विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मलेरिया की वैक्सीन मॉसक्विरिक्स को मंजूरी दे दी है. मच्छरों की 460 प्रजातियों में से करीब 100 ऐसी हैं, जो इंसानों में मलेरिया का संक्रमण फैला सकती हैं. मच्छर के काटने के बाद शरीर में पैरासाइट प्लाजमोडियम फाल्सीपैरम संक्रमण फैलता है. लेकिन डब्ल्यूएचओ की वैक्सीन लगने के बाद आपके शरीर में मलेरिया संक्रमण का असर बेहद कम हो जाएगा और मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचने से बच जाएगा. वैज्ञानिकों का दावा है कि ये वैक्सीन लगने के बाद मलेरिया से लड़ने की क्षमता करीब 77 प्रतिशत है. वहीं, मलेरिया की वैक्सीन के आने का सबसे ज्यादा फायदा अफ्रीका के देशों को मिलेगा, क्योंकि सबसे ज्यादा मौतें यहीं होती हैं.
वैक्सीन के आने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि मलेरिया से होने वाली मौतें रोकी जा सकेंगी. ये भारत सहित दुनिया के 100 से ज्यादा देशों के लिए एक अच्छी खबर है. डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा, ''मैंने अपने करियर की शुरुआत मलेरिया रिसर्चर के तौर पर की थी और मैं इस दिन का इंतजार कर रहा था, जब हमारे पास पुरानी और भयानक बीमारी के लिए असरदार वैक्सीन होगी. वह दिन आ गया है और यह एक ऐतिहासिक दिन भी है.''
पिछले 80 साल से ढूंढा जा रहा था मलेरिया का इलाज
जानकर हैरानी होगी कि मलेरिया का कारगर इलाज ढूंढने की कोशिश पिछले 80 साल से चल रही है और करीब 60 साल से वैक्सीन डिवेलपमेंट पर रिसर्च जारी है लेकिन 80 के दशक में ये बात सामने आई कि मलेरिया के मच्छर के प्रोटीन से वैक्सीन बनाई जा सकती है. तब से अब तक लगातार कोशिश जारी थी लेकिन 2019 में कई दौर के ट्रायल के बाद ही साफ हो पाया कि मलेरिया की वैक्सीन कारगर है. जिसे अब मान्यता मिल चुकी है. यह वैक्सीन मलेरिया से जान बचाने की दिशा में एक शुरुआत भर है, क्योंकि अभी इस वैक्सीन के कई और संस्करण आने बाकी हैं, क्योंकि जैसे जैसे शरीर में मलेरिया का स्वरूप बदलेगा वैसे-वैसे वैक्सीन का रूप भी बदलना होगा.
मलेरिया की वैक्सीन आने से किन्हें सबसे ज्यादा फायदा?
मलेरिया की वैक्सीन के आने का सबसे ज्यादा फायदा अफ्रीका के देशों को मिलेगा, क्योंकि दुनिया की 90 प्रतिशत से ज्यादा मौतें इसी इलाके में होती हैं. हालांकि, पहले की तुलना में भारत में मलेरिया के मामलों में कमी आई है, लेकिन इस वैक्सीन के आने के बाद मलेरिया को काबू में करने की उम्मीद कई गुना बढ़ गई है.
इस कंपनी को आया मॉसक्विरिक्स बनाने का आइडिया
मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) को बनाने का आइडिया 1980 के दशक में बेल्जियम स्थित स्मिथक्लाइन बीचम कंपनी के बायोलॉजिस्ट्स को आया था. मॉसक्विरिक्स का वैज्ञानिक नाम रीकॉम्बीनेंट प्रोटीन बेस्ड मलेरिया वैक्सीन (Recombinant protein-based malaria vaccine - RTS, S) भी है. यह वैक्सीन लगने के बाद आपके शरीर में मलेरिया संक्रमण करने वाले पैरासाइट प्लाजमोडियम फाल्सीपैरम का असर बेहद कम हो जाएगा. क्योंकि इस वैक्सीन की बीमारी से लड़ने की क्षमता यानी एफिकेसी करीब 77 फीसदी है. यह पैरासाइट पूरी दुनिया में पाया जाता है, इसका सबसे ज्यादा असर तो अफ्रीकी देशों में देखा गया है. अभी इसके कई नए ताकतवर वैरिएंट्स विकसित किए जाएंगे. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचाया जा सके.
उड़ीसा, छत्तीसगढ़ समेत ये राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित
मलेरिया में भारत समेत उप सहारा अफ्रीका के 15 देशों की 80 फीसद हिस्सेदारी है. 2017 में मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित शीर्ष दस अफ्रीकी देशों जिनमें नाइजीरिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और मेडागास्कर जैसे देशों में तकरीबन 35 लाख मिले हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2016 की तुलना में 2017 में मलेरिया के तकरीबन 24 फीसद मामलों में कमी आई है. उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं. मलेरिया प्लाज्मोडियम नाम के पैरासाइट से होने वाली बीमारी है. यह मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है. ये मच्छर गंदे पानी में पनपता है. आमतौर पर मलेरिया के मच्छर रात में ही ज्यादा काटते हैं. एक स्टेज पर पेशंट को हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है, जिससे वह अनीमिक हो जाता है.
1953 में शुरू किया गया मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम
1953 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एनएमसीपी) शुरू किया जोकि घरों के भीतर डीडीटी का छिड़काव करने पर केन्द्रित था. इससे उत्साहित होकर एक अधिक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (एनएमईपी) 1958 में शुरू किया गिया. भारत में मलेरिया उन्मूलन प्रयास वर्ष 2015 में शुरू हुए थे और वर्ष 2016 में स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन (NFME) की शुरुआत के बाद इनमें और अधिक तेजी आई. ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मेघालय और मध्य प्रदेश राज्यों में वर्ष 2019 में लगभग 45.47% मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं. इन राज्यों में मलेरिया से 63.64% मौतें भी हुईं.
(आजतक ब्यूरो)