे हैं जश्न

2019 लोकसभा चुनाव के ठीक बाद मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून बनाया और 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कानून को लागू कर दिया. कानून के हिसाब से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के चलते भारत में रह रहे गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी.

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मतुआ समुदाय लगातार सीएए की मांग करता रहा है (फाइल फोटो)
मतुआ समुदाय लगातार सीएए की मांग करता रहा है (फाइल फोटो)

 देश में नागरिकता संशोधन कानून आखिरकार लागू हो गया.  चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले मोदी सरकार की तरफ से CAA के नियमों को नोटिफाइड कर दिया है,यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफागानिस्तान से धर्म के आधार प्रताड़ना झेलने की वजह से भारत आए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया है.

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गृह मंत्री अमित शाह ने सीएए लागू होने पर मोदी सरकार के कमिटमेंट पूरा करने का दावा किया तो वही ओवैसी की तरफ सीएए लागू होने को लेकर सरकार पर बड़ा हमला किया गया है. असम के विधायक अखिल गोगोई ने कहा कि' असम से लिए CAA कानून अभिशाप है.' जहां एक तरफ विपक्ष इसका विरोध कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में सीएए लागू करने को लेकर जश्न मनाया जा रहा है. विशेषकर मतुआ समुदाय के लोग जमकर खुशियां मना रहे हैं.

मतुआ समुदाय की मांग थी सीएए

भाजपा ने मतुआ शरणार्थियों के लिए स्थायी नागरिकता की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के सीएए को आगे बढ़ाते हुए शरणार्थी कार्ड का इस्तेमाल किया था. हाल के वर्षों में, भाजपा ने बंगाल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर आक्रामक रूख अपनाया. मतुआ समुदाय इस मुद्दे पर भाजपा का समर्थन कर रहा है और तब से सीएए को शीघ्र लागू करने की मांग कर रहा था. अब जब सीएए लागू हो गया है तो मतुआ समुदाय इसके लिए खुशियां मना रहा है.

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यह भी पढ़ें: पश्चिम बंगाल में ठाकुरबाड़ी मंदिर में एंट्री को लेकर विवाद, मतुआ समुदाय के विरोध पर बीजेपी पर भड़के अभिषेक बनर्जी

BJP नेता सुवेंदु अधिकारी ने सीएए लागू होने के बाद एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, 'संसद से पारित हुआ सीएए अब लागू हो जाएगा और यह कानून पूरे देश में लागू हो जाएगा. मतुआ समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांग अब पूरी होगी और उन्हें नागरिकता मिलेगी और कोई भी उन्हें उनके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता, यहां तक कि ममता बनर्जी भी नहीं. मैं मतुआ समुदाय और अखिल भारतीय मतुआ महासंघ को अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूं.'

कौन हैं मतुआ समुदाय के लोग

हरिचंद ठाकुर ने मतुआ संप्रदाय की स्थापना की थी. उनका उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुर परिवार का राजनीति से लंबा जुड़ाव रहा है. हरिचंद के परपोते प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने. हाल के वर्षों में, ठाकुर परिवार के कई सदस्यों ने संप्रदाय की सर्वोच्च संस्था मतुआ महासंघ में अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई है.

राजनीति में मतुआ समुदाय का दखल

प्रमथ रंजन ठाकुरकी पत्नी बीनापानी देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर 2014 में बोनगांव से टीएमसी सांसद थ. उनके छोटे भाई मंजुल कृष्णा 2011 में गायघाटा से टीएमसी विधायक बने. मंजुल के बड़े बेटे सुब्रत ठाकुर के आकस्मिक निधन के बाद 2015 में बीजेपी के टिकट पर बोनगांव उपचुनाव लड़ा.  2019 में, मंजुल कृष्णा के बेटे शांतनु ठाकुर ने बीजेपी के टिकट पर बोनगांव लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की. वह वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री हैं. मंजुल कृष्णा के एक और बेटे सुब्रत ठाकुर उसी क्षेत्र की गायघाटा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक हैं.

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हिंदू शरणार्थी
अनुसूचित जाति (एससी) के रूप में वर्गीकृत, मतुआ नामशूद्र या निचली जाति के हिंदू शरणार्थी हैं, जो विभाजन के बाद दशकों से पड़ोसी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से पश्चिम बंगाल में चले आए. वे राज्य की दूसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जाति वाली आबादी हैं.इनकी अधिकतर संख्या उत्तर और दक्षिण 24 परगना में केंद्रित हैं. इनका प्रभाव नादिया, हावड़ा, कूच बिहार, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर और मालदा जैसे सीमावर्ती जिलों में है.

भाजपा का वोट बैंक
नामशूद्र कुल एससी आबादी का 17.4 प्रतिशत हैं, जो उत्तर बंगाल में राजबंशियों के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा ब्लॉक है. बंगाल की 1.8 करोड़ अनुसूचित जाति आबादी (99.96%) में हिंदु की संख्या सर्वाधिक है. राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से, बंगाल में 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से भाजपा ने 2019 में चार - कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, बिष्णुपुर और बोनगांव पर जीत हासिल की थी. अनुसूचित जाति के बीच भगवा लहर की लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा इस समुदाय के बीच लगातार काम कर रही है.

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