पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य (Budhhadeb Bhattacharjee) और मशहूर गायिका संध्या मुखर्जी (Sandhya Mukherjee) ने पद्म पुरस्कार लेने से मना कर दिया है. सरकार ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म भूषण और संध्या मुखर्जी को पद्म श्री से सम्मानित करने का फैसला लिया था.
पुरस्कार लेने से मना करने की वजह बताते हुए बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा कि उन्हें इस बारे में बताया ही नहीं गया. वहीं, संध्या मुखर्जी की बेटी सौमी सेनगुप्ता ने इंडिया टुडे को बताया कि 90 साल की उम्र के बाद उनके जैसी दिग्गज को पद्म श्री देना बेहद अपमानजनक है.
पद्म पुरस्कार देश के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि जिन्होंने पद्म पुरस्कारों को लेने से इनकार कर दिया है, आखिर वो कौन हैं?
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11 साल तक पश्चिम बंगाल के सीएम रहे हैं बुद्धदेव भट्टाचार्य
- बुद्धदेव भट्टाचार्य 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे हैं. वो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे. बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म 1 मार्च 1944 को उत्तर कोलकाता में हुआ था. उनका पुश्तैनी घर बांग्लादेश में है.
- उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से बांग्ला साहित्य की पढ़ाई की और बांग्ला (ऑनर्स) में बीए डिग्री हासिल की. इसके बाद वो 1966 में सीपीएम से जुड़ गए. वो माकपा की यूथ विंग डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव चुने गए.
- 1977 में उन्होंने उत्तरी कोलकाता की कोसीपोर सीट से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता. 6 नवंबर 2000 को ज्योति बसु की जगह बुद्धदेव भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने.
- बुद्धदेव भट्टाचार्य को बंगाल में औद्योगिकीकरण की शुरुआत करने वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है. उन्होंने ही टाटा नैनो के प्लांट को कोलकाता के पास सिंगुर में लगाने की मंजूरी दी थी.
- 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने लेफ्ट का सफाया कर दिया. 34 साल तक राज करने वाली लेफ्ट बंगाल में साफ हो गई. बुद्धदेव भट्टाचार्य भी हार गए. भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल के आखिरी वामपंथी मुख्यमंत्री हैं.
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60 और 70 के दशक की मधुर आवाज हैं संध्या मुखर्जी
- संध्या मुखर्जी का जन्म 4 अक्टूबर 1931 को कलकत्ता (अब कोलाकात) के ढकुरिया में हुआ था. उनके पिता रेलवे अधिकारी थे. संध्या 6 भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं.
- उन्होंने पंडित संतोष कुमार बासु, प्रोफेसर एटी कन्नन और प्रोफेसर चिन्मय लाहिरी से संगीत सीखना शुरू किया. हालांकि, उनके गुरु उस्ताद बड़े गुलाम अली खान थे. उस्ताद गुलाम अली खान के बाद उनके बेटे उस्ताद मुनव्वर अली खान उनके गुरु बने, जिनसे उन्होंने शास्त्रीय संगीत में महारत हासिल की.
- उन्होंने अपने करियर की शुरुआत हिंदी फिल्मों से की. उन्होंने 17 हिंदी फिल्मों में गाने गाए. इसकी शुरुआत उन्होंने 1950 में आई तराना फिल्म से की. इसके बाद 1952 में वो निजी कारणों से कोलकाता लौट आईं. उन्होंने 1966 में बंगाली कवि श्यामल गुप्ता से शादी की.
- संध्या मुखर्जी को 60 और 70 के दशक की सबसे मधुर आवाज माना जाता है. उन्होंने हजारों बंगाली और गैर-बंगाली गाने गाए हैं. संध्या और हेमंत मुखर्जी की जोड़ी को आज भी संगीत प्रेमी याद करते हैं.
- 2011 में संध्या मुखर्जी को पश्चिम बंगाल का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'बंग विभूषण' मिला था. उन्हें 'जय जयंती' नाम की एक बंगाली फिल्म के लिए 1970 में सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिल चुका है.